रूस ने तालिबान सरकार को दी मान्यता: अफगानिस्तान पर वैश्विक कूटनीति की नई दिशा

3 जुलाई को रूस के काबुल स्थित राजदूत दिमित्री झिरनोव ने तालिबान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी को सूचित किया कि मास्को ने अफगानिस्तान में तालिबान शासन को औपचारिक रूप से मान्यता दे दी है। यह निर्णय अफगान विदेश मंत्रालय ने एक “ऐतिहासिक कदम” बताया, जो अन्य देशों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है। इस घटनाक्रम के कुछ ही दिनों बाद, अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ने तालिबान के सर्वोच्च नेता हैबतुल्लाह अखुंदज़ादा और मुख्य न्यायाधीश अब्दुल हकीम हक्कानी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए।
अफगानिस्तान में रूस की ऐतिहासिक भूमिका
19वीं सदी में रूस और ब्रिटेन के बीच “ग्रेट गेम” के तहत अफगानिस्तान को रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता था। 1919 में रूस की बोल्शेविक क्रांति के बाद सोवियत संघ ने उपनिवेशवाद का विरोध करते हुए अफगानिस्तान को दोस्ती का प्रस्ताव दिया। शीत युद्ध के दौर में भी अफगानिस्तान को नियंत्रण में रखना रूस के लिए जरूरी हो गया था, खासकर जब अमेरिका और ब्रिटेन ने ईरान और पाकिस्तान के जरिए कम्युनिज्म के खिलाफ मोर्चा लिया।
1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर हमला कर दिया और एक दशक तक चले युद्ध में लाखों अफगानों और हजारों सोवियत सैनिकों की जान गई। 1989 में रूस को अपमानजनक तरीके से पीछे हटना पड़ा। यह युद्ध वैश्विक राजनीति में एक निर्णायक मोड़ था।
तालिबान और रूस के बदलते रिश्ते
पहले तालिबान शासन (1996–2001) ने चेचन्या की स्वतंत्रता को मान्यता दी थी, जिससे रूस नाराज़ था। लेकिन 9/11 के बाद रूस ने अमेरिका के साथ आतंकवाद के खिलाफ सहयोग किया और बाद में अफगान पुनर्संरचना वार्ता के लिए “मास्को फॉर्मेट” की शुरुआत की।
2021 में अमेरिका की अफगानिस्तान से अराजक वापसी के बाद रूस ने काबुल में अपना दूतावास खुला रखा। सितंबर 2022 में रूस ने तालिबान के साथ पेट्रोलियम और गेहूं आपूर्ति का सौदा किया। 2024 में रूस की सर्वोच्च अदालत ने तालिबान को आतंकवादी संगठन की सूची से हटाया और अब 2025 में उसे आधिकारिक मान्यता दे दी।
भू-राजनीतिक संदर्भ और रूस का स्वार्थ
यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच, मास्को को नए सहयोगियों की तलाश थी। चीन पर सैन्य निर्भरता बढ़ने और वैश्विक अलगाव की स्थिति में अफगानिस्तान रूस के लिए रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बन गया।
रूसी व्यापार केंद्र के अनुसार, 2024 में अफगानिस्तान के साथ द्विपक्षीय व्यापार $1 अरब तक पहुंचा और 2025 में इसके $3 अरब तक पहुंचने की संभावना है। रूस ने अफगान नागरिकों को श्रम बाजार में अवसर देने की भी घोषणा की है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- तालिबान को अब तक किसी भी देश ने संयुक्त राष्ट्र के स्तर पर मान्यता नहीं दी है।
- भारत ने अफगानिस्तान में $3 अरब से अधिक का निवेश किया है, जिसमें संसद भवन, सलमा डैम और ज़ारंज–डेलाराम राजमार्ग शामिल हैं।
- रूस द्वारा मान्यता से अफगानिस्तान में रूसी निर्यात, सुरक्षा सहयोग और ऊर्जा समझौते को गति मिलेगी।
- ICC ने तालिबान नेताओं पर “लैंगिक उत्पीड़न” के आरोप में गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं।
भारत के लिए क्या मायने रखता है यह कदम
भारत और अफगानिस्तान के बीच ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और रणनीतिक संबंध रहे हैं। भारत ने अब तक मानवीय सहायता के माध्यम से संपर्क बनाए रखा है, लेकिन रूस और चीन जैसे देशों की सक्रियता के बीच भारत के लिए भी कूटनीतिक दृष्टिकोण को पुनः परिभाषित करना जरूरी हो गया है। छात्र और चिकित्सा वीजा जैसे कदमों से भारत अफगान जनता के बीच अपनी सकारात्मक छवि और प्रभाव बनाए रख सकता है।
वर्तमान परिदृश्य में, एक व्यावहारिक और संतुलित कूटनीतिक रणनीति भारत के हित में है, जिससे वह न केवल मध्य एशिया के संपर्क नीति को मजबूत कर सकता है, बल्कि पाकिस्तान से उत्पन्न सीमा-पार आतंकवाद के खिलाफ सहयोगी भी प्राप्त कर सकता है।