कोयला संयंत्रों को एसओ2 नियंत्रण से छूट: स्वास्थ्य पर संकट की चेतावनी देता नया विश्लेषण

हाल ही में भारत सरकार द्वारा सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) उत्सर्जन मानकों में ढील देने और देश भर के कोयला आधारित ताप बिजली संयंत्रों को इससे छूट देने के फैसले ने पर्यावरणविदों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चिंता बढ़ा दी है। एक स्वतंत्र विश्लेषण में बताया गया है कि जिन वैज्ञानिक अध्ययनों को इस फैसले के समर्थन में प्रस्तुत किया जा रहा है, वे या तो विरोधाभासी हैं या उन्हें गलत तरीके से व्याख्यायित किया गया है।

2015 के मानक और उनका पालन

भारत सरकार ने 2015 में कोयला संयंत्रों के लिए सख्त SO₂ उत्सर्जन मानक लागू किए थे, जिन्हें दो वर्षों में लागू किया जाना था। लेकिन 2024 तक भी देश के 92% कोयला संयंत्रों ने फ्लू गैस डीसल्फराइजेशन (FGD) यूनिट्स नहीं लगाई हैं। 11 जुलाई 2025 की अधिसूचना के अनुसार, NCR और एक मिलियन से अधिक जनसंख्या वाले शहरों के पास स्थित संयंत्रों को अब दिसंबर 2027 तक की छूट मिल गई है, जबकि अन्य क्षेत्रों के संयंत्रों को पूरी तरह से छूट मिल गई है — बशर्ते कि उनकी चिमनी की ऊंचाई तय मानकों के अनुरूप हो।

CREA की चेतावनी: अध्ययन का गलत इस्तेमाल

Centre for Research on Energy and Clean Air (CREA) की रिपोर्ट “From scientific evidence to excuses” ने सरकार द्वारा प्रस्तुत वैज्ञानिक अध्ययनों (NEERI, NIAS, IIT Delhi) के उपयोग पर गंभीर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि FGD को टालने के लिए जिन अध्ययनों का हवाला दिया जा रहा है, वे गलत तरीके से उद्धृत किए जा रहे हैं।
उदाहरणतः, IIT दिल्ली के एक अध्ययन ने यह स्पष्ट किया था कि FGD लगाने से सल्फेट एयरोसोल्स में 10–15% की कमी आ सकती है और यह प्रभाव 100–200 किमी दूर तक महसूस हो सकता है। बावजूद इसके, 2024 के एक अध्ययन ने सिर्फ 6 शहरों को आधार बनाकर FGD को टालने की सिफारिश की।

स्वास्थ्य और पर्यावरण पर घातक प्रभाव

  • CREA का दावा है कि केवल कोयला संयंत्रों से होने वाले प्रदूषण ने 2014 में 47,000, 2017 में 62,000 और 2018 में 78,000 मौतों का कारण बना।
  • PM2.5 जैसे सूक्ष्म कणों में SO₂ की भूमिका महत्वपूर्ण है, जो सांस की बीमारियों, हृदय रोग और समयपूर्व मृत्यु का कारण बनते हैं।
  • CREA का तर्क है कि FGD की वजह से जो CO₂ उत्सर्जन बढ़ेगा (2030 तक 23 मिलियन टन), वह भारत की कुल 2020 उत्सर्जन का केवल 0.9% है — जबकि अतिरिक्त 100 GW कोयला संयंत्र लगाने से इससे कहीं अधिक उत्सर्जन होगा।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • FGD तकनीक सल्फर डाइऑक्साइड को फ्लू गैस से अलग कर वातावरण में जाने से रोकती है।
  • 2015 में FGD को अनिवार्य किया गया था, लेकिन अधिकांश संयंत्रों ने अब तक इसे लागू नहीं किया है।
  • CREA के अनुसार, कोयला संयंत्रों से भारत में शीतकालीन प्रदूषण का 12% और क्रॉस-बाउंडरी शहरी प्रदूषण का 16% तक योगदान होता है।
  • NTPC ने बिना अतिरिक्त बंदी के 20 GW संयंत्रों में FGD लगाए हैं।

भारत कोयले पर निर्भर ऊर्जा अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ रहा है, लेकिन इस प्रक्रिया में यदि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय टाल दिए जाते हैं, तो यह केवल पर्यावरण नहीं, बल्कि लाखों लोगों के स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर संकट बन सकता है। अब समय है जब नीति निर्माताओं को “जीविका बनाम जीवन” के तर्क से आगे बढ़कर एक संतुलित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना होगा।

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