अगले दलाई लामा की खोज: तिब्बती परंपरा, चीन की राजनीति और वैश्विक रणनीति के बीच एक निर्णायक क्षण

दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक प्रमुख, ने 30 जून को यह संकेत दिया कि इस संस्था की अगली कड़ी “किसी प्रकार के ढांचे” के अंतर्गत जारी रहेगी। यह घोषणा उनके 90वें जन्मदिवस से कुछ दिन पहले आई है, जो 6 जुलाई को है। इस बीच, धर्मशाला में 2 से 4 जुलाई के बीच एक बौद्ध धार्मिक सम्मेलन आयोजित होने वाला है, जिसमें उनके उत्तराधिकारी की प्रक्रिया को लेकर कोई औपचारिक घोषणा हो सकती है। यह उत्तराधिकार न केवल तिब्बती बौद्धों के लिए, बल्कि चीन, भारत और अमेरिका जैसे देशों के लिए भी अत्यंत महत्व रखता है।
दलाई लामा कौन हैं?
वर्तमान दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, 1935 में पूर्वोत्तर तिब्बत के ताक्तसेर गांव में जन्मे थे और मात्र दो वर्ष की उम्र में 13वें दलाई लामा का पुनर्जन्म घोषित किए गए। तिब्बती परंपरा में दलाई लामा को अवलोकितेश्वर (करुणा के बोधिसत्व) का अवतार माना जाता है। “दलाई लामा” का अर्थ होता है “ज्ञान का महासागर”।
15वीं शताब्दी से यह संस्था अस्तित्व में है, और 17वीं शताब्दी तक आते-आते इसे धार्मिक के साथ-साथ राजनीतिक अधिकार भी मिल गए। पुनर्जन्म की पहचान की परंपरा में पिछले दलाई लामा की वस्तुओं को पहचानना, ध्यान में देखी गई संकेतों की पुष्टि आदि शामिल होते हैं।
उत्तराधिकार पर विवाद और चीन की भूमिका
2011 में, दलाई लामा ने कहा था कि वे 90 वर्ष की उम्र में इस संस्था के भविष्य पर पुनर्विचार करेंगे। उन्होंने यह भी कहा था कि पुनर्जन्म की प्रक्रिया को “राजनीतिक हितों से बचाने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश” तय किए जाएंगे।
चीन का इस प्रक्रिया में दखल चिंता का कारण है। 1995 में, दलाई लामा द्वारा चुने गए पानचेन लामा — जो तिब्बती बौद्ध धर्म में दूसरा सबसे बड़ा पद होता है — को चीनी सरकार ने नकार दिया और अपने द्वारा नियुक्त ग्यात्सेन नोरबू को पानचेन लामा घोषित कर दिया। असली पानचेन लामा, जो मात्र छह वर्ष के थे, तब से सार्वजनिक रूप से कभी नहीं देखे गए हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- दलाई लामा को अवलोकितेश्वर का अवतार माना जाता है, जो करुणा के बोधिसत्व हैं।
- पुनर्जन्म की परंपरा में बौद्ध धर्म में पूर्व जीवन की स्मृतियों की पहचान महत्वपूर्ण होती है।
- तिब्बत से 1959 में पलायन के बाद दलाई लामा ने भारत में निर्वासित सरकार (CTA) की स्थापना की थी।
- 1995 में चीन ने दलाई लामा के चुने गए पानचेन लामा को खारिज कर अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया।
भारत, अमेरिका और तिब्बत की रणनीति
भारत, जहां दलाई लामा और CTA स्थित हैं, इस उत्तराधिकार प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा है। अमेरिका ने भी इस मुद्दे को चीन के साथ अपने संबंधों में प्रमुख विषय बनाया है। 2024 में पारित “तिब्बत विवाद अधिनियम” के तहत अमेरिका ने चीन से बिना शर्त तिब्बत के साथ वार्ता शुरू करने की अपील की थी।
दलाई लामा ने हाल ही में प्रकाशित अपनी पुस्तक Voice for the Voiceless में लिखा है कि चीन को तिब्बतियों को केवल आर्थिक विकास से संतुष्ट करने की बजाय, उन्हें सम्मान, पहचान और सांस्कृतिक स्वतंत्रता देनी चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अगला दलाई लामा “स्वतंत्र विश्व” में जन्म लेगा — यानी तिब्बत के बाहर।
निष्कर्ष
अगले दलाई लामा की खोज केवल धार्मिक परंपरा की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह एक भू-राजनीतिक मुद्दा बन चुका है जिसमें चीन की सत्ता की मंशा, तिब्बतियों की आत्मनिर्भरता की आकांक्षा, भारत की सांस्कृतिक भूमिका और अमेरिका की रणनीतिक प्राथमिकताएं शामिल हैं। आगामी सप्ताह में धर्मशाला से आने वाली घोषणाएं तिब्बती भविष्य के साथ-साथ एशिया की शक्ति-संतुलन की दिशा को भी प्रभावित कर सकती हैं।