चोलगंगम झील का पुनरुद्धार: राजेंद्र चोल की विरासत को फिर से संजीवनी

चोलगंगम झील का पुनरुद्धार: राजेंद्र चोल की विरासत को फिर से संजीवनी

23 जुलाई को “आड़ी तिरुवथिरै” के अवसर पर महान चोल सम्राट राजेंद्र चोल प्रथम की जयंती मनाते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने एक महत्वपूर्ण घोषणा की है। उन्होंने गंगैकोंडचोलपुरम के समीप स्थित ऐतिहासिक चोलगंगम झील (जिसे स्थानीय रूप से ‘पोंनेरी’ कहा जाता है) के विकास के लिए ₹12 करोड़ और पर्यटन गतिविधियों के लिए ₹7.25 करोड़ की राशि आवंटित की है। यह प्रयास राजेंद्र चोल की जल प्रबंधन विरासत को पुनर्जीवित करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

चोलगंगम झील: इतिहास और महत्व

राजेंद्र चोल प्रथम ने इस झील का निर्माण अपनी उत्तर भारत विजय के उपलक्ष्य में किया था, जिसे तिरुवालंगाडु तांबे की पट्टिकाओं (कॉपर प्लेट्स) में दर्ज किया गया है। इतिहासकार के.ए. नीलकंता शास्त्री के अनुसार, सम्राट ने इस झील को ‘गंगा जलमय जयस्तम्भ’ या ‘तरल विजय स्तम्भ’ के रूप में निर्मित किया — एक ऐसा जलाशय जो गंगा जल से भरा गया था।
कभी यह झील 17 किलोमीटर लंबी थी, और इसकी 16 मील लंबी बाँध प्रणाली भारत की सबसे बड़ी जल संरचनाओं में गिनी जाती थी। यह झील गंगैकोंडचोलपुरम और उसके 60 एकड़ के महल को जलापूर्ति करती थी।

वर्तमान स्थिति और पुनरुद्धार की योजना

1,000 साल पुरानी यह झील अब लगभग सूख चुकी है और केवल वर्षा जल पर निर्भर है। कोल्लीडम नदी से झील तक पानी लाने वाली नहरें वर्षों पहले निष्क्रिय हो गई हैं। हालांकि इन नहरों के अवशेष आज भी मौजूद हैं। गंगैकोंडचोलपुरम विकास परिषद ट्रस्ट के अध्यक्ष आर. कोमगन वर्षों से झील के पुनरुद्धार के लिए प्रयासरत हैं।
मुख्यमंत्री की घोषणा के अनुसार:

  • 700 एकड़ में फैले जलाशय के किनारों को मजबूत किया जाएगा
  • पर्यटन विभाग द्वारा सूचना केंद्र, पार्क, सुरक्षा दीवार, कैमरे, बिजली और अन्य सुविधाएं स्थापित की जाएंगी।
  • 1,374 एकड़ खेतों को सिंचाई का लाभ मिलेगा।
  • आस-पास की नहरों का पुनरुद्धार और मरम्मत कार्य किया जाएगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • चोलगंगम झील को राजेंद्र चोल प्रथम ने 11वीं शताब्दी में गंगा जल से भरवाया था।
  • गंगैकोंडचोलपुरम चोल साम्राज्य की राजधानी थी और इस झील से पेयजल और सिंचाई दोनों होते थे।
  • झील की बाँध प्रणाली अंडाकार (elliptical) थी, जिसे हाइड्रोलिक दबाव सहने के लिए डिज़ाइन किया गया था।
  • ब्रिटिश काल में इस झील के शुष्क तल पर एक पुल बनाया गया था, जो आज भी मौजूद है।

जल प्रबंधन में चोलों की दूरदर्शिता

इस झील में “सिल्ट इजेक्टर” और “वर्टेक्स थूम्पू सिस्टम” जैसी तकनीकों का प्रयोग किया गया था, जिससे गाद युक्त पानी सीधे खेतों में छोड़ा जाता था। इस प्राकृतिक उर्वरता प्रणाली से चोलकालीन तमिलनाडु की कृषि अत्यंत समृद्ध रही। पारंपरिक रूप से ‘एरी-अयम’ नामक कर इन जलाशयों के रखरखाव के लिए किसानों से लिया जाता था।
झील अब ग्राउंडवाटर रिचार्ज ज़ोन के रूप में फिर से कार्य कर सकती है। कोमगन के अनुसार, यदि कोल्लीडम नदी से जुड़ी 12 झीलों को पुनः सक्रिय किया जाए तो वे चेन्नई जैसे महानगरों को वर्ष भर पानी दे सकती हैं

निष्कर्ष

राजेंद्र चोल की जल प्रबंधन विशेषज्ञता का प्रतीक चोलगंगम झील आज दुर्दशा में है, परंतु उसके पुनरुद्धार की योजना उस महान इतिहास को वर्तमान में जीवित करने का प्रयास है। यह परियोजना न केवल इतिहास संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भविष्य की जल सुरक्षा और पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी एक प्रेरणादायक उदाहरण बन सकती है।

Originally written on July 23, 2025 and last modified on July 23, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *