क्या सरकार अपराध से पहले संदिग्धों की फोन टैप कर सकती है?

भारत में संचार की निगरानी यानी फोन टैपिंग एक संवेदनशील और संवैधानिक विषय है, क्योंकि यह सीधे नागरिकों के मौलिक अधिकारों — निजता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता — से जुड़ा हुआ है। हाल ही में मद्रास और दिल्ली हाई कोर्ट ने इस विषय पर दो अलग-अलग निर्णय दिए, जिससे यह बहस फिर से चर्चा में आ गई कि क्या सरकार अपराध से पहले किसी व्यक्ति की बातचीत को टैप कर सकती है।

भारत में फोन टैपिंग से जुड़ा कानून

भारत में सरकार को फोन टैप करने की अनुमति तीन प्रमुख कानूनों के तहत दी गई है:

  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885: यह अधिनियम मुख्य रूप से टेलीफोन कॉल्स को टैप करने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898: इसके तहत पोस्ट के माध्यम से भेजे गए संदेशों की निगरानी की जा सकती है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000: यह व्हाट्सएप संदेशों, ईमेल आदि जैसे इलेक्ट्रॉनिक संचार के लिए लागू होता है।

टेलीग्राफ अधिनियम की धारा 5(2) के अनुसार, केंद्र और राज्य सरकारें “सार्वजनिक आपातकाल” या “सार्वजनिक सुरक्षा” के हित में फोन टैपिंग की अनुमति दे सकती हैं। हालांकि, यह अनुमति संविधान के अनुच्छेद 19(2) में वर्णित “उचित प्रतिबंधों” के अंतर्गत ही वैध मानी जाएगी।

हाई कोर्ट्स के फैसलों में अंतर

हाल ही में दो मामलों में अलग-अलग उच्च न्यायालयों ने विपरीत निर्णय दिए:

  • दिल्ली हाई कोर्ट (26 जून 2025): इसने एक भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई द्वारा किए गए फोन टैपिंग को वैध माना। अदालत ने कहा कि जब मामला ₹2,149.93 करोड़ के ठेके से जुड़ा हो, तो यह “सार्वजनिक सुरक्षा” की परिभाषा में आता है। न्यायमूर्ति अमित महाजन ने भ्रष्टाचार को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और संसाधनों के न्यायसंगत वितरण के लिए खतरा बताया।
  • मद्रास हाई कोर्ट (2 जुलाई 2025): इसने एक आयकर अधिकारी को ₹50 लाख की रिश्वत देने के प्रयास के मामले में फोन टैपिंग को अवैध घोषित किया। अदालत ने कहा कि केवल कर चोरी को रोकने के लिए फोन टैपिंग “सार्वजनिक आपातकाल” के अंतर्गत नहीं आती। साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेश में आवश्यक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित प्रक्रिया

1997 में People’s Union for Civil Liberties बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट ने टेलीग्राफ अधिनियम की संवैधानिक वैधता को स्वीकार करते हुए कुछ अहम प्रक्रियात्मक मानदंड स्थापित किए:

  • फोन टैपिंग का आदेश केवल राज्य या केंद्र सरकार के गृह सचिव द्वारा ही दिया जा सकता है।
  • यह आदेश दो माह के भीतर उच्च-स्तरीय समिति द्वारा समीक्षा के लिए प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
  • यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या आवश्यक जानकारी किसी अन्य तरीके से प्राप्त की जा सकती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की शुरुआत मूल रूप से तार सेवाओं की निगरानी के लिए हुई थी।
  • सुप्रीम कोर्ट के 1997 के फैसले के अनुसार, बिना उचित प्रक्रिया के फोन टैपिंग असंवैधानिक मानी जाती है।
  • 2011 में प्रेस सूचना ब्यूरो ने स्पष्ट किया था कि केवल टैक्स चोरी पकड़ने के लिए फोन टैपिंग की अनुमति नहीं दी जा सकती।
  • टेलीग्राफ नियम की धारा 419-A में भी समीक्षा समिति की व्यवस्था की गई है।

निष्कर्षतः, भारत में सरकार को फोन टैप करने की कानूनी शक्ति प्राप्त है, परंतु यह शक्ति सीमित और सख्त नियमों से नियंत्रित है। “सार्वजनिक आपातकाल” और “सार्वजनिक सुरक्षा” जैसे शब्दों की व्याख्या अदालतों द्वारा अलग-अलग तरीके से की जा सकती है, जिससे विभिन्न मामलों में भिन्न निर्णय संभव हैं। इसलिए, यह आवश्यक है कि इस विषय में स्पष्ट दिशा-निर्देश और पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए, जिससे नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की जा सके।

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