आंध्र प्रदेश-तेलंगाना जल विवाद: बनाकाचेरला परियोजना पर बढ़ता संघर्ष

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना एक बार फिर जल विवाद के केंद्र में हैं — इस बार मुद्दा है बनाकाचेरला परियोजना, जो गोदावरी और कृष्णा नदी घाटियों को जोड़ने वाली एक महत्वाकांक्षी परियोजना है। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू की यह ड्रीम परियोजना है, जिसे उन्होंने 2014 में राज्यों के विभाजन के बाद प्रस्तावित किया था। अब सत्ता में वापसी के बाद, वे परियोजना को तेज़ी से आगे बढ़ाना चाहते हैं, लेकिन तेलंगाना का सख्त विरोध सामने आया है।

क्या है बनाकाचेरला परियोजना?

परियोजना का उद्देश्य गोदावरी नदी के वर्षा ऋतु में समुद्र में बह जाने वाले 2000 टीएमसी फुट पानी को कृष्णा बेसिन की ओर मोड़ना है, जिससे सूखाग्रस्त रायलसीमा क्षेत्र को राहत मिले। इसके तहत:

  • गोदावरी की बाढ़ का पानी पोलावरम बांध से विजयवाड़ा स्थित प्रकाशम बैराज तक लाया जाएगा।
  • वहां से इसे नहरों और लिफ्ट सिंचाई प्रणाली के ज़रिये बिल्लापल्ली जलाशय तक पहुंचाया जाएगा।
  • फिर नल्लमला जंगलों के नीचे सुरंगों के माध्यम से बनाकाचेरला जलाशय तक भेजा जाएगा।

इसका कुल अनुमानित खर्च ₹80,112 करोड़ है और इसके लिए 40,500 एकड़ भूमि अधिग्रहित की जानी है, जिसमें वनभूमि भी शामिल है।

आंध्र प्रदेश की दलीलें

  • नायडू सरकार का दावा है कि यह परियोजना केवल “अवशिष्ट जल” का उपयोग करती है, जो अन्य राज्यों की आवश्यकताओं के बाद समुद्र में चला जाता है।
  • उन्होंने 2013 की कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण और 1976 की बछावत ट्रिब्यूनल की संस्तुतियों का हवाला दिया, जिसमें संयुक्त आंध्र को 811 टीएमसी फुट पानी मिला था।
  • सरकार का मानना है कि यह परियोजना आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 के अनुरूप है और केवल अपने वैधानिक हिस्से और अवशिष्ट जल का उपयोग करती है।

तेलंगाना का विरोध

  • तेलंगाना का कहना है कि यह परियोजना पुनर्गठन अधिनियम का उल्लंघन है और इसका गोदावरी जल पर वैधानिक अधिकार सिर्फ 500 टीएमसी फुट है।
  • मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी का कहना है कि ट्रिब्यूनलों ने अवशिष्ट जल का कोई उल्लेख नहीं किया है, और यह परियोजना उनकी राज्य की जल सुरक्षा के लिए खतरा है।
  • परियोजना के लिए केंद्र की कोई मंजूरी या प्रभाव मूल्यांकन (EIA) नहीं हुआ है, और आंध्र इसे एकतरफा तरीके से आगे बढ़ा रहा है।

पर्यावरण विशेषज्ञों की राय

  • प्राकृतिक प्रवाह की दिशा में बदलाव से कृष्णा और गोदावरी डेल्टा में खारा पानी बढ़ सकता है, जिससे मछली पालन, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होगा।
  • सुरंगें नल्लमला जंगल की भूमि संरचना, जलस्तर और वन्यजीवों पर गंभीर असर डालेंगी, विशेषकर बाघों और हाथियों जैसे संकटग्रस्त प्रजातियों पर।
  • स्थानीय आदिवासी समुदायों की आजीविका भी प्रभावित हो सकती है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2013 के कृष्णा जल विवाद न्यायाधिकरण ने संयुक्त आंध्र को 1005 टीएमसी, कर्नाटक को 907 और महाराष्ट्र को 666 टीएमसी पानी आवंटित किया था।
  • गोदावरी जल विवाद न्यायाधिकरण ने 1980 में आंध्र को 1486 टीएमसी पानी आवंटित किया।
  • पोलावरम परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित किया गया है, लेकिन इससे जुड़े कार्यों के लिए पर्यावरण मंजूरी आवश्यक होती है।
  • नल्लमला वन क्षेत्र भारत के कुछ प्रमुख जैव विविधता क्षेत्रों में से एक है।

परियोजना की वर्तमान स्थिति

30 जून को केंद्रीय पर्यावरण विशेषज्ञ समिति (EAC) ने इस परियोजना को पर्यावरणीय स्वीकृति देने से इनकार कर दिया। समिति ने आंध्र को निर्देश दिया कि वह:

  • जल आयोग से परामर्श ले,
  • पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन (EIA) कराए,
  • और अन्य राज्यों के साथ चर्चा कर स्थिति स्पष्ट करे।

अभी परियोजना प्रस्ताव को आंध्र सरकार को संशोधन के लिए वापस भेजा गया है।
यह विवाद केवल दो राज्यों का जल विवाद नहीं, बल्कि भारत के जल संसाधनों, पर्यावरणीय न्याय और संघीय ढांचे की परख भी है। आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह मुद्दा सहयोग और पारदर्शिता से सुलझता है या संघर्ष और कानूनी चुनौतियों की ओर बढ़ता है।

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