उष्णकटिबंधीय पारितंत्रों पर आक्रामक पौधों का संकट: जैव विविधता और आजीविका पर खतरा

जर्नल Nature Reviews Biodiversity में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि मानव गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से आक्रामक विदेशी पौधों (Alien Plant Species) का फैलाव उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ रहा है। यह न केवल स्थानीय जैव विविधता को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि आजीविका, पारिस्थितिक संतुलन और जलवायु स्थिरता पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है।

क्या हैं विदेशी आक्रामक पौधे?

विदेशी पौधे वे हैं जो किसी क्षेत्र में स्वाभाविक रूप से नहीं पाए जाते, लेकिन मानवीय हस्तक्षेप से वहाँ पहुंच जाते हैं। ये पौधे नए क्षेत्रों में स्थायी रूप से बस जाते हैं, कई बार स्थानीय प्रजातियों की तुलना में अधिक प्रभावशाली बन जाते हैं और मूल पारिस्थितिकी को अपदस्थ कर देते हैं।

मुख्य निष्कर्ष और प्रभावित क्षेत्र

  • अध्ययन के अनुसार, Greater Tropics (जो पृथ्वी की 60% भूमि को कवर करता है) में लगभग 9,831 विदेशी पौधों की पहचान की गई है।
  • द्वीप क्षेत्रों जैसे गुआम (66.5%) और ताहिती (73.8%) में विदेशी पौधों की संख्या स्थानीय प्रजातियों से अधिक हो चुकी है।
  • भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका जैसे क्षेत्रों में आक्रामक पौधों के कारण पारिस्थितिक तंत्र में तीव्र परिवर्तन देखे जा रहे हैं।
  • भारत में वर्तमान में प्राकृतिक क्षेत्रों का 66% (लगभग 7.5 लाख वर्ग किमी) आक्रामक पौधों से प्रभावित है।

प्रमुख आक्रामक प्रजातियाँ

  • Lantana camara, Chromolaena odorata, Prosopis juliflora, Brachiaria decumbens जैसी प्रजातियाँ उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तीव्रता से फैल रही हैं।
  • Prosopis juliflora जैसे पौधे न केवल मूल वनस्पतियों को हटाते हैं, बल्कि शाकाहारी जीवों के भोजन स्रोतों को भी बदलते हैं, जिससे जैव श्रृंखला पर प्रभाव पड़ता है।

जलवायु परिवर्तन और आक्रामकता

  • अत्यधिक गर्मी, सूखा, जंगल की कटाई और बढ़ते CO2 स्तर विदेशी पौधों के लिए अनुकूल वातावरण बना रहे हैं।
  • अमेज़न जैसे नम पारितंत्रों में जलवायु तनाव और आग की घटनाओं से इन पौधों का प्रसार और तेज़ हो गया है।

भारत की स्थिति और चुनौतियाँ

  • भारत में सवाना और खुले जंगलों में वृक्षीय घनत्व बढ़ने से आग की घटनाएं बढ़ी हैं, जो फिर विदेशी पौधों के और प्रसार को बढ़ावा देती हैं।
  • Blackbuck जैसे जानवर Prosopis juliflora के बीज फैलाने में मदद करते हैं, जिससे स्थानीय पौधों का स्थानांतरण और कठिन हो जाता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • विदेशी पौधों की 21% प्रजातियाँ अफ्रीका के भीतर ही अन्य क्षेत्रों से आई हैं — इन्हें ‘देशी आक्रांता’ (native invaders) कहा जाता है।
  • भारत में आक्रामक पौधों पर नियंत्रण की अनुमानित लागत 2023 में देश के पर्यावरण बजट से 36 गुना (US$13.5 बिलियन) आंकी गई है।
  • Greater Tropics में विश्व की अधिकांश जैव विविधता और एक अरब से अधिक लोगों की आजीविका जुड़ी हुई है।

समाधान और सुझाव

वैज्ञानिकों ने दीर्घकालिक, अंतरविषयक शोध, बेहतर दस्तावेजीकरण और पारिस्थितिक पुनर्स्थापन की सिफारिश की है। उन्होंने विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण (Global South) में जागरूकता बढ़ाने और नीति-निर्माताओं को जलवायु और पारिस्थितिकी के सम्मिलन पर ध्यान देने की अपील की है।
यह अध्ययन न केवल एक वैज्ञानिक चेतावनी है, बल्कि वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर पारिस्थितिकीय नीति और संरक्षण प्रयासों में पुनः सोचने की जरूरत को रेखांकित करता है।

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