सूर्यप्रकाश और जल से हाइड्रोजन पेरॉक्साइड उत्पादन: भारतीय वैज्ञानिकों की अभिनव उपलब्धि

भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो सूर्यप्रकाश और जल की सहायता से हाइड्रोजन पेरॉक्साइड (H₂O₂) जैसी शक्तिशाली कीटाणुनाशक रासायनिक पदार्थ का निर्माण कर सकती है। यह उपलब्धि न केवल हरित रसायन विज्ञान की दिशा में बड़ा कदम है, बल्कि औद्योगिक और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।

हाइड्रोजन पेरॉक्साइड क्या है?

हाइड्रोजन पेरॉक्साइड एक शक्तिशाली ऑक्सीकारक (oxidizing agent) है, जिसका प्रयोग घावों की सफाई, जल शुद्धिकरण, ईंधन सेल्स, और औद्योगिक रसायनों के निर्माण में किया जाता है। इसकी विशेषता है कि यह पर्यावरण में केवल जल और ऑक्सीजन में विघटित होता है, जिससे यह एक पर्यावरण-अनुकूल रसायन बन जाता है।

पारंपरिक उत्पादन की समस्याएं

अब तक हाइड्रोजन पेरॉक्साइड का उत्पादन ऊर्जा-गहन, पर्यावरण के लिए हानिकारक और महंगा रहा है। पारंपरिक फ़ोटोकैटलिस्ट जैसे मेटल ऑक्साइड्स, ग्राफिटिक कार्बन नाइट्राइड आदि की सीमित दक्षता और स्थिरता ने उत्पादन को और जटिल बना दिया था।

नया नवाचार: Mo-DHTA COF

कोलकाता स्थित एस. एन. बोस बेसिक साइंसेज़ सेंटर (SNBCBS) के वैज्ञानिकों ने डाइ-मोलिब्डेनम पैडलव्हील युक्त कोवेलेन्ट ऑर्गेनिक फ्रेमवर्क (Mo-DHTA COF) नामक एक नवीन पदार्थ का निर्माण किया है। यह पदार्थ सूर्य के प्रकाश की सहायता से जल में ऑक्सीजन को घटाकर सीधे हाइड्रोजन पेरॉक्साइड बना सकता है।
इस पदार्थ की संरचना में α-हाइड्रोक्विनोन लिंकर्स और डाइ-मोलिब्डेनम मेटल यूनिट्स होते हैं, जो ऑक्सीजन अणुओं को बांधने और उनके इलेक्ट्रॉनिक रूपांतरण में सहायक होते हैं। सूर्यप्रकाश के संपर्क में आने पर यह पदार्थ सुपरऑक्साइड रेडिकल्स उत्पन्न करता है, जो प्रोटॉन्स के साथ मिलकर H₂O₂ बनाते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • हाइड्रोजन पेरॉक्साइड पर्यावरण में केवल जल और ऑक्सीजन में विघटित होता है, जिससे यह ‘ग्रीन ऑक्सिडाइज़र’ कहलाता है।
  • Covalent Organic Frameworks (COFs) उच्च सतह क्षेत्र, ट्यून योग्य छिद्रता और स्थिरता के कारण फ़ोटो-कैटलिस्ट के रूप में उभरते विकल्प हैं।
  • Mo-DHTA COF का निर्माण S.N. Bose Centre ने किया है जो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST), भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है।
  • यह शोध प्रतिष्ठित जर्नल ‘Small’ में प्रकाशित हुआ है, और इसमें 8 वैज्ञानिकों की टीम शामिल थी।

संभावनाएं और भविष्य की दिशा

यह तकनीक फार्मास्युटिकल, पर्यावरण शुद्धिकरण, ऊर्जा तथा सामग्री विज्ञान के क्षेत्रों में उपयोगी हो सकती है। इससे न केवल लागत कम होगी, बल्कि पारंपरिक रसायन उत्पादन की तुलना में पर्यावरणीय प्रभाव भी न्यूनतम रहेगा। भविष्य में इस प्रकार की और भी धातु-समाहित फ्रेमवर्क्स की खोज करके इसका और विकास किया जा सकता है।

निष्कर्ष

Mo-DHTA COF का विकास रासायनिक उद्योग में स्थायी और पर्यावरण-अनुकूल दिशा में एक प्रमुख मील का पत्थर है। सूर्यप्रकाश और जल का उपयोग कर इस प्रकार की हरित रासायनिक प्रक्रियाओं को अपनाना एक स्वच्छ, सस्ता और दीर्घकालिक विकल्प बन सकता है। भारत की यह खोज वैश्विक हरित रसायन विज्ञान में नया दृष्टिकोण प्रदान कर रही है।

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