मिज़ोरम की राजधानी आइजोल अब भारतीय रेलवे नेटवर्क से जुड़ी

मिज़ोरम की राजधानी आइजोल अब पहली बार भारतीय रेलवे नेटवर्क से जुड़ गई है, जिससे राज्य के सामाजिक और आर्थिक विकास में एक नए युग की शुरुआत हो गई है। हाल ही में रेलवे सुरक्षा आयोग (CRS) ने होर्तोकी से सैरांग तक की रेलवे लाइन पर संचालन की अनुमति दे दी है, जो 51.38 किलोमीटर लंबे बैराबी-सैरांग रेलवे परियोजना का अंतिम चरण था।
बैराबी-सैरांग रेल परियोजना: एक रणनीतिक उपलब्धि
बैराबी-सैरांग रेलवे लाइन मिज़ोरम की राजधानी को देश के शेष हिस्सों से जोड़ने की एक बहुप्रतीक्षित परियोजना रही है। यह परियोजना कुल चार भागों में विभाजित है: बैराबी-होर्तोकी, होर्तोकी-कांवपुई, कांवपुई-मुअलखांग और मुअलखांग-सैरांग। सैरांग, जो कि आइजोल से मात्र 20 किलोमीटर दूर है, अब राजधानी के लिए प्रमुख रेलवे स्टेशन बनेगा।
इस परियोजना में 48 सुरंगें (कुल लंबाई 12,853 मीटर), 55 प्रमुख पुल, और 87 लघु पुल शामिल हैं। इनमें से पुल संख्या 196 की ऊँचाई 104 मीटर है, जो कुतुब मीनार से 42 मीटर ऊँची है। परियोजना में पाँच रोड ओवरब्रिज और छह अंडरब्रिज भी बनाए गए हैं।
संचालन की अनुमति और सुरक्षा परीक्षण
रेलवे सुरक्षा आयोग (CRS) के उत्तर-पूर्व सर्कल के आयुक्त सुमीत सिंघल ने 6 जून से 10 जून 2025 के बीच इस मार्ग का निरीक्षण किया। निरीक्षण मोटर ट्रॉली, पैदल यात्रा और डीजल इंजन से चलने वाली निरीक्षण विशेष ट्रेन के जरिए किया गया। इसके बाद CRS ने सार्वजनिक माल और यात्री परिवहन के लिए अधिकतम 90 किमी/घंटा की रफ्तार से संचालन की अनुमति दे दी।
यह पहली बार है जब ट्रेनों को मिज़ोरम में पूरी तरह प्रवेश की अनुमति मिली है। पहले तक, राज्य में ट्रेनों का संचालन केवल 1.5 किलोमीटर की सीमा तक सीमित था।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सैरांग, मिज़ोरम की राजधानी आइजोल से 20 किमी दूर एक उपनगर है।
- बैराबी-सैरांग रेल परियोजना की कुल लंबाई 51.38 किमी है।
- इस परियोजना में सबसे ऊँचा पुल 104 मीटर ऊँचा है, जो कुतुब मीनार से ऊँचा है।
- रेलवे सुरक्षा आयोग (CRS) नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अंतर्गत आता है।
मिज़ोरम को रेल से जोड़ना पूर्वोत्तर भारत में रेलवे विस्तार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, त्रिपुरा, मणिपुर और सिक्किम की राजधानियों को भी रेल नेटवर्क से जोड़ने की योजना है। इस कदम से न केवल यातायात की सुविधा बढ़ेगी, बल्कि पर्यटन, व्यापार और औद्योगिक विकास को भी बल मिलेगा।
यह ऐतिहासिक परियोजना न केवल मिज़ोरम के लिए बल्कि समस्त पूर्वोत्तर भारत के लिए समावेशी विकास की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने में सहायता मिलेगी।