अब NIRF रैंकिंग में अनैतिक शोध पर कटेगा अंक: रिट्रैक्टेड पेपर्स पर नकारात्मक वेटेज लागू

भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की गुणवत्ता को मापने वाली नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) ने 2024 से एक बड़ा बदलाव किया है। पहली बार NIRF उन शोध पत्रों पर नकारात्मक अंक देगा जिन्हें पिछले तीन वर्षों में किसी जर्नल ने रिट्रैक्ट (वापस लिया) किया हो — साथ ही उन पेपरों से प्राप्त उद्धरण (citations) भी दंड के दायरे में आएंगे।
क्यों ज़रूरी है यह कदम?
NIRF का प्रबंधन कर रही नेशनल बोर्ड ऑफ एक्रिडिटेशन (NBA) के अध्यक्ष डॉ. अनिल सहस्रबुद्धे ने कहा कि यह निर्णय शोध की नैतिकता (ethics) को बढ़ावा देने के लिए लिया गया है। उन्होंने स्पष्ट किया, “अगर संस्थान अपने शोध प्रकाशनों की संख्या का श्रेय लेते हैं, तो रिट्रैक्टेड पेपर्स की जिम्मेदारी भी उन्हें लेनी चाहिए।”
रिट्रैक्शन क्या होता है?
जब कोई जर्नल किसी प्रकाशित शोधपत्र में गंभीर त्रुटि, डेटा फर्जीवाड़ा, छवि हेराफेरी या अन्य अनैतिक कृत्य पाता है, तो वह उस पेपर को वापस ले लेता है — इसे “retraction” कहा जाता है। हाल के वर्षों में भारत सहित दुनियाभर में रिट्रैक्शन की संख्या में तेजी आई है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- NIRF की शुरुआत: 2015 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा की गई।
- रैंकिंग के प्रमुख मापदंड: शिक्षण गुणवत्ता, अनुसंधान, व्यावसायिक अभ्यास, ग्रेजुएट आउटकम्स, और समावेशन।
- 2024 से नया मापदंड: रिट्रैक्टेड पेपर्स पर नकारात्मक अंक।
- 2025 में यह दंड और अधिक कठोर किया जाएगा, लगातार रिट्रैक्शन वाले संस्थानों को ब्लैकलिस्ट भी किया जा सकता है।
संस्थानों की भूमिका और ज़िम्मेदारी
डॉ. सहस्रबुद्धे ने संस्थानों से सवाल किया, “आपके पास आंतरिक गुणवत्ता निगरानी इकाइयाँ हैं, तो वे क्या कर रही हैं?” उन्होंने यह भी कहा कि केवल शोध की संख्या नहीं, बल्कि गुणवत्ता और नैतिकता ही अब संस्थान की पहचान बनेंगी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्या हो रहा है?
- वैश्विक रैंकिंग एजेंसियाँ भी अब रिट्रैक्टेड पेपर्स को संज्ञान में ले रही हैं।
- जर्नल्स अब Large Language Models (जैसे ChatGPT) से बनाए गए, बिना खुलासे वाले शोधपत्रों की भी जांच कर रहे हैं।
- Paper mills — नकली शोधपत्र तैयार करने वाली संस्थाएँ — पर भी कठोर कार्रवाई हो रही है।
निष्कर्ष
यह नई नीति शोध की गुणवत्ता में पारदर्शिता और नैतिकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम है। यह न केवल संस्थानों को अधिक जवाबदेह बनाएगा, बल्कि छात्रों और शोधकर्ताओं को यह संदेश देगा कि वास्तविक और नैतिक शोध ही शिक्षा का भविष्य है। अब रैंकिंग में आगे बढ़ने के लिए शोधपत्रों की संख्या नहीं, उनकी सत्यता और वैधानिकता निर्णायक होगी।