आईआईटी बॉम्बे और पुणे ने विकसित की स्मार्ट सिंचाई योजना, सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल की बचत संभव

देश के दो प्रमुख अनुसंधान संस्थानों — भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे (IIT Bombay) और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान पुणे (IITM Pune) — ने मिलकर एक अभिनव “स्मार्ट सिंचाई योजना” विकसित की है, जो सूखा प्रभावित क्षेत्रों में सिंचाई जल की खपत को 10 से 30 प्रतिशत तक कम करने में सक्षम है। यह योजना मौसम पूर्वानुमान, उपग्रह आधारित मिट्टी की नमी आंकड़े, और कम्प्यूटर सिमुलेशन के संयोजन पर आधारित है, जो किसानों को जल प्रबंधन के लिए सटीक मार्गदर्शन देती है।
सिंचाई की भविष्यवाणी आधारित प्रणाली
आईआईटी बॉम्बे के सिविल इंजीनियरिंग विभाग और क्लाइमेट स्टडीज सेंटर के शोधकर्ताओं ने यह प्रणाली तैयार की है, जो जिला और उप-जिला स्तर पर तीन सप्ताह तक की सिंचाई आवश्यकताओं की भविष्यवाणी कर सकती है। सूखा प्रभावित क्षेत्रों में वर्षा की अनिश्चितता के कारण किसानों को भूजल पर निर्भर रहना पड़ता है, जो निरंतर घटता जा रहा है। ऐसे में यह योजना उन्हें पहले से यह जानने में मदद करती है कि कितनी वर्षा संभावित है और सिंचाई की आवश्यकता कितनी है।
नासिक और बांकुरा में हुआ पायलट अध्ययन
इस स्मार्ट सिंचाई मॉडल का पहला पायलट अध्ययन महाराष्ट्र के नासिक जिले में किया गया, जहां अंगूर उत्पादक कुछ किसानों ने स्थानीय मिट्टी की नमी सेंसर का उपयोग किया। इसके सफल परिणामों के बाद इस मॉडल को पश्चिम बंगाल के सूखा प्रभावित बांकुरा जिले के 12 उप-जिलों में लागू किया गया। वहां शोधकर्ताओं ने फसल की किस्म, विकास की अवधि, जड़ क्षेत्र की गहराई और पानी की जरूरतों को ध्यान में रखकर डेटा एकत्र किया।
कैसे काम करता है स्मार्ट मॉडल
इस योजना के तहत मौसम पूर्वानुमान और मिट्टी की नमी के आंकड़ों को एक कम्प्यूटर मॉडल में डाला जाता है, जो वर्षा की संभावना, मिट्टी की जलधारण क्षमता और फसलों की पानी की मांग का विश्लेषण करता है। यदि मॉडल बताता है कि अगले कुछ दिनों में वर्षा नहीं होगी, तो किसानों को सिंचाई करने की सलाह दी जाती है। वहीं अगर वर्षा की संभावना हो, तो सिंचाई टालने की सिफारिश की जाती है। इससे न केवल जल की बचत होती है, बल्कि फसल की वृद्धि भी नियंत्रित होती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- यह अध्ययन भारत सरकार के DST-Swarnajayanti Fellowship Scheme और पश्चिम बंगाल सरकार के पर्यावरण विभाग द्वारा वित्त पोषित किया गया है।
- मॉडल में मिट्टी की नमी के आंकड़े ग्लोबल सॉइल मैप्स और फील्ड सर्वे से लिए गए हैं।
- फसलों की जल आवश्यकताओं और वर्षा की जानकारी FAO और IMD के डेटाबेस से ली गई है।
- यह प्रणाली पौधों के प्राकृतिक जल ग्रहण तंत्र और जल संकट के समय उनकी प्रतिक्रिया को भी मॉडल करती है।
इस प्रकार, आईआईटी बॉम्बे और आईआईटीएम पुणे की इस पहल से किसानों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सिंचाई प्रबंधन का सशक्त उपकरण मिला है। न केवल यह जल संरक्षण को बढ़ावा देता है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से जूझते कृषि क्षेत्र को भी स्थायित्व प्रदान करता है।