चिनाब नदी पर फिर सक्रिय भारत: सावालकोट परियोजना और सिंधु जल संधि का नया अध्याय

भारत ने सिंधु जल संधि (IWT) को निलंबित करने के कुछ महीनों बाद, चिनाब नदी पर दशकों से लंबित सावलकोट जलविद्युत परियोजना को पुनर्जीवित करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाया है। यह परियोजना छह दशकों से तकनीकी और राजनीतिक कारणों से रुकी हुई थी, लेकिन अब इसे “राष्ट्रीय महत्व की परियोजना” घोषित कर अंतरराष्ट्रीय निविदा जारी की गई है।

सावलकोट परियोजना: एक रणनीतिक पुनरुत्थान

सावलकोट जलविद्युत परियोजना जम्मू-कश्मीर के रामबन और उधमपुर जिलों के बीच चिनाब नदी पर स्थित होगी। 1,856 मेगावाट की इस परियोजना को 29 जुलाई 2025 को NHPC द्वारा अंतरराष्ट्रीय निविदा के रूप में जारी किया गया। इसकी लागत लगभग ₹22,704 करोड़ है और यह दो चरणों में पूर्ण होगी। यह एक ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ परियोजना है, जो भंडारण क्षमता नहीं रखती लेकिन उच्च गति वाली चिनाब नदी के प्रवाह से विद्युत उत्पादन करेगी।
इस परियोजना को पहली बार 1960 के दशक में केंद्रीय जल आयोग द्वारा प्रस्तावित किया गया था, लेकिन सिंधु जल संधि के प्रतिबंधों और पाकिस्तान की आपत्तियों के कारण इसे रोका गया।

सिंधु जल संधि का नया मोड़

1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को रावी, ब्यास और सतलुज जैसे पूर्वी नदियों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त था, जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु जैसी पश्चिमी नदियों पर केवल सीमित, गैर-उपभोग उपयोग की अनुमति थी। इसका अर्थ था कि भारत इन नदियों पर बड़े भंडारण या सिंचाई परियोजनाएँ नहीं बना सकता था।
लेकिन अप्रैल 2025 में पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने संधि को निलंबित कर दिया, जिसके बाद अब भारत को पाकिस्तान को छह माह पूर्व सूचना देने, डेटा साझा करने या पाकिस्तान की आपत्ति के बावजूद परियोजनाएँ रोकने की बाध्यता नहीं रही।

पाकिस्तान पर प्रभाव और भारत की नई जल रणनीति

भारत द्वारा बगलिहार और सलाल बांधों से पानी के प्रवाह में कटौती और अब सावलकोट परियोजना के तेज क्रियान्वयन को पाकिस्तान के लिए चेतावनी स्वरूप देखा जा रहा है। मई में पाकिस्तान के मरीला हेडवर्क्स पर पानी के प्रवाह में 90% तक की कमी दर्ज की गई थी, जिससे वहां खरीफ फसल विशेषकर धान और कपास की बुवाई पर गहरा असर पड़ा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने इस स्थिति को “युद्ध की कार्रवाई” तक कह दिया, जबकि भारत ने इसे अपनी जल और ऊर्जा सुरक्षा से जोड़ते हुए राष्ट्रहित में लिया गया निर्णय बताया है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • सावलकोट परियोजना 1,856 मेगावाट की होगी और यह जम्मू-कश्मीर की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना होगी।
  • चिनाब नदी की कुल जलविद्युत क्षमता 1.5 लाख मेगावाट आंकी गई है, जिसमें से अधिकतर अभी अप्रयुक्त है।
  • सिंधु जल संधि के तहत भारत को पश्चिमी नदियों पर केवल ‘रन-ऑफ-द-रिवर’ परियोजनाओं की अनुमति थी।
  • मई 2025 में भारत द्वारा किए गए फ्लशिंग ऑपरेशनों से पाकिस्तान के मरीला हेडवर्क्स पर पानी का प्रवाह 3,100 क्यूसेक तक गिर गया था।

भारत की इस नई जल नीति से स्पष्ट है कि अब वह अपनी जल संसाधनों पर नियंत्रण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है। सावलकोट परियोजना केवल एक ऊर्जा परियोजना नहीं, बल्कि भारत की बदलती सामरिक रणनीति और जल-सुरक्षा नीति का प्रतीक बन चुकी है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *