गुजरात में एशियाई शेरों की आबादी 891 हुई: संरक्षण प्रयासों की ऐतिहासिक सफलता

गुजरात के एशियाई शेरों की आबादी में एक महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। मई 2025 में आयोजित 16वीं जनगणना के अनुसार, अब इन शेरों की अनुमानित संख्या 891 हो गई है, जो कि 2020 की पिछली जनगणना में दर्ज 674 की संख्या से 217 अधिक है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने गांधीनगर में यह जानकारी साझा करते हुए कहा कि अब शेर केवल गिर राष्ट्रीय उद्यान तक सीमित नहीं हैं, बल्कि सौराष्ट्र के 11 जिलों में फैले हुए हैं, जिनमें तटीय और गैर-वन क्षेत्र भी शामिल हैं।
शेरों की बढ़ती उपस्थिति: एक संकेत उनके अनुकूलन की क्षमता का
गुजरात वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, 891 शेरों में 196 नर, 330 मादाएं, 140 उपवयस्क और 225 शावक शामिल हैं। गिर राष्ट्रीय उद्यान और वन्यजीव अभयारण्य में 384 शेर दर्ज किए गए, जबकि शेष 507 शेर गिर के बाहर अन्य क्षेत्रों में पाए गए। गिर के बाहर जिन क्षेत्रों में शेर दिखाई दिए उनमें पनिया, मिटियाला, गिरनार और बारदा जैसे अभयारण्य शामिल हैं। खास बात यह रही कि पोरबंदर से मात्र 15 किलोमीटर दूर बारदा अभयारण्य में 17 शेर देखे गए। भूतपूर्व एक ही झुंड में सबसे अधिक 17 शेरों की संख्या भावनगर जिले में दर्ज की गई।
जनगणना प्रक्रिया: सटीकता और तकनीकी उपयोग
जनगणना का यह अभ्यास 10 से 13 मई 2025 तक दो चरणों में किया गया, जिसमें 58 तालुकों में फैले लगभग 35,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर किया गया। इस अभियान में 3,000 से अधिक अधिकारियों, गणनाकारों और स्वयंसेवकों ने भाग लिया। जनगणना के लिए ‘डायरेक्ट बीट वेरिफिकेशन’ नामक अत्यंत सटीक पद्धति का उपयोग किया गया, जो लगभग शून्य त्रुटि के साथ डेटा प्रदान करती है। आधुनिक तकनीकों जैसे हाई-रिज़ॉल्यूशन कैमरा, कैमरा ट्रैप और जीपीएस युक्त रेडियो कॉलर का भी प्रयोग हुआ।
जिन जिलों में शेर देखे गए:
- जूनागढ़
- गिर सोमनाथ
- भावनगर
- अमरेली
- राजकोट
- मोरबी
- सुरेन्द्रनगर
- बोटाद
- पोरबंदर
- जामनगर
- देवभूमि द्वारका
संरक्षण प्रयासों की उपलब्धि और भावी दिशा
शेरों की संख्या में यह अभूतपूर्व वृद्धि गुजरात सरकार और वन विभाग द्वारा किए गए दीर्घकालिक संरक्षण प्रयासों का परिणाम है। गिर क्षेत्र के बाहर शेरों की उपस्थिति उनके बेहतर अनुकूलन और विस्तारशील व्यवहार को दर्शाती है, लेकिन इसके साथ ही यह नई प्रबंधन चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करती है जैसे मानव-वन्यजीव संघर्ष, विस्तृत निगरानी और आवास संरक्षण की आवश्यकता।