आयकर विधेयक 2025: रिफंड और डिविडेंड कटौती से जुड़ी महत्वपूर्ण सिफारिशें

लोकसभा की चयन समिति ने आयकर विधेयक, 2025 की समीक्षा के बाद 285 सुझावों के साथ अपनी रिपोर्ट को मंजूरी दी है। यह नया विधेयक आयकर अधिनियम, 1961 की जगह लेगा और सरकार इसे 1 अप्रैल 2026 से लागू करने का लक्ष्य रख रही है। समिति के अधिकांश सुझावों का उद्देश्य विधेयक की भाषा को सरल बनाना और मौजूदा कानून के साथ सुसंगतता बनाए रखना है।
रिफंड से संबंधित प्रावधान में राहत
विधेयक के प्रारंभिक मसौदे में विवादास्पद प्रावधान था कि अगर रिटर्न नियत तारीख के बाद दाखिल किया जाए, तो रिफंड नहीं मिलेगा। यह नियम अध्याय XX के तहत रिफंड पाने के लिए निर्धारित किया गया था। साथ ही, धारा 433 में यह भी कहा गया था कि रिफंड केवल रिटर्न दाखिल करते समय ही मांगा जा सकता है, जिससे विरोधाभास उत्पन्न हो गया था।
चयन समिति ने अब धारा 263(1)(ix) को हटाने की सिफारिश की है, जिससे करदाताओं को अनावश्यक मुकदमेबाजी से राहत मिलेगी। इससे यह सुनिश्चित होता है कि नया कानून मौजूदा आयकर अधिनियम की नीति के अनुरूप ही रिफंड की अनुमति देगा।
इंटर-कॉर्पोरेट डिविडेंड कटौती की बहाली
मौजूदा आयकर अधिनियम में कंपनियों को धारा 80M के तहत इंटर-कॉर्पोरेट डिविडेंड पर कटौती का लाभ मिलता है, विशेषकर वे कंपनियाँ जो धारा 115BAA के तहत विशेष कर दर का लाभ उठाती हैं। यह प्रावधान नए विधेयक के मसौदे में गलती से छूट गया था। समिति ने अब इस कटौती को पुनः शामिल करने की सिफारिश की है।
NIL TDS प्रमाणपत्र की सुविधा
वर्तमान कानून में करदाताओं को निचली TDS दर का प्रमाणपत्र प्राप्त करने का अधिकार है। नए विधेयक में केवल कम TDS कटौती का विकल्प ही था। अब समिति ने NIL TDS प्रमाणपत्र की भी अनुमति की सिफारिश की है। यह उन करदाताओं, जैसे कि नुकसान में चल रही कंपनियाँ या करमुक्त संस्थाएँ (जैसे चैरिटेबल ट्रस्ट), के लिए अत्यंत लाभकारी होगा जिन पर वास्तव में कोई कर लागू नहीं होता।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- आयकर अधिनियम, 1961 को 1 अप्रैल 1962 से लागू किया गया था और इसमें अब तक 4,000 से अधिक संशोधन हो चुके हैं।
- नया आयकर विधेयक, 2025 पहली बार फरवरी 2025 में संसद में प्रस्तुत किया गया था।
- चयन समिति के अध्यक्ष: बैजयंत पांडा (BJP सांसद)
- रिफंड पर रोक लगाने वाला विवादास्पद प्रावधान 263(1)(ix) हटाने की सिफारिश की गई है।
- विधेयक में अब NIL TDS प्रमाणपत्र की सुविधा जोड़ने की सिफारिश की गई है।
यह सिफारिशें करदाताओं के लिए नई कर व्यवस्था को अधिक अनुकूल, पारदर्शी और व्यावहारिक बनाने की दिशा में एक सराहनीय कदम हैं। अब यह केंद्र सरकार पर निर्भर है कि इन सिफारिशों को कितना अपनाया जाता है और आगामी मानसून सत्र में विधेयक किस रूप में पारित होता है।