ईरान से लाखों अफ़ग़ान शरणार्थियों की वापसी: संकट और राजनीति का संगम

ईरान से अब तक 13 लाख से अधिक अफ़ग़ान शरणार्थियों की देश वापसी हो चुकी है, और वर्ष 2025 में यह संख्या 15.7 लाख के पार पहुंच गई है। यह स्थिति संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) की हालिया रिपोर्ट में सामने आई है। ईरान, जो विश्व का सबसे बड़ा शरणार्थी आबादी वाला देश है, में शरणार्थियों का अधिकांश हिस्सा अफ़ग़ान नागरिक हैं। एक अनुमान के अनुसार वहां करीब 4 से 6 मिलियन अफ़ग़ान रहते हैं। लेकिन यह भारी संख्या केवल वर्तमान परिस्थितियों की देन नहीं है, बल्कि इसके पीछे चार दशकों की जटिल ऐतिहासिक, सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि है।

अफ़ग़ान संकट की दीर्घकालिक पृष्ठभूमि

अफ़ग़ानिस्तान वर्ष 1979 में सोवियत आक्रमण के बाद से ही लगातार संघर्षों और अस्थिरता का सामना कर रहा है। गृहयुद्ध, अमेरिकी नेतृत्व वाला हस्तक्षेप, तालिबान विद्रोह, और हाल में 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी – इन सभी घटनाओं ने लाखों लोगों को अपने घरों से भागने के लिए मजबूर किया है। ईरान, अफ़ग़ानिस्तान का पड़ोसी देश होने के नाते, स्वाभाविक रूप से एक प्रमुख गंतव्य बन गया।
विशेष रूप से 2021 के बाद अफ़ग़ान शरणार्थियों का सैलाब आया, जब तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद महिलाओं और अल्पसंख्यकों की स्थिति और भी खराब हो गई। प्रतिदिन करीब 20,000 अफ़ग़ान नागरिक ईरान की सीमा पार कर रहे हैं।

कानूनी स्थिति और जीवन की वास्तविकता

ईरान में अफ़ग़ान शरणार्थियों की कानूनी स्थिति विविध है। ‘अमायेश कार्ड’ धारकों को सीमित सेवाओं जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा का अधिकार है, लेकिन इनकी संख्या केवल 7.8 लाख है। कुछ के पास वैध पासपोर्ट और वीजा हैं, जबकि तीसरी श्रेणी ‘हेडकाउंट स्लिप’ धारकों की है, जिनकी वैधता मार्च 2025 में समाप्त हो चुकी है।
इनके अलावा एक बड़ी संख्या में लोग बिना दस्तावेज़ों के रह रहे हैं। ऐसे शरणार्थी रोजाना गिरफ्तारी और निर्वासन के खतरे में जीते हैं और उन्हें निर्माण, कृषि, घरेलू कार्य जैसे असंगठित क्षेत्रों में शोषणकारी परिस्थितियों में काम करना पड़ता है।

हालिया निर्वासन की वजहें

ईरान में चल रही आर्थिक बदहाली, जो अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और कुप्रबंधन के चलते और भी बिगड़ गई है, शरणार्थियों की बढ़ती संख्या के खिलाफ जन असंतोष को जन्म दे रही है। ईरान सरकार सार्वजनिक सेवाओं पर बोझ और बेरोजगारी के लिए खासकर गैरदस्तावेज़ी अफ़ग़ानों को ज़िम्मेदार ठहराती है।
जून 2025 में ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बढ़ने के बाद, अफ़ग़ान शरणार्थियों पर ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के खतरे का आरोप लगाया गया। इससे निर्वासन की प्रक्रिया तेज हो गई। जनवरी 2024 के क़रमन हमलों में अफ़ग़ानों की भूमिका के आरोपों के बाद से अफ़ग़ान घरों और कार्यस्थलों पर छापे भी मारे गए हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ईरान में अनुमानित 4 से 6 मिलियन अफ़ग़ान शरणार्थी रहते हैं, जो दुनिया में किसी भी देश में सबसे अधिक है।
  • ‘अमायेश कार्ड’ ईरान सरकार द्वारा 2003 से पहले आए अफ़ग़ान शरणार्थियों को दिया जाता है।
  • ISIS-K, जो अफ़ग़ानिस्तान में सक्रिय है, को जनवरी 2024 के क़रमन बम विस्फोटों का जिम्मेदार माना गया।
  • ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच हेलमंद नदी के जल बंटवारे को लेकर भी तनाव बना रहता है।

ईरान में अफ़ग़ान शरणार्थियों की स्थिति एक जटिल मानवीय और राजनीतिक समस्या है, जिसमें क्षेत्रीय अस्थिरता, आंतरिक राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बड़ी भूमिका है। हालांकि सरकार ‘गैरकानूनी’ शरणार्थियों को निशाना बनाने का दावा करती है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। इस संकट का समाधान केवल सीमा पर नियंत्रण से नहीं, बल्कि अफ़ग़ानिस्तान में स्थिरता, समावेशन और विकास के दीर्घकालिक प्रयासों से ही संभव होगा।

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