अरब सागर की गहराइयों से नई खोज: स्मिथ्स विच ईल की पहचान

भारत के समुद्री जैवविविधता अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण प्रगति दर्ज की गई है। जनवरी 2024 में, भारत के दक्षिणी तट पर मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों द्वारा एक असामान्य जीव को पकड़ा गया — एक लम्बी, रिबन जैसी अजीब सी दिखने वाली ईल। पहली नजर में ही वैज्ञानिकों का ध्यान इस पर गया, और जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि यह एक नई और पहले अज्ञात प्रजाति है। वैज्ञानिक परमासिवम कोडीश्वरन और टी. टी. अजीत कुमार द्वारा इस प्रजाति का वैज्ञानिक नाम Facciolella smithi रखा गया, प्रसिद्ध मछली विज्ञानी डेविड जी. स्मिथ के सम्मान में।
स्मिथ्स विच ईल की विशिष्ट शारीरिक बनावट
स्मिथ्स विच ईल को उसकी शारीरिक बनावट और रंग-रूप के कारण अन्य ज्ञात ईलों से अलग पहचाना गया है:
- शरीर की संरचना: इसका शरीर पतला और रिबन जैसा होता है, जिसकी लंबाई लगभग दो फीट तक होती है, जिससे यह गहरे समुद्र में आसानी से तैर सकती है।
- रंग-रूप: इसका शरीर दो रंगों में विभाजित होता है — ऊपरी हिस्सा गहरा भूरा और निचला हिस्सा दूधिया सफेद, जो समुद्र की गहराई में छिपने में सहायक हो सकता है।
- सिर और थूथन: इसका सिर बड़ा और थूथन बत्तख की चोंच जैसा होता है, जो इसे प्राचीन जीवों की तरह दिखाता है। संभवतः यह थूथन इसे समुद्री तल में भोजन खोजने में मदद करता है।
- दृष्टि: इसकी आंखें अपेक्षाकृत छोटी होती हैं — यह गहरे, अंधेरे वातावरण में कम दृश्य संकेतों के अनुकूलन को दर्शाता है।
- दांत और गलफड़े: इसके मुंह में नुकीले कोन जैसी आकृति वाले दांत होते हैं, जो कोमल या फिसलनदार शिकार को पकड़ने में सहायक होते हैं। इसके गलफड़े अर्धचंद्राकार होते हैं।
- पूंछ पुनर्जनन: अधिकांश नमूनों में पुनः उगी हुई पूंछ देखने को मिली, जिससे ज्ञात होता है कि यह प्रजाति शिकारियों या अन्य खतरों से जूझने के बाद पुनर्निर्माण की क्षमता रखती है।
आवास और गहराई
यह ईल समुद्र की गहराई में 260 से 460 मीटर (850 से 1,500 फीट) तक पाई गई है। यह क्षेत्र ठंडा, अंधकारमय और उच्च दाब वाला होता है, जो इसे आमतौर पर मानव दृष्टि से दूर रखता है। ऐसा माना जाता है कि यह ईल समुद्री तल पर रहती है या नरम तलछट में खुदाई करके छिपती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- Facciolella smithi का नाम प्रसिद्ध अमेरिकी मछली विज्ञानी डेविड जी. स्मिथ के नाम पर रखा गया है।
- यह ईल पहली बार जनवरी 2024 में भारत के दक्षिणी तट पर पकड़ी गई थी।
- ICAR-NBFGR ने इसे गहराई में पाई जाने वाली 16वीं नई ईल प्रजाति के रूप में घोषित किया है।
- यह प्रजाति 260–460 मीटर की गहराई में पाई जाती है, जो समुद्र के मध्य स्तर में आता है।
खोज का महत्व
इस खोज का महत्व केवल एक नई प्रजाति के रूप में नहीं है, बल्कि यह गहरे समुद्र के जैविक और पारिस्थितिकीय रहस्यों को समझने का एक नया द्वार खोलती है। गहरे समुद्र की जीवनशैली, पर्यावरणीय अनुकूलन और पुनर्जनन जैसे गुण वैज्ञानिकों को विकासात्मक अध्ययन और दवा विज्ञान के क्षेत्र में नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने इस ईल की पोषणीय संरचना पर भी अध्ययन शुरू किया है, जिससे संभावित औषधीय तत्वों की खोज हो सकती है। यह खोज न केवल विज्ञान की दृष्टि से बल्कि भारत की समुद्री विविधता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।
स्मिथ्स विच ईल हमें यह याद दिलाती है कि हमारे महासागर अब भी अनगिनत रहस्यों को समेटे हुए हैं, जो भविष्य में विज्ञान और मानवता के लिए नई संभावनाएं उजागर कर सकते हैं।