जलवायु संकट के कारण पहली बार एक पूरे देश के नियोजित पलायन की शुरुआत: तुवालु के लिए ऑस्ट्रेलिया ने खोला विशेष वीज़ा

दक्षिण प्रशांत महासागर के छोटे द्वीपीय देश तुवालु के लिए ऑस्ट्रेलिया ने दुनिया का पहला जलवायु संकट आधारित नियोजित प्रवास वीज़ा शुरू किया है। “ऑस्ट्रेलिया-तुवालु फालेपिली यूनियन संधि” के तहत शुरू इस वीज़ा योजना में 2025 से हर साल 280 तुवालु निवासियों को ऑस्ट्रेलिया में बसने की अनुमति दी जाएगी।

क्यों जरूरी है यह वीज़ा?

तुवालु के नौ द्वीपों की औसत ऊँचाई मात्र 6 फीट है, और समुद्र का स्तर लगातार बढ़ रहा है। एक अध्ययन के अनुसार, 2023 में समुद्र स्तर 30 साल पहले की तुलना में 15 सेंटीमीटर बढ़ चुका था। अगर यही स्थिति रही, तो 2050 तक देश का अधिकांश हिस्सा समुद्र में समा सकता है।
समुद्र का खारा पानी अब ताजे पानी के एक्विफर्स में घुसपैठ करने लगा है, जिससे पानी की कमी और खेती की समस्याएं पैदा हो रही हैं। तुवालु के लोग अब ज़मीन से ऊपर फसलों को उगाने लगे हैं ताकि लवणता से बचाव हो सके।

वीज़ा योजना के प्रमुख बिंदु

  • वार्षिक सीमा: 280 नागरिक प्रतिवर्ष ऑस्ट्रेलिया में प्रवास कर सकेंगे।
  • आवेदन संख्या: 11,000 की जनसंख्या वाले देश से 5,157 लोगों ने आवेदन किया — यानी करीब 47% वयस्क आबादी।
  • सुविधाएँ: वीज़ा धारकों को ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के समान शिक्षा, स्वास्थ्य और कार्य की सुविधा मिलेगी।
  • वैकल्पिक प्रवास: यह प्रवास अनिवार्य नहीं है — नागरिक लौट सकते हैं या वहीं रह सकते हैं।
  • प्रवास की शुरुआत: पहले प्रवासी 2025 के अंत तक ऑस्ट्रेलिया पहुंच सकते हैं।
  • दीर्घकालिक प्रभाव: अगर संख्या यही रही तो 10 वर्षों में देश की लगभग 40% जनसंख्या तुवालु छोड़ सकती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • यह दुनिया का पहला ऐसा वीज़ा है जो जलवायु परिवर्तन के कारण एक पूरे देश के नियोजित पलायन की सुविधा देता है।
  • तुवालु प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया और हवाई के बीच स्थित है।
  • देश का सबसे ऊँचा स्थान केवल 15 फीट (4.5 मीटर) ऊँचा है।
  • 2024 में लागू यह संधि 2023 के अंत में हस्ताक्षरित हुई थी।
  • तुवालु के बाद किरिबाती जैसे अन्य प्रशांत देश भी इसी तरह की योजनाओं का हिस्सा बन सकते हैं।

निष्कर्ष

तुवालु और ऑस्ट्रेलिया के बीच यह ऐतिहासिक संधि जलवायु परिवर्तन के मानवीय प्रभावों को स्वीकारने और उससे निपटने का एक अभूतपूर्व उदाहरण है। यह केवल एक वीज़ा योजना नहीं, बल्कि “गौरव के साथ प्रवास” का मॉडल है जो आने वाले वर्षों में अन्य जलवायु संकटग्रस्त देशों के लिए भी मार्ग प्रशस्त कर सकता है। यह वैश्विक नीतियों और मानवीय मूल्यों को एक नई दिशा दे सकता है — जहाँ आपदा से बचाव और गरिमा पूर्ण जीवन की चाह को एक साथ देखा जाए।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *