कोकण रेलवे का भारतीय रेलवे में विलय – एक नया युग

कोकण रेलवे भारत के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण रेलवे मार्ग है, जो महाराष्ट्र के रोहा से लेकर कर्नाटक के मंगलूरु और केरल तक फैला है। इसकी कुल लंबाई 741 किलोमीटर है और इसे भारत की सबसे खूबसूरत और रणनीतिक दृष्टि से अहम रेलवे लाइनों में से एक माना जाता है।
स्थापना और इतिहास
कोकण रेलवे की स्थापना 1990 में रेल मंत्रालय के तहत एक विशेष प्रयोजन संस्था (Special Purpose Vehicle) के रूप में की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य पश्चिमी घाट की दुर्गम पहाड़ियों में रेल मार्ग का निर्माण करना था। इस परियोजना ने 1998 में आधिकारिक रूप से संचालन शुरू किया और जल्द ही यह मार्ग यात्रियों और माल ढुलाई दोनों के लिए जीवन रेखा बन गया।
संयुक्त उद्यम मॉडल
कोकण रेलवे कॉर्पोरेशन लिमिटेड (KRCL) को एक संयुक्त उद्यम के रूप में स्थापित किया गया था, जिसमें भारत सरकार की 51% हिस्सेदारी थी। महाराष्ट्र की 22%, कर्नाटक की 15% और गोवा व केरल की 6-6% हिस्सेदारी थी। यह एक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य कर रही थी और इसकी वित्तीय एवं संचालन व्यवस्था भारतीय रेलवे से अलग थी।
विलय की आवश्यकता क्यों पड़ी?
हालांकि संचालन के स्तर पर कोकण रेलवे सफल रहा, लेकिन वित्तीय समस्याओं से यह वर्षों से जूझ रहा था। सीमित राजस्व और बढ़ती अधोसंरचना की माँगों ने इसके विस्तार और उन्नयन को कठिन बना दिया था। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में भारतीय रेलवे के साथ विलय की सहमति दी है, जिससे इस मार्ग को बड़े निवेश आधार का लाभ मिल सकेगा।
महाराष्ट्र की शर्तें
महाराष्ट्र सरकार ने विलय को दो मुख्य शर्तों के अधीन स्वीकार किया है:
- कोकण रेलवे का नाम विलय के बाद भी बना रहेगा।
- राज्य सरकार को 394 करोड़ रुपये की शुरुआती निवेश राशि की भरपाई की जाएगी। केंद्र सरकार ने इन दोनों शर्तों को स्वीकार कर लिया है।
यात्रियों और क्षेत्रीय विकास पर प्रभाव
विलय के बाद यात्रियों को बेहतर आधारभूत ढांचा, ट्रेनों की अधिक आवृत्ति, बेहतर सुरक्षा सुविधाएं, और भारतीय रेलवे के अन्य मार्गों से बेहतर कनेक्टिविटी मिलने की संभावना है। इससे क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था, पर्यटन और रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी।
आगे की प्रक्रिया
अब यह मामला रेलवे बोर्ड के पाले में है, जो प्रशासनिक, वित्तीय और कानूनी प्रक्रियाओं को पूरा कर विलय को अमलीजामा पहनाएगा। कर्मचारियों की भूमिका, सेवा अनुबंध और संचालन क्षेत्रों में बदलाव संभव हैं, लेकिन इसका अंतिम परिणाम यात्रियों के लिए लाभकारी होगा।
कोकण रेलवे का यह विलय न केवल एक संगठनात्मक बदलाव है, बल्कि यह पश्चिमी भारत की विकास यात्रा में एक नया अध्याय भी है।