सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को मुआवज़ा वसूलने का अधिकार

पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को पर्यावरणीय क्षति के लिए प्रतिपूरक (restitutionary) और क्षतिपूर्ति (compensatory) हर्जाना वसूलने का संवैधानिक और वैधानिक अधिकार स्वीकार किया है। यह फैसला भारतीय पर्यावरणीय प्रशासन में निवारण और पुनर्स्थापन (prevention and remediation) को केंद्र में रखने की दिशा में एक निर्णायक कदम है।
जल एवं वायु अधिनियम के तहत अधिकार
न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम और वायु (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम के तहत प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को पर्यावरणीय क्षति — चाहे वास्तविक हो या संभावित — के लिए हर्जाना वसूलने का अधिकार प्राप्त है। यह शक्ति अधिनियम की धाराओं 33A और 31A के अंतर्गत निहित है।
इस निर्णय में यह भी स्पष्ट किया गया है कि यह हर्जाना कोई दंडात्मक (punitive) कार्रवाई नहीं है, बल्कि इसका उद्देश्य पर्यावरण की पुनर्स्थापना और क्षति से पहले ही निवारक उपाय सुनिश्चित करना है। ये सिविल प्रकृति की कार्रवाई मानी जाएगी।
“Polluter Pays” सिद्धांत की पुष्टि
सुप्रीम कोर्ट ने “प्रदूषक भुगतान करेगा” (Polluter Pays Principle) और “पूर्व-सावधानी सिद्धांत” (Precautionary Principle) को भारतीय पर्यावरण कानून की मूल भावना बताया है। न्यायालय ने कहा कि यह सिद्धांत तब भी लागू होता है जब कोई पर्यावरणीय क्षति का वास्तविक प्रमाण हो या केवल संभावित खतरा हो। इसका मतलब है कि यदि कोई कार्य पर्यावरणीय जोखिम उत्पन्न कर सकता है, भले ही मौजूदा मानकों का उल्लंघन न हुआ हो, तब भी बोर्ड कार्रवाई कर सकते हैं।
दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले को पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की हर्जाना वसूलने की शक्ति को सीमित कर दिया गया था। कोर्ट ने कहा कि पर्यावरणीय हानि के लिए बोर्ड न केवल निश्चित राशि के रूप में हर्जाना लगा सकते हैं, बल्कि बैंकों से गारंटी की मांग भी कर सकते हैं ताकि भविष्य में होने वाली क्षति को रोका जा सके।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- “Polluter Pays Principle” को भारतीय कानूनों में विधिक मान्यता प्राप्त है।
- जल अधिनियम की धारा 33A और वायु अधिनियम की धारा 31A प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को व्यापक निर्देशात्मक शक्तियां प्रदान करती हैं।
- यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि प्रतिपूरक या क्षतिपूर्ति हर्जाना सिविल प्रकृति का होता है, न कि दंडात्मक।
- पर्यावरणीय क्षति के मामलों में अब बोर्ड पूर्व-खतरे को देखते हुए भी कार्रवाई कर सकते हैं, जो कि भारतीय कानून में महत्वपूर्ण बदलाव है।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पर्यावरणीय शासन के लिए एक मील का पत्थर है, जो न केवल प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की भूमिका को सशक्त बनाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि पर्यावरण की रक्षा मात्र प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि पूर्व-सक्रिय और संरचनात्मक होनी चाहिए। यह फैसला भविष्य में पर्यावरणीय न्याय की दिशा में एक नई सोच को प्रेरित करेगा।