जलवायु वित्त पर ‘बाकू से बेलेम रोडमैप’: विकसित और विकासशील देशों के बीच गहराता मतभेद

COP29 सम्मेलन के दौरान जलवायु वित्त को लेकर जो अपेक्षाएं थीं, वे न्यू कलेक्टिव क्वांटिफाइड गोल (NCQG) की कमजोर घोषणा के साथ लगभग धराशायी हो गईं। विकसित देशों द्वारा 2035 तक $100 बिलियन से $300 बिलियन प्रति वर्ष तक जलवायु वित्त बढ़ाने का वादा किया गया, लेकिन यह विकासशील देशों की वास्तविक जरूरतों से बहुत कम साबित हुआ।

बाकू से बेलेम रोडमैप (B2B): उद्देश्य और संरचना

COP29 और COP30 की अध्यक्षताओं द्वारा शुरू किया गया यह रोडमैप 2035 तक विकासशील देशों की जलवायु जरूरतों के लिए $1.3 ट्रिलियन सालाना जुटाने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए बनाया गया है। इसके अंतर्गत जलवायु वित्त को अनुदान, रियायती ऋण और बिना-ऋण उपकरणों के माध्यम से उपलब्ध कराने का लक्ष्य है।

मुख्य मुद्दे: सार्वभौमिकता बनाम बाजार आधारित दृष्टिकोण

  • विकासशील देश (G77+चीन, LMDC, AILAC, AOSIS, LDC):

    • जलवायु वित्त को राष्ट्रीय प्राथमिकताओं जैसे NDC और NAP से जोड़ने की मांग।
    • बाजार दर पर ऋण या निजी पूंजी को जलवायु वित्त की परिभाषा से बाहर रखने की वकालत।
    • अनुदान आधारित, पूर्वानुमेय, और सुलभ वित्त की ज़रूरत पर ज़ोर।
    • संप्रभुता पर खतरे जैसे अंतरराष्ट्रीय कर या ऋण पुनर्गठन प्रस्तावों का विरोध।
    • जलवायु वित्त के लिए केवल UNFCCC मंच को ही उपयुक्त मानना।
  • विकसित देश (EU, जापान, यूके, कनाडा, नॉर्वे):

    • जलवायु वित्त जुटाने के लिए निजी क्षेत्र और स्वैच्छिक योगदान को प्राथमिकता।
    • कार्बन मूल्य निर्धारण, हरित बॉन्ड, वॉलंटरी कार्बन मार्केट्स जैसे नवाचारों को बढ़ावा।
    • सार्वजनिक वित्त की प्रत्यक्ष जिम्मेदारी से बचना और बहुपक्षीय वित्तीय संस्थानों की भूमिका को बढ़ाना।

भारत की भूमिका और दृष्टिकोण

भारत ने अपनी प्रस्तुति में स्पष्ट किया कि:

  • NDC की महत्वाकांक्षा को वित्त उपलब्धता से जोड़ा जाना चाहिए।
  • जलवायु कार्रवाई को देश द्वारा संचालित रणनीतियों से मार्गदर्शित किया जाना चाहिए।
  • सार्वजनिक पूंजी के माध्यम से निजी निवेश को प्रेरित करना चाहिए।
  • ऋण आधारित मॉडल से बचना चाहिए ताकि विकासशील देशों का राजकोषीय दबाव न बढ़े।
  • प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में IPR बाधाओं, क्रेडिट रेटिंग की अपारदर्शिता और विदेशी मुद्रा जोखिम जैसे अवरोधों को दूर करना जरूरी है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • NCQG के तहत $300 बिलियन प्रति वर्ष का लक्ष्य 2035 तक निर्धारित किया गया है।
  • बाकू से बेलेम रोडमैप का उद्देश्य 2035 तक $1.3 ट्रिलियन वार्षिक जलवायु वित्त जुटाना है।
  • UNFCCC का अनुच्छेद 9.1 कहता है कि जलवायु वित्त विकसित देशों द्वारा सार्वजनिक स्रोतों से दिया जाना चाहिए।
  • COP30 में इस रोडमैप पर संक्षिप्त रिपोर्ट पेश की जाएगी।

आगे की राह

‘बाकू से बेलेम रोडमैप’ वर्तमान में वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच की दरारों को उजागर कर रहा है। विकसित देशों की ओर से सार्वजनिक वित्त देने की अनिच्छा और विकासशील देशों की सहायता की आवश्यकता के बीच सामंजस्य बैठाना एक बड़ी चुनौती है। यह देखा जाना बाकी है कि क्या आने वाले महीनों में यह रोडमैप एक सुसंगत, न्यायसंगत और प्रभावी वित्तीय ढांचा प्रस्तुत कर पाएगा।

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