राजस्थान में ड्रोन से कृत्रिम वर्षा का पहला परीक्षण: रामगढ़ डैम से नई शुरुआत

राजस्थान ने भारत में पहली बार ड्रोन आधारित कृत्रिम वर्षा (Artificial Rain) का परीक्षण शुरू किया है। यह पहल जयपुर के पास रामगढ़ डैम में की जा रही है और पारंपरिक हवाई जहाज आधारित क्लाउड सीडिंग तकनीक से एक कदम आगे बढ़ते हुए मानवरहित हवाई यानों (UAVs) के इस्तेमाल की दिशा में बदलाव को दर्शाती है।
परियोजना के मुख्य बिंदु
- संयुक्त प्रयास: राजस्थान कृषि विभाग और अमेरिका व बेंगलुरु स्थित GenX AI कंपनी के बीच साझेदारी।
- ड्रोन की संख्या: लगभग 60 ड्रोन प्रयोग में लाए जाएंगे।
- मूल कार्यक्रम: 31 जुलाई को शुरू होना था, लेकिन भारी बारिश की चेतावनी के कारण स्थगित किया गया।
- अनुमतियां: DGCA, भारतीय मौसम विभाग, जिला प्रशासन और कृषि विभाग से मंजूरी।
- शुरुआत: राज्य के कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीना द्वारा उद्घाटन।
- दर्शक सुविधा: आम लोग भी इस परीक्षण को देख सकेंगे।
कैसे काम करेगा यह प्रयोग?
ड्रोन ऊंचाई पर उड़कर बादलों में विशेष रसायन (जैसे सिल्वर आयोडाइड) का छिड़काव करेंगे।
- ये रसायन पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल बनने की प्रक्रिया को तेज करते हैं।
- बादल में मौजूद नमी का बेहतर उपयोग कर बारिश की संभावना बढ़ाई जाती है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक है जिसमें बादलों में ऐसे कण छोड़े जाते हैं जो बारिश या बर्फबारी की प्रक्रिया को सक्रिय कर दें।
- सामान्यत: सिल्वर आयोडाइड का उपयोग किया जाता है।
- इससे वर्षा में 5–20% तक की वृद्धि संभव है, लेकिन प्रभाव क्षेत्र, मौसम और बादल की स्थिति पर निर्भर करता है।
- यह तकनीक तभी काम करती है जब बादल पहले से मौजूद हों।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और चुनौतियां
- फायदे: सही परिस्थितियों में 5–15% तक वर्षा में वृद्धि की संभावना।
- सीमाएं: यदि बादल न हों, तो तकनीक बेअसर।
- अनिश्चितता: अतिरिक्त वर्षा का अनुमान सटीक लगाना कठिन, प्रभाव स्थान और समय पर निर्भर।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत में यह पहला अवसर है जब ड्रोन द्वारा क्लाउड सीडिंग की जा रही है।
- पारंपरिक क्लाउड सीडिंग में हवाई जहाज या जमीन आधारित रॉकेट का उपयोग होता है।
- सिल्वर आयोडाइड का उपयोग अमेरिका, चीन, और यूएई सहित कई देशों में होता है।
- राजस्थान के रामगढ़ डैम का निर्माण 1903 में हुआ था और यह जयपुर शहर की प्रमुख जलापूर्ति स्रोत रहा है।