कालेश्वरम सरस्वती पुष्करालु : जहाँ आस्था, इतिहास और आध्यात्म एकत्रित होते हैं

कालेश्वरम सरस्वती पुष्करालु : जहाँ आस्था, इतिहास और आध्यात्म एकत्रित होते हैं

तेलंगाना के कोने में स्थित कालेश्वरम, एक ऐसा मंदिर नगर है जो केवल नक्शे पर नहीं बल्कि श्रद्धा की स्मृति में अंकित है। यहाँ हर 12 वर्षों में सरस्वती पुष्करालु नामक एक दिव्य अवसर होता है, जो हजारों श्रद्धालुओं को पवित्र त्रिवेणी संगम की ओर खींच लाता है — जहाँ अदृश्य सरस्वती, विशाल गोदावरी और प्रवाहमान प्राणहिता का मिलन होता है।

त्रिवेणी संगम और ‘अंतरवाहिनी’ सरस्वती की महिमा

सरस्वती कोई साधारण नदी नहीं, बल्कि एक ‘अंतरवाहिनी’ है — एक अदृश्य जलधारा जो धरती के नीचे बहती है। श्रद्धालु मानते हैं कि इस संगम में स्नान करने से न केवल पापों से मुक्ति मिलती है, बल्कि मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त होता है। कालेश्वरम दक्षिण भारत का एकमात्र स्थल है जहाँ तीन नदियाँ एक साथ मिलती हैं, और तीनों पुष्करालु — गोदावरी, प्राणहिता और सरस्वती — यहीं मनाई जाती हैं।

कालेश्वरम मंदिर: यम और शिव का दिव्य संगम

श्री कालेश्वर मुक्तेश्वर स्वामी मंदिर में दो शिवलिंग एक ही मंच पर स्थापित हैं — कालेश्वर (यम) और मुक्तेश्वर (शिव)। मान्यता है कि यमराज ने यहाँ तपस्या कर शिव की कृपा पाई और उनके साथ स्थान प्राप्त किया। यहाँ की एक अनोखी विशेषता यह है कि मुक्तेश्वर लिंगम की जलाभिषेक के दौरान कोई भी जल बाहर नहीं आता, बल्कि अदृश्य रूप से जमीन में समा जाता है — इसे सरस्वती का उद्गम स्थल माना जाता है।

श्रद्धा और परंपरा की जीवंत झलक

गांवों से बैलगाड़ियों में आए श्रद्धालु, संगीत, नृत्य और महा आरती की अलौकिक छटा, मंदिर परिसर में चंडी होमं — ये सब मिलकर इस पर्व को महज धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक अनुभव बना देते हैं। तेलंगाना की लोक कला और भक्ति भाव में रची-बसी हर संध्या सरस्वती घाट पर एक अद्वितीय वातावरण रचती है।

प्रशासनिक तैयारियाँ और बुनियादी विकास

सरकार द्वारा ₹40 करोड़ की व्यवस्था और ₹200 करोड़ की आगामी योजनाएँ कालेश्वरम को आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की ओर संकेत करती हैं। नए बने सरस्वती घाट पर एक 17 फुट की देवी प्रतिमा और 100 कमरों की धर्मशाला श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए उद्घाटित की गई है। सुरक्षा के लिहाज़ से 3,500 पुलिसकर्मी, 200 से अधिक सीसीटीवी कैमरे और ड्रोन निगरानी में लगे हुए हैं।

पारंपरिकता और आधुनिकता का संगम

आज भी जहाँ एक ओर हाईवे 353C से बसों और ट्रकों का आवागमन है, वहीं दूसरी ओर पारंपरिक बैलगाड़ियों से आने वाले श्रद्धालु उस श्रद्धा और सादगी की याद दिलाते हैं, जो कालेश्वरम की आत्मा है। आईटी मंत्री डी. श्रीधर बाबू और मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी की सक्रिय भूमिका इस आयोजन को सफल और सुव्यवस्थित बनाने में सहायक रही।

भविष्य की दिशा: आस्था से पर्यटन की ओर

पर्यटन प्रेमियों का सुझाव है कि महाराष्ट्र के वडधाम जीवाश्म उद्यान, मुलुगु जिले के रामप्पा मंदिर और लक्ष्नावरम द्वीप को जोड़कर कालेश्वरम को एक आध्यात्मिक व पारिस्थितिक केंद्र के रूप में विकसित किया जाए। यह क्षेत्र भले ही आधारभूत संरचनाओं में पिछड़ा हो, लेकिन श्रद्धा की ऊँचाइयाँ इसे विशेष बनाती हैं।

कालेश्वरम का संदेश

कालेश्वरम सिर्फ एक स्थान नहीं, एक अनुभव है। जहाँ अदृश्य सरस्वती की उपस्थिति हो, यम और शिव एक साथ विराजमान हों, और जहाँ हर श्रद्धालु अपने भीतर कुछ बदलता हुआ महसूस करे — वहाँ केवल धर्म नहीं, बल्कि जीवन का दर्शन भी उपस्थित होता है।

Originally written on May 26, 2025 and last modified on May 26, 2025.

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