जलवायु परिवर्तन और वैश्विक कृषि संकट: गेहूं पर सबसे गहरा असर, भारत सबसे प्रभावित क्षेत्रों में

हाल ही में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन ने जलवायु परिवर्तन के चलते कृषि उत्पादन और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर खतरे की चेतावनी दी है। ‘Impacts of Climate Change on Global Agriculture Accounting for Adaptation’ नामक यह अध्ययन 18 जून 2025 को प्रतिष्ठित पत्रिका Nature में प्रकाशित हुआ और इसे ‘क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब’ नामक शोध समूह ने तैयार किया है। अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया कि हर अतिरिक्त 1 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान वृद्धि से औसतन प्रति व्यक्ति दैनिक खाद्य खपत में 120 कैलोरी या वर्तमान सेवन का लगभग 4.4% गिरावट हो सकती है।

गेहूं उत्पादन पर सबसे गहरा प्रभाव

अध्ययन के अनुसार, गेहूं की फसल पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव सबसे गंभीर होगा, विशेष रूप से भारत के उत्तरी भागों में। उच्च उत्सर्जन पर आधारित परिदृश्य में, भारत के उत्तर और मध्य क्षेत्रों में गेहूं की पैदावार में 40 से 100 प्रतिशत तक की गिरावट की संभावना जताई गई है। चीन, रूस, अमेरिका और कनाडा में यह गिरावट 30 से 40 प्रतिशत, जबकि यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में 15 से 25 प्रतिशत के बीच हो सकती है।

जलवायु अनुकूलन की सीमाएँ

अध्ययन में किसानों द्वारा की गई अनुकूलन कोशिशों — जैसे फसल चक्र में बदलाव, सिंचाई तकनीक, किस्मों का चयन — को भी शामिल किया गया, परंतु निष्कर्ष यह रहा कि ये प्रयास जलवायु संबंधी नुकसान का केवल एक-तिहाई ही प्रभावी रूप से भरपाई कर पाएंगे। गेहूं के मामले में यह प्रभाव सबसे कम रहा।
उदाहरण के लिए, उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में वर्ष 2100 तक कुल कैलोरी उत्पादन में अनुमानित गिरावट को विकास और अनुकूलन उपाय केवल 34% तक ही कम कर पाएंगे, जबकि मध्यम उत्सर्जन परिदृश्य में यह कमी मात्र 12% तक सीमित रहेगी।

चावल में संभावित वृद्धि, अन्य फसलों पर गिरावट

जहाँ एक ओर ज्यादातर प्रमुख फसलों — मक्का, सोयाबीन, ज्वार, कसावा — की उत्पादकता में गिरावट का अनुमान है, वहीं चावल के उत्पादन में थोड़ी वृद्धि की संभावना जताई गई है। इसका कारण यह है कि चावल की फसल उच्च न्यूनतम तापमान सहन करने में सक्षम होती है।

असमान क्षेत्रीय प्रभाव

यह अध्ययन 54 देशों के 24,378 प्रशासनिक क्षेत्रों में छह मुख्य खाद्य फसलों — चावल, गेहूं, मक्का, सोयाबीन, ज्वार, कसावा — पर आधारित था, जो दुनिया की लगभग दो-तिहाई खाद्य कैलोरी प्रदान करते हैं। विश्लेषण में यह भी स्पष्ट हुआ कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खाद्य संकट का प्रभाव समान रूप से नहीं पड़ेगा। जहां विकसित देशों की आधुनिक कृषि पर इसका बड़ा असर होगा, वहीं सबसे गरीब तबका, जो कसावा पर निर्भर है, भी गंभीर रूप से प्रभावित होगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • हर 1°C तापमान वृद्धि से औसतन प्रति व्यक्ति 120 कैलोरी दैनिक खपत में कमी आने की आशंका है।
  • भारत के उत्तरी और मध्य भागों में गेहूं उत्पादन में 40-100% की गिरावट संभव।
  • चावल ही एकमात्र फसल है जिसके उत्पादन में तापमान वृद्धि के साथ कुछ वृद्धि देखी जा सकती है।
  • अध्ययन ‘Nature’ पत्रिका में 18 जून 2025 को प्रकाशित हुआ और इसमें 16 वैज्ञानिकों ने योगदान दिया।

इस अध्ययन के निष्कर्ष स्पष्ट करते हैं कि जलवायु परिवर्तन अब केवल पर्यावरणीय चुनौती नहीं, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा का संकट बनता जा रहा है। यदि जल्द ही उत्सर्जन में कटौती और कृषि नीतियों में व्यापक परिवर्तन नहीं किए गए, तो भारत समेत अनेक देशों को भविष्य में गहन खाद्य संकट का सामना करना पड़ सकता है।

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