अवैध प्रवासियों पर असम की नई रणनीति: 1950 के कानून के पुनः प्रयोग की तैयारी

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक अहम घोषणा करते हुए कहा कि राज्य सरकार एक पुराने और लंबे समय से निष्क्रिय कानून — अवैध प्रवासियों (असम से निष्कासन) अधिनियम, 1950 — को पुनः लागू करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। यह अधिनियम जिला उपायुक्त जैसे स्थानीय अधिकारियों को बिना न्यायालय की प्रक्रिया के सीधे अवैध प्रवासियों को राज्य से निष्कासित करने की शक्ति देता है।
क्या है यह 1950 का अधिनियम?
‘इमिग्रेंट्स (एक्सपल्शन फ्रॉम असम) एक्ट, 1950’ स्वतंत्रता के शुरुआती वर्षों में संसद द्वारा पारित किया गया था। विभाजन के बाद असम में पूर्वी बंगाल (बाद में पूर्वी पाकिस्तान और अब बांग्लादेश) से भारी संख्या में प्रवास हुआ, जिससे सामाजिक और जनजातीय संतुलन पर प्रभाव पड़ा। इस संकट से निपटने के लिए यह कानून 1 मार्च 1950 को लागू किया गया।
इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी भी व्यक्ति या समूह को असम से निष्कासित कर सकती है, यदि उनकी उपस्थिति जनहित के लिए हानिकारक हो या अनुसूचित जनजातियों के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हो। साथ ही, सरकार इन अधिकारों को जिला उपायुक्तों को भी सौंप सकती है।
कानून की प्रासंगिकता और न्यायिक पुष्टि
हालांकि समय के साथ यह कानून उपयोग में नहीं लाया गया, लेकिन 1979 में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (AASU) द्वारा शुरू किए गए असम आंदोलन ने अवैध प्रवास के मुद्दे को दोबारा प्रमुखता दी। इसके परिणामस्वरूप 1985 में असम समझौता हुआ, जिसमें तय किया गया कि 24 मार्च 1971 के बाद असम में प्रवेश करने वाले सभी लोग ‘विदेशी’ माने जाएंगे।
यह अधिनियम फॉरेनर्स एक्ट, 1946; सिटिजनशिप एक्ट की धारा 6A; पासपोर्ट एक्ट, 1967 जैसे आधुनिक कानूनों से भी पहले का है। अक्टूबर 2024 में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने इस अधिनियम की वैधता की पुष्टि की और कहा कि यह अब भी लागू है तथा नागरिकता और विदेशी अधिनियमों के साथ मिलकर कार्य कर सकता है।
मुख्यमंत्री का बयान और राज्य सरकार की योजना
मुख्यमंत्री सरमा ने बताया कि यह कानून राज्य के ध्यान में अब हाल ही में आया है और सरकार इसे प्रभाव में लाने की तैयारी में जुट गई है। उन्होंने स्पष्ट किया, “अगर अब कोई विदेशी के रूप में पहचाना गया, तो हम उसे न्यायाधिकरण नहीं भेजेंगे, बल्कि सीधे निष्कासित करेंगे।”
उन्होंने यह भी कहा कि जिन्होंने पहले ही न्यायालय की शरण ली है, उन पर यह कानून लागू नहीं होगा। NRC की जटिलताओं के कारण अवैध प्रवासियों की पहचान की प्रक्रिया धीमी हो गई थी, जिसे अब इस अधिनियम के तहत तेज किया जाएगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- यह अधिनियम 1 मार्च 1950 को लागू हुआ था।
- जिला उपायुक्त को सीधे निष्कासन का अधिकार देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2024 में इसे वैध ठहराया।
- यह अधिनियम अब भी नागरिकता और विदेशी अधिनियमों के साथ लागू किया जा सकता है।
- असम समझौते (1985) के अनुसार 24 मार्च 1971 के बाद आने वाले सभी प्रवासी ‘विदेशी’ माने जाते हैं।