चेरापूंजी में बारिश की गिरती मात्रा: जलवायु संकट की ओर बढ़ता मेघालय का ‘वर्षा नगर’

भारत के मेघालय राज्य में स्थित सोहरा (चेरापूंजी), जो कभी दुनिया का सबसे अधिक वर्षा वाला स्थान माना जाता था, अब गंभीर जलवायु संकट का सामना कर रहा है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, जून 2025 में सोहरा में केवल 1,095.4 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जबकि पिछले वर्ष इसी महीने में यह आंकड़ा 3,041.2 मिमी था। यह 64% की चौंकाने वाली गिरावट है और क्षेत्र में वर्षा में साल-दर-साल गिरावट की सबसे गंभीर घटनाओं में से एक है।

गिरती वर्षा: एक गहरा पर्यावरणीय संकेत

पिछले डेढ़ दशक में सोहरा की वार्षिक औसत वर्षा 8,000 से 9,000 मिमी तक सिमट गई है, जो कि ऐतिहासिक औसत 11,000 मिमी से काफी कम है। यह औसत भी 1970 के दशक से बहुत नीचे है, जब वर्षा का वार्षिक आंकड़ा लगभग 20,000 मिमी तक होता था। वर्ष 1974 में तो यह आंकड़ा 24,555 मिमी तक पहुँचा था — जो आज भी विश्व रिकॉर्ड बना हुआ है।
लेकिन अब वही सोहरा, जो अपनी मूसलधार बारिश के लिए जाना जाता था, जल संकट से जूझ रहा है। मई माह में भी लगभग 400 मिमी वर्षा की कमी देखी गई। मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, यह केवल संख्याओं का मामला नहीं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों की चेतावनी है।

जलवायु परिवर्तन और अन्य कारण

विशेषज्ञ इस गिरावट के पीछे कई कारकों को जिम्मेदार मानते हैं:

  • मानसून पैटर्न में बदलाव
  • वनों की कटाई
  • समुद्री सतह के तापमान में वृद्धि
  • तेजी से हो रहा शहरीकरण

गर्मी के महीनों में समुद्र के गर्म पानी से अधिक वाष्पीकरण होता है, जिससे बादल अधिक पानी रोक पाते हैं और छोटे क्षेत्रों में अचानक भारी वर्षा या फिर शुष्कता पैदा करते हैं।

पानी की किल्लत और जनसंख्या विस्फोट

सोहरा की विडंबना यह है कि जहाँ यह विश्व में सबसे अधिक वर्षा के लिए जाना जाता है, वहीं आज यह जल संकट से गुजर रहा है। ग्रामीण इलाकों में लोग कमजोर झरनों पर निर्भर हैं, और कई क्षेत्रों में टैंकरों से जल आपूर्ति करनी पड़ती है।
1961 में जहाँ सोहरा की जनसंख्या मात्र 7,000 थी, वहीं आज यह संख्या 70,000 के पार पहुँच चुकी है। पर्यटन में तेजी और अनियंत्रित निर्माण गतिविधियाँ संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव डाल रही हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • चेरापूंजी (सोहरा) ने 1974 में 24,555 मिमी वर्षा के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया।
  • वर्तमान में यहाँ की औसत वार्षिक वर्षा घटकर 8,000-9,000 मिमी रह गई है।
  • 1961 में सोहरा की आबादी 7,000 थी; अब यह 70,000 से अधिक हो गई है।
  • सोहरा में जून 2025 में वर्षा में 64% की गिरावट दर्ज की गई।

आज का संकट केवल मौसम रिकॉर्ड तक सीमित नहीं है — यह पूरे पारिस्थितिक संतुलन और स्थानीय लोगों के जीवनयापन पर सीधा प्रभाव डाल रहा है। स्थानीय पर्यावरणविदों ने पुनर्वनीकरण, जलग्रहण क्षेत्र की रक्षा और निर्माण कार्यों पर नियंत्रण जैसी तात्कालिक कार्रवाइयों की मांग की है। यदि शीघ्र कदम नहीं उठाए गए, तो यह ‘वर्षा नगरी’ जलवायु आपदा का प्रतीक बन सकती है।

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