जलवायु परिवर्तन पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला: सरकारों की प्रदूषणकारी नीतियाँ अवैध घोषित

जलवायु संकट से जूझ रही दुनिया के लिए 23 जुलाई 2025 का दिन ऐतिहासिक साबित हुआ, जब अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने पहली बार जलवायु परिवर्तन से संबंधित एक सलाहकार राय (Advisory Opinion) में सरकारों द्वारा जलवायु को नुकसान पहुँचाने वाली नीतियों को अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत अवैध करार दिया। संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा अनुरोध पर यह राय जारी की गई, जिसका उद्देश्य वैश्विक जलवायु वार्ताओं को प्रभावित करना और देशों की कानूनी जवाबदेही सुनिश्चित करना है।

अदालत ने क्या कहा?

अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि जलवायु परिवर्तन संधियाँ (जैसे UNFCCC, पेरिस समझौता) सभी देशों पर बाध्यकारी कर्तव्य लगाती हैं कि वे मानव-निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करें और पर्यावरण की रक्षा करें। विशेष रूप से Annex-I देशों (विकसित राष्ट्रों) पर अग्रणी भूमिका निभाने का दायित्व है, जो लंबे समय से जिम्मेदारी से बचते रहे हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ और सुनवाई प्रक्रिया

  • 91 लिखित प्रस्तुतीकरण और 62 टिप्पणियों के बाद 2 से 13 दिसंबर 2024 तक सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की गई थी।
  • इसमें 96 देशों और 11 अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने मौखिक प्रस्तुतीकरण दिया।
  • न्यायालय ने सर्वसम्मति से यह आदेश पारित किया — केवल पांचवीं बार जब ICJ ने ऐसा किया।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) संयुक्त राष्ट्र का मुख्य न्यायिक अंग है, जिसकी स्थापना 1945 में हुई और इसका मुख्यालय हेग, नीदरलैंड्स में है।
  • यह राय कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होती, लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीय कानून में उच्च नैतिक और कानूनी प्रभाव होता है।
  • UNFCCC और पेरिस समझौते जैसे अंतरराष्ट्रीय दस्तावेज़ वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5°C तक सीमित करने की कोशिश करते हैं।
  • यह फैसला COP30 (नवंबर 2025, बेलें, ब्राज़ील) से ठीक पहले आया है और इसकी दिशा तय करेगा।

‘जलवायु अन्याय’ पर कानूनी मोहर

न्यायालय ने माना कि यदि कोई देश अपने दायित्वों का उल्लंघन करता है — तो यह “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गलत आचरण” (internationally wrongful act) है, जिससे उसे:

  • अपनी कार्रवाई रोकनी होगी,
  • गैर-पुनरावृत्ति की गारंटी देनी होगी,
  • और पूर्ण पुनर्विकल्प (reparation) देना होगा — जिसमें क्षतिपूर्ति, संतुष्टि और मरम्मत शामिल हैं।

यह सीधा संबंध “लॉस एंड डैमेज” (Loss and Damage) विषय से जोड़ता है, जिसे हाल ही में जलवायु वार्ताओं में औपचारिक रूप मिला है।

विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रियाएँ

  • कॉरडेलिया बहर (Klima Seniorinnen केस): “यह एक वैश्विक न्यायिक विजय है; अब सरकारें जलवायु संकट से लोगों की रक्षा के लिए कानूनी रूप से बाध्य हैं।”
  • हरजीत सिंह (Satat Sampada): “यह फैसला सिर्फ कानूनी नहीं, बल्कि जलवायु वार्ताओं की पूरी दिशा बदल देगा।”
  • अंजल प्रकाश (IPCC लेखक): “अब सरकारें अस्पष्टता की आड़ नहीं ले सकतीं — उन्हें जवाबदेह होना होगा।”
  • संजय वशिष्ठ (CANSA): “दक्षिण एशिया के अरबों लोग संकट में हैं; यह फैसला उन देशों को अधिकार दिलाएगा जो दशकों से नुकसान सहते आ रहे हैं।”

यह फैसला एक गहरी वैश्विक चेतावनी है — कि जलवायु संकट अब केवल वैज्ञानिक या राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय न्याय का विषय बन चुका है। आने वाले COP30 में इस राय के प्रभाव से वैश्विक जलवायु वार्ता में निर्णायक परिवर्तन की उम्मीद की जा रही है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *