सी. पी. राधाकृष्णन बने भारत के 15वें उपराष्ट्रपति: तमिलनाडु, ओबीसी और राष्ट्रीय राजनीति में नया संदेश

सी. पी. राधाकृष्णन को भारत के 15वें उपराष्ट्रपति के रूप में चुना गया है। उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार, सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुदर्शन रेड्डी को हराया, जिन्हें पहले वरीयता के तौर पर 300 वोट मिले। राधाकृष्णन की जीत को न केवल एनडीए की रणनीतिक जीत माना जा रहा है, बल्कि यह दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु, में भाजपा के भविष्य की रणनीति की झलक भी देती है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और विचारधारा
सी. पी. राधाकृष्णन एक वरिष्ठ भाजपा नेता हैं, जो तमिलनाडु के कोयंबटूर से दो बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं। वे महज 16 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़ गए थे और 1974 में भारतीय जनसंघ के राज्य कार्यकारिणी सदस्य बने। भाजपा की विचारधारा के साथ उनका गहरा जुड़ाव उन्हें पार्टी की पसंदीदा सूची में लाता है।
उपराष्ट्रपति चुनाव और मतदान पैटर्न
उपराष्ट्रपति चुनाव में 767 सांसदों में से 98.20% ने मतदान किया, जबकि 13 सांसदों ने मतदान से परहेज किया। इन सांसदों में बीजू जनता दल, भारत राष्ट्र समिति, शिरोमणि अकाली दल और एक निर्दलीय सांसद शामिल हैं। बीजेपी के अनुसार, लगभग 40 विपक्षी सांसदों ने “अंतरात्मा की आवाज” सुनते हुए राधाकृष्णन को समर्थन दिया, जिनमें से कुछ ने जानबूझकर अमान्य वोट भी डाले।
तमिलनाडु में भाजपा की रणनीति
राधाकृष्णन का उपराष्ट्रपति बनना तमिलनाडु में भाजपा की राजनीतिक योजनाओं का संकेत है, जहाँ 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। वे ओबीसी गोंडर समुदाय से आते हैं, जो AIADMK का परंपरागत वोट बैंक माना जाता है। AIADMK प्रमुख ई. पलानीस्वामी भी इसी समुदाय से हैं, जिससे भाजपा और AIADMK के गठबंधन को मजबूती मिलती है।
तमिलनाडु में भाजपा की सीधी पहुंच सीमित है, लेकिन AIADMK के साथ गठजोड़ और जातीय समीकरणों के जरिए पार्टी अपना विस्तार चाहती है। राधाकृष्णन की छवि एक मृदुभाषी और गैर-टकरावकारी नेता की है, जो विपक्षी सांसदों के बीच भी स्वीकार्य हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सी. पी. राधाकृष्णन भारत के 15वें उपराष्ट्रपति चुने गए हैं।
- उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति भी होते हैं।
- इस चुनाव में 98.20% मतदान हुआ, कुल 767 सांसदों ने वोट डाला।
- राधाकृष्णन तमिलनाडु के कोयंबटूर से दो बार सांसद रह चुके हैं।
- वह गोंडर (OBC) समुदाय से हैं, जो दक्षिण भारत में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है।
सामाजिक और राजनीतिक संदेश
राधाकृष्णन की नियुक्ति एक व्यापक सामाजिक संदेश देती है। वर्तमान में भारत के शीर्ष तीन संवैधानिक पद — राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और प्रधानमंत्री — क्रमशः आदिवासी महिला और दो ओबीसी पुरुषों के पास हैं। यह सामाजिक समावेशन और प्रतिनिधित्व का मजबूत संकेत है, साथ ही विपक्ष के जातिगत जनगणना की मांग के जवाब में भाजपा का ठोस संदेश भी।
सी. पी. राधाकृष्णन की जीत केवल एक चुनावी सफलता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की रणनीतिक संतुलन साधने की क्षमता का प्रमाण है — जहाँ विचारधारा, क्षेत्रीय समीकरण और सामाजिक संरचना, तीनों को साथ लेकर चला गया है।