भारत में ईथेनॉल मिश्रण की नई दिशा: पेट्रोल विकल्प की ओर बढ़ते कदम

भारत में हरित ईंधन की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए सरकार ने पेट्रोल में ईथेनॉल मिश्रण (Ethanol Blending) को तेज़ी से आगे बढ़ाया है। ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने और विदेशी तेल निर्भरता को घटाने के उद्देश्य से शुरू की गई यह योजना अब पर्यावरणीय लाभों के साथ-साथ आर्थिक बचत के रूप में भी सामने आ रही है। हालांकि इस पहल की सफलता के बीच कुछ तकनीकी और उपभोक्ता आधारित चिंताएं भी उभर रही हैं।
क्या है ईथेनॉल और उसका ईंधन के रूप में उपयोग?
ईथेनॉल एक नवीकरणीय और जैव-अपघटनशील ईंधन है, जिसे गन्ना, मक्का, चावल, कसावा आदि जैसे कृषि उत्पादों के किण्वन से तैयार किया जाता है। इसे पेट्रोल के साथ विभिन्न अनुपातों में मिलाकर प्रयोग किया जाता है, जैसे E10 (10%), E20 (20%), या विशेष इंजनों के लिए E85/E100 तक। इसका मुख्य उद्देश्य है ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी और पेट्रोलियम आयात पर निर्भरता को कम करना।
भारत की हालिया ईथेनॉल नीति
भारत ने 2018 में अधिसूचित अपनी राष्ट्रीय जैवईंधन नीति के तहत 2025-26 तक पेट्रोल में 20% ईथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य रखा था। लेकिन 2025 की शुरुआत तक ही देश ने औसतन 20% मिश्रण हासिल कर लिया, जिससे ₹1-1.5 लाख करोड़ की विदेशी मुद्रा की बचत हुई। अब सरकार ने 2030 तक 30% मिश्रण का लक्ष्य रखा है।
जुलाई 2025 में महाराष्ट्र में एक नई नीति के तहत मक्का और टूटे चावल जैसे खाद्यान्नों को भी ईथेनॉल उत्पादन में शामिल किया गया, जिससे मिश्रण दर को 27% तक बढ़ाने की संभावना बनी है। साथ ही, सरकार फ्लेक्स-फ्यूल वाहनों को बढ़ावा देने और उच्च मिश्रण ईंधनों पर जीएसटी में छूट देने पर भी विचार कर रही है।
तकनीकी चुनौतियाँ और वाहन क्षेत्र की चिंताएं
हालांकि ईथेनॉल मिश्रण से पर्यावरण और विदेशी मुद्रा लाभ हो रहे हैं, लेकिन वाहन निर्माता कंपनियों और उपभोक्ता समूहों ने इसके कुछ नकारात्मक प्रभावों की ओर इशारा किया है:
- E20 जैसे उच्च मिश्रण स्तर पर पारंपरिक पेट्रोल इंजनों में ईंधन दक्षता में 6-7% (चारपहिया) और 3-4% (दोपहिया) तक की गिरावट देखी गई है।
- ईथेनॉल की रासायनिक प्रकृति (हाइग्रोस्कोपिकता) के कारण यह धातु को क्षरण कर सकता है, रबर और प्लास्टिक भागों को नुकसान पहुँचा सकता है और फ्यूल फिल्टर व लाइनों को जाम कर सकता है।
- बिना विशेष डिजाइन के इंजनों में ठंडी शुरुआत में कठिनाई और इंजन में कंपन जैसे दुष्प्रभाव देखे गए हैं।
दोपहिया और तिपहिया वाहनों पर प्रभाव
भारत में अधिकतर दोपहिया और तिपहिया वाहन सामान्य पेट्रोल इंजन पर चलते हैं और अभी तक E10 से अधिक मिश्रणों के लिए आधिकारिक रूप से प्रमाणित नहीं किए गए हैं। ऐसे में E20 जैसे उच्च मिश्रण ईंधन का उपयोग इन वाहनों की लंबी उम्र और प्रदर्शन पर असर डाल सकता है। फिलहाल, इनके लिए कोई राष्ट्रीय स्तर की अनुमति या अनुकूलन योजना मौजूद नहीं है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- भारत ने मार्च 2025 तक 20% ईथेनॉल मिश्रण लक्ष्य समय से पहले प्राप्त कर लिया।
- सरकार 2030 तक 30% मिश्रण की योजना बना रही है।
- NITI Aayog की रिपोर्ट के अनुसार E20 पर वाहन की ईंधन दक्षता में 6-7% तक की कमी हो सकती है।
- फिलहाल देश में केवल एक 2G (सेकेंड जनरेशन) ईथेनॉल संयंत्र चालू है।
भारत का ईथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम निश्चित रूप से ऊर्जा आत्मनिर्भरता और पर्यावरणीय संतुलन की दिशा में एक बड़ा कदम है। लेकिन इसके सफल कार्यान्वयन के लिए जरूरी है कि उपभोक्ताओं को दक्षता हानि की भरपाई के लिए कर छूट या सब्सिडी जैसे प्रोत्साहन मिलें, वाहन उद्योग को तकनीकी रूप से उन्नत करने के लिए स्पष्ट मानक बनें, और किसानों के लिए स्थायी फीडस्टॉक आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। तभी यह हरित क्रांति वास्तव में देश की आर्थिक और पारिस्थितिकीय स्थिरता में योगदान दे सकेगी।