अंटार्कटिका और दक्षिणी गोलार्ध में पक्षियों की अद्वितीय प्रजातियाँ: संरक्षण की नई चेतावनी

एक हालिया अध्ययन से खुलासा हुआ है कि अंटार्कटिका और दक्षिणी गोलार्ध में पक्षियों की “स्थानिकता” यानी केवल सीमित क्षेत्रों में पाई जाने वाली प्रजातियों की उपस्थिति को अब तक कम आंका गया है। यह नई खोज उन पक्षियों के संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम मानी जा रही है जो अपने विशेष अस्तित्व के कारण न केवल जैव विविधता के प्रतीक हैं, बल्कि पर्यावरणीय असंतुलन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील भी हैं।
क्या है स्थानिकता और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
स्थानिक प्रजातियाँ वे होती हैं जो केवल किसी विशिष्ट क्षेत्र में पाई जाती हैं और दुनिया के अन्य हिस्सों में नहीं मिलतीं। जैसे अंटार्कटिका का स्नो पेट्रेल, जो केवल दक्षिणी ध्रुव पर देखा गया है। ऐसी प्रजातियाँ अनोखी पारिस्थितिकी और विकास इतिहास की वाहक होती हैं और इसलिए उनका संरक्षण बेहद जरूरी होता है। अध्ययन बताता है कि अंटार्कटिका, सब-अंटार्कटिक द्वीपसमूह, उच्च एंडीज़ पर्वत श्रृंखला, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिणी अफ्रीका स्थानिक पक्षियों के वैश्विक हॉटस्पॉट हैं।
कैसे हुई अब तक की गणनाओं में चूक?
पारंपरिक रूप से स्थानिकता की गणना प्रजातियों की कुल संख्या के आधार पर होती थी, जिससे वे क्षेत्र जिनमें कम प्रजातियाँ होती हैं, उपेक्षित रह जाते थे। अधिकांश वैश्विक अध्ययन उत्तर गोलार्ध पर केंद्रित रहे हैं, जिससे दक्षिणी गोलार्ध की अनूठी प्रजातियाँ नज़रअंदाज़ होती रही हैं। नए अध्ययन में ‘कॉम्प्लिमेंटेरिटी’ नामक मानक का उपयोग किया गया है, जो देखता है कि कोई प्रजाति किसी क्षेत्र में विशिष्ट है या नहीं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- स्नो पेट्रेल, केवल अंटार्कटिका में पाया जाने वाला पक्षी, तीन में से एक है जिसे कभी दक्षिणी ध्रुव पर देखा गया।
- पेलिओग्नाथ्स (kiwi, emu, cassowary, ostrich) जैसी प्रजातियाँ केवल दक्षिणी गोलार्ध में पाई जाती हैं।
- अंटार्कटिका के अलावा उच्च एंडीज़, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे क्षेत्र भी स्थानिक पक्षियों के हॉटस्पॉट हैं।
- दक्षिणी गोलार्ध में पृथ्वी की भूमि का वितरण कम और समुद्रों का फैलाव अधिक है, जिससे प्रजातियाँ छोटे और अलग-अलग क्षेत्रों तक सीमित रहती हैं।
पर्यावरणीय दबावों से बढ़ती संवेदनशीलता
दक्षिणी गोलार्ध के पक्षी, जो पहले से ही छोटे और अलग-थलग क्षेत्रों में सीमित हैं, जलवायु परिवर्तन जैसे बाहरी दबावों के प्रति अधिक संवेदनशील हैं। जहां उत्तरी गोलार्ध के पक्षी शीतल जलवायु की ओर आसानी से प्रवास कर सकते हैं, वहीं दक्षिणी गोलार्ध में समुद्रों की अधिकता के कारण यह संभव नहीं है। इस कारण से, इन पक्षियों के लिए संरक्षण प्रयासों को और अधिक गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।
यह अध्ययन बताता है कि सिर्फ प्रजातियों की संख्या नहीं, बल्कि उनकी अपूरणीयता और विशिष्टता भी संरक्षण के लिए उतनी ही महत्वपूर्ण है। अंटार्कटिका और उसके आसपास के क्षेत्र विश्व की जैव विविधता को बनाए रखने में एक अनोखा स्थान रखते हैं और उन्हें वैश्विक संरक्षण नीतियों में प्रमुखता से शामिल किया जाना चाहिए।