आजाद पट्टन जलविद्युत परियोजना पर भारत को आपत्ति क्यों है?
आज़ाद पट्टन परियोजना एक जल विद्युत परियोजना है जिसका निर्माण पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में किया जायेगा। यह परियोजना झेलम नदी पर निर्मित की जाएगी और इसके द्वारा 700 मेगावाट पनबिजली पैदा की जाएगी। इस परियोजना की लागत 1.35 बिलियन अमरीकी डालर है। इस परियोजना का निर्माण चीन और पाकिस्तान द्वारा संयुक्त रूप से चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के एक भाग के रूप में किया जायेगा। CPEC चीन सरकार का एक फ्लैगशिप प्रोजेक्ट है जो पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट और चीन के शिनजियांग को जोड़ता है।
आजाद पट्टन जलविद्युत परियोजना
यह झेलम नदी पर बनने वाली पांच जलविद्युत योजनाओं में से एक है। अन्य चार परियोजनाएं कोहाला, महल, करोट और चकोथी हटियन हैं। इनमें से कोहाला, आजाद पट्टन और करोट को CPEC नेटवर्क के तहत बनाया जायेगा। आजाद पट्टन को 2024 तक कमीशन किया जायेगा।
आज़ाद पट्टन को लेकर भारत की आपत्ति
- इस बांध का निर्माण उस क्षेत्र में किया जायेगा, जिस पर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद है।इससे पहले भारत ने गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र में सिंधु नदी पर डायमर-बाशा बांध के निर्माण पर भी आपत्ति जताई थी।
- भारत के अनुसार, चीन और पाकिस्तान क्षेत्र में अपनी उपस्थिति मजबूत कर रहे हैं।
- पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लागू की जा रही परियोजनाएं अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का पालन नहीं करती हैं।
- ये परियोजनाएँ पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में चीनियों को भू-राजनीतिक उत्तोलन प्रदान करती हैं।
- इससे भू-राजनीतिक लाभ उठाने के लिए आर्थिक शक्ति का उपयोग करने की चीन की रणनीति को मजबूती मिलेगी।
इससे पहले ईरान में भी इसी रणनीति का इस्तेमाल किया गया था। चीन और ईरान ने भारत की सहायता के बिना चाबहार रेल परियोजना में आगे बढ़ने का निर्णय लिया था। दोनों देशों ने उनके इस कदम के लिए भारत की ओर से फंडिंग में देरी का हवाला दिया। चाबहार, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का मुकाबला करने के लिए भारत का महत्वपूर्ण कदम था।