वैश्विक कार्बन मूल्य निर्धारण में तेजी: विश्व बैंक की रिपोर्ट में भारत की उभरती भूमिका

विश्व बैंक की नई रिपोर्ट “State and Trends of Carbon Pricing 2025” के अनुसार, दुनिया के अधिकांश देश अब कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र (Carbon Pricing Instruments) को अपना रहे हैं। ये तंत्र अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के लगभग दो-तिहाई हिस्से को कवर करते हैं, और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन का लगभग 28 प्रतिशत इनकी सीमा में आ गया है। भारत, ब्राज़ील और तुर्किए जैसे देश भी सक्रिय रूप से अपने कार्बन मूल्य निर्धारण ढांचे विकसित कर रहे हैं।
कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र: प्रकार और कार्यप्रणाली
रिपोर्ट में तीन प्रकार के कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्रों का उल्लेख है:
- इमीशन ट्रेडिंग सिस्टम (ETS): इसमें सरकारें उत्सर्जन की एक सीमा तय करती हैं। कंपनियाँ निर्धारित सीमा से कम उत्सर्जन कर यदि अतिरिक्त ‘क्रेडिट’ बचाती हैं, तो वे इसे अन्य कंपनियों को बेच सकती हैं।
- कार्बन टैक्स: इसमें कार्बन उत्सर्जन या जीवाश्म ईंधनों की कार्बन मात्रा पर प्रत्यक्ष कर लगाया जाता है।
- कार्बन क्रेडिट ट्रेडिंग (क्रेडिटिंग मेकैनिज़्म): इसमें किसी परियोजना (जैसे जंगल लगाना या लैंडफिल से मीथेन पकड़ना) से प्राप्त उत्सर्जन में कमी के लिए क्रेडिट जारी किए जाते हैं, जिन्हें कंपनियाँ अपनी जिम्मेदारियों को संतुलित करने के लिए खरीद सकती हैं।
भारत की स्थिति
2024 में भारत सरकार ने अपने नियोजित ETS के लिए नियम तय किए। भारत का ETS “रेट-आधारित” होगा, यानी इसमें उत्सर्जन की अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं की जाएगी, बल्कि औद्योगिक क्षेत्र के लिए प्रदर्शन मानक तय किए जाएंगे, जिनके अनुसार कंपनियों को अपने शुद्ध उत्सर्जन को सीमित करना होगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- 2005 में केवल 5 कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र थे; 2025 तक इनकी संख्या बढ़कर 80 हो गई है।
- वर्तमान में 43 कार्बन टैक्स और 37 ETS दुनिया भर में कार्यरत हैं।
- ये तंत्र मिलकर $100 अरब से अधिक का राजस्व उत्पन्न कर रहे हैं।
- कार्बन मूल्य निर्धारण का सबसे अधिक उपयोग ऊर्जा उत्पादन, उसके बाद उद्योग, खनन, भवन निर्माण, भूमि परिवहन, और हवाई क्षेत्र में हो रहा है।
कार्बन क्रेडिट बाज़ार: निजी वित्त की संभावना
कार्बन क्रेडिट बाज़ार विकासशील परियोजनाओं में निजी वित्त को आकर्षित कर सकते हैं। 2024 में पहले नौ महीनों में $14 अरब जुटाए गए, जिनमें से सबसे अधिक हिस्सा प्राकृतिक आधार वाली कार्बन हटाने की परियोजनाओं में गया। इसके अलावा “क्लीन कुकिंग” परियोजनाओं में भी रुचि बढ़ी है।
इंजीनियर्ड कार्बन रिमूवल, जैसे कि Direct Air Capture (वायुमंडल से CO₂ निकालना) और Enhanced Rock Weathering (चट्टानों का चूर्ण भूमि पर बिखेरना), में निवेश की नई प्रतिबद्धताएं भी देखी गई हैं। हालांकि, 80 लाख टन की खरीद प्रतिबद्धताओं में से केवल 3.18 लाख टन की ही आपूर्ति हुई है।
स्वैच्छिक बनाम बाध्यकारी बाज़ार
- बाध्यकारी बाज़ार (Compliance Markets): जैसे घरेलू ETS, CORSIA (अंतरराष्ट्रीय विमानन), और पेरिस समझौते के तहत निर्धारित राष्ट्रीय योगदान (NDCs)।
- स्वैच्छिक बाज़ार (Voluntary Markets): निजी कंपनियाँ, स्वतंत्र प्रमाणन संस्थाओं (Verra, Gold Standard) के ज़रिए क्रेडिट खरीदकर अपने उत्सर्जन को संतुलित करती हैं।
2023 में क्रेडिट की वापसी (Retirement) बढ़ी, विशेष रूप से बाध्यकारी बाज़ारों के कारण। हालांकि, स्वैच्छिक बाज़ार की मांग थोड़ी घटी, लेकिन प्राकृतिक और स्वच्छ ऊर्जा आधारित परियोजनाओं के प्रति रुचि बनी रही।
कार्बन मूल्य निर्धारण अब केवल पर्यावरणीय समाधान नहीं, बल्कि आर्थिक नीति और राजस्व के स्रोत के रूप में भी उभर रहा है। भारत जैसे देशों के लिए यह एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिससे न केवल जलवायु लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है, बल्कि वैश्विक कार्बन अर्थव्यवस्था में प्रभावी भागीदारी भी सुनिश्चित हो सकती है।