भारत की विदेशी व्यापार नीति में ‘इनविज़िबल्स’ की बढ़ती भूमिका

अंतरराष्ट्रीय व्यापार की बात करें तो आमतौर पर जहाजों में लदे माल, कंटेनर और भौतिक वस्तुओं की आवाजाही की कल्पना होती है। लेकिन आज के वैश्वीकृत युग में व्यापार सिर्फ माल के आदान-प्रदान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सेवाओं, पूंजी, आंकड़ों, विचारों और मानव संसाधनों का भी अहम योगदान है। भारत के संदर्भ में, सेवाओं का निर्यात और व्यक्तिगत अंतरराष्ट्रीय लेन-देन — जिन्हें ‘इनविज़िबल्स’ कहा जाता है — अब भौतिक वस्तुओं के व्यापार से भी बड़ा हिस्सा बन चुका है।

वस्तुओं बनाम सेवाओं का व्यापार

भारत के वस्त्र, इस्पात, ऑटो कंपोनेंट्स आदि उत्पादों के निर्यात में जहां अस्थिरता देखी गई है, वहीं सेवाओं और प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई धनराशि में निरंतर वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2003-04 से 2013-14 के बीच भारत के वस्तु निर्यात $66.3 अरब से बढ़कर $318.6 अरब तक पहुंच गए, लेकिन 2020-21 में गिरकर $300 अरब से नीचे आ गए। फिर कोविड-19 महामारी के बाद वैश्विक मांग में उछाल के चलते 2022-23 में यह आंकड़ा $456.1 अरब तक पहुंचा, लेकिन 2024-25 में फिर गिरकर $441.8 अरब रह गया।
इसके विपरीत, इनविज़िबल्स यानी सेवाओं और व्यक्तिगत अंतरराष्ट्रीय हस्तांतरणों से प्राप्त राशि 2003-04 में $53.5 अरब से बढ़कर 2024-25 में $576.5 अरब हो गई। यही नहीं, 2013-14 में जहां वस्तु निर्यात इनविज़िबल्स से $85 अरब अधिक थे, वहीं 2024-25 में इनविज़िबल्स वस्तु निर्यात से $135 अरब अधिक हो गए।

इनविज़िबल्स के मुख्य स्रोत

2024-25 में भारत की कुल इनविज़िबल आय में से $387.5 अरब सेवाओं के निर्यात से प्राप्त हुए। इनमें आईटी सेवाओं का प्रमुख योगदान रहा है, जो 2003-04 में $12.8 अरब से बढ़कर 2024-25 में $180.6 अरब हो गया। इसके अलावा, बिजनेस, फाइनेंशियल और कम्युनिकेशन सेवाओं से भी $118 अरब की आय हुई।
दूसरा बड़ा स्रोत प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई धनराशि है — $135.4 अरब — जो कि भारत के मानव संसाधनों के निर्यात का परोक्ष रूप है। इस श्रेणी में अकाउंटेंट, ऑडिटर, फाइनेंशियल एनालिस्ट, मैनेजमेंट कंसल्टेंट, डेटा स्टोरेज प्रोवाइडर जैसे पेशेवर भी शामिल हैं।

वैश्विक परिस्थितियों में इनविज़िबल्स की स्थिरता

सेवाओं के निर्यात की विशेषता यह है कि यह वैश्विक मंदी, महामारी, व्यापार युद्ध या राजनीतिक अस्थिरता से कम प्रभावित होता है। न तो इसके लिए किसी व्यापक द्विपक्षीय समझौते की जरूरत पड़ी, न ही विशेष प्रोत्साहन योजनाओं की। इसके बावजूद, भारत का सेवा निर्यात लगातार बढ़ता रहा है।

भारत बनाम चीन: एक तुलनात्मक दृष्टिकोण

2024-25 में भारत का वस्तु व्यापार घाटा $287.2 अरब रहा, लेकिन इनविज़िबल्स से $263.8 अरब का शुद्ध अधिशेष मिला, जिससे कुल चालू खाता घाटा घटकर $23.4 अरब रह गया। इसके विपरीत, चीन ने 2024 में $768 अरब का वस्तु व्यापार अधिशेष तो अर्जित किया, लेकिन सेवाओं के व्यापार में उसे $344.1 अरब का घाटा हुआ। यह दिखाता है कि जहां चीन ‘दुनिया की फैक्टरी’ बना हुआ है, वहीं भारत ‘दुनिया का ऑफिस’ बनकर उभरा है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत की सेवा निर्यात आय 2024-25 में $387.5 अरब रही, जो कि उसके वस्तु निर्यात ($441.8 अरब) के लगभग बराबर है।
  • प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई धनराशि $135.4 अरब तक पहुँच गई, जो 2003-04 में $22.2 अरब थी।
  • भारत का सेवा व्यापार अधिशेष 2024-25 में $188.8 अरब रहा, जबकि चीन को सेवाओं में घाटा हुआ।
  • ‘इनविज़िबल्स’ अब भारत के चालू खाता संतुलन में निर्णायक भूमिका निभा रहे हैं।

भारत की विदेश व्यापार रणनीति में अब केवल वस्तुओं की नहीं, बल्कि अदृश्य सेवाओं और मानव संसाधनों की भी अहम भूमिका है। समय की मांग है कि सरकार इन क्षेत्रों को नीति समर्थन दे और सेवाओं के निर्यात को औपचारिक व्यापार वार्ताओं में भी शामिल करे, ताकि भारत वैश्विक सेवा केंद्र के रूप में अपनी स्थिति और मजबूत कर सके।

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