जीपीएस इंटरफेरेंस: विमानों और जहाजों की दिशा भटकाने वाला नया साइबर खतरा

हाल ही में दिल्ली-जम्मू फ्लाइट की वापसी, होर्मुज़ जलडमरूमध्य में दो टैंकरों की टक्कर और जेद्दा पोर्ट के पास एक कंटेनर जहाज का फंस जाना — ये घटनाएं भले ही भिन्न प्रतीत हों, पर इनके पीछे एक साझा कारण है: GPS इंटरफेरेंस। आज जब हवाई और समुद्री यातायात अत्यधिक तकनीक-आधारित हो गया है, तो GPS जैसे प्रणाली में हस्तक्षेप एक गंभीर खतरे के रूप में उभर रहा है।
जीपीएस इंटरफेरेंस क्या है?
GPS इंटरफेरेंस दो प्रकार का होता है:
- जैमिंग (Jamming): इसमें एक डिवाइस मजबूत रेडियो सिग्नल भेजकर जीपीएस सिग्नल को पूरी तरह अवरुद्ध कर देता है।
- स्पूफिंग (Spoofing): इसमें नकली GPS सिग्नल भेजे जाते हैं, जिससे डिवाइस गलत स्थान या दिशा को सही मानकर उस पर कार्य करता है।
स्पूफिंग अधिक खतरनाक है क्योंकि यह नेविगेशन सिस्टम को यह भरोसा दिला देता है कि वह सही दिशा में है, जबकि असल में वह रास्ता भटक चुका होता है।
खतरा कितना गंभीर है?
GPS इंटरफेरेंस से:
- विमानों में दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि पायलट गलत स्थिति का आकलन कर सकते हैं।
- जहाजों को टकराव और ग्राउंडिंग जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
- वायु और समुद्री यातायात नियंत्रण तंत्र (ATC और VTS) में गड़बड़ी आती है।
- सड़क परिवहन में ट्रैफिक जाम और आपात स्थितियों में अव्यवस्था फैल सकती है।
2024 में प्रति दिन लगभग 700 GPS स्पूफिंग की घटनाएं दर्ज की गईं — यह संख्या इस खतरे की व्यापकता को दर्शाती है।
कहां आम हैं ये घटनाएं?
- रेड सी और फारस की खाड़ी: यहां संघर्ष क्षेत्र में स्पूफिंग की घटनाएं 350% तक बढ़ी हैं।
- रूस-यूक्रेन युद्ध क्षेत्र: एयरस्पेस में स्पूफिंग के डर से एयरलाइनों ने इस क्षेत्र से दूरी बनाई है।
- रूस (2017): नोवोरोस्सियस्क बंदरगाह पर 20 जहाजों ने एक ही समय में खुद को हवाई अड्डे पर पाया — एक बड़ी स्पूफिंग घटना।
समाधान: विमानों और जहाजों की रणनीति
विमानों के लिए:
- Inertial Navigation System (INS): पिछले ज्ञात स्थान से गणना कर पथ निर्धारण।
- VOR और DME: जमीनी रेडियो प्रणाली से स्थिति की पुष्टि।
- ILS प्रणाली: लैंडिंग के लिए GPS से स्वतंत्र प्रणाली।
- क्रू प्रशिक्षण: DGCA द्वारा चेतना बढ़ाने और संचार संकेतों की सतर्कता पर ज़ोर।
जहाजों के लिए:
- मैन्युअल स्टीयरिंग: ऑटो-पायलट को बंद कर जमीन आधारित दिशासूचक जैसे लाइटहाउस व रडार का सहारा।
- मल्टी-कोन्स्टेलेशन GNSS: GPS के अलावा GLONASS (रूस), Galileo (EU), Bei Dou (चीन) आदि का संयुक्त उपयोग।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- GPS स्पूफिंग से रियल टाइम नेविगेशन सिस्टम धोखा खा सकते हैं।
- 2024 में प्रतिदिन औसतन 700 स्पूफिंग घटनाएं दर्ज की गईं।
- भारत का अपना GPS वैकल्पिक प्रणाली है: NavIC (ISRO द्वारा विकसित)।
- Kargil युद्ध, 2009 और 2012 ब्रह्मोस परीक्षणों में अमेरिकी GPS बंद होने से भारत को नुकसान हुआ था।
भारत की पहल: NavIC प्रणाली
NavIC (Navigation with Indian Constellation) भारत की स्वदेशी सैटेलाइट नेविगेशन प्रणाली है, जो 1,500 किमी तक सटीक दिशा, समय और स्थान सेवाएं प्रदान करती है। 1999, 2009 और 2012 में GPS आधारित असफलताओं ने इसकी आवश्यकता को सिद्ध किया। NavIC को अब रक्षा बलों और नौवहन सेवाओं में शामिल किया जा रहा है।
निष्कर्ष
GPS इंटरफेरेंस आज के तकनीकी युग का एक नया साइबर खतरा है, जो न केवल विमानों और जहाजों बल्कि सड़क परिवहन और आपदा प्रबंधन तंत्र तक को प्रभावित कर सकता है। भारत सहित दुनिया भर के देशों को न केवल मल्टी-स्तरीय तकनीकी सुरक्षा विकसित करनी होगी, बल्कि स्वदेशी प्रणालियों को भी मजबूत करना होगा। GPS पर अत्यधिक निर्भरता की चुनौती से निपटने के लिए वैकल्पिक और सुरक्षित नेविगेशन समाधानों का विकास अब समय की मांग है।