कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में मृत्यु आंकड़ों की वास्तविकता: एक छिपा संकट

कोविड-19 महामारी के छह वर्ष बाद, भारत में मृत्यु के आधिकारिक आंकड़ों और जमीनी हकीकत के बीच की खाई स्पष्ट होती जा रही है। नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) के हालिया आंकड़ों ने यह उजागर किया है कि महामारी के दौरान भारत में मृत्यु दर में जो अप्रत्याशित वृद्धि हुई, वह सरकारी आँकड़ों से कहीं अधिक रही। यह निष्कर्ष न केवल आंकड़ों में विसंगति को दर्शाता है, बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य निगरानी और योजना निर्माण में संरचनात्मक कमियों की ओर भी इशारा करता है।
महामारीकालीन मृत्यु दर: सरकारी आंकड़े बनाम वास्तविकता
2019 में भारत में कुल 76.4 लाख मौतें दर्ज हुई थीं। 2020 में यह संख्या बढ़कर 81.11 लाख हुई और 2021 में यह एकदम उछलकर 1.02 करोड़ पर पहुँच गई। यह वृद्धि एक तरह से इस बात का संकेत है कि कोविड-19 की मृत्यु दर आधिकारिक आंकड़े — 5.33 लाख — से कई गुना अधिक हो सकती है। मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ कॉज ऑफ डेथ (MCCD) रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में कोविड को 5.74 लाख मौतों का कारण माना गया, जबकि यह आंकड़ा केवल 23.4% प्रमाणित मौतों पर आधारित था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत में महामारी से जुड़ी वास्तविक मौतों की संख्या लगभग 47 लाख बताई थी — एक आंकड़ा जिसे भारत सरकार ने पहले नकार दिया था।
रिकॉर्डिंग की खामियाँ और अधूरी तस्वीर
सभी मौतों का रजिस्ट्रेशन भारत में अब भी अधूरा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, 2016 से 2020 के बीच 29% मौतें दर्ज ही नहीं की गईं। लॉकडाउन के दौरान नागरिक पंजीकरण को “अनिवार्य सेवा” की श्रेणी में न रखे जाने से यह समस्या और बढ़ गई।
केरल में किए गए एक फील्ड अध्ययन में यह पाया गया कि दाह संस्कार स्थलों पर मृत्यु की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, लेकिन इनमें से कई मौतें कोविड-19 के रूप में वर्गीकृत ही नहीं हुईं। अध्ययन में केवल 22.8% मृतकों के पास मृत्यु का कोई औपचारिक चिकित्सा प्रमाण था।
अप्रत्यक्ष मौतें: महामारी का एक और अनदेखा पहलू
कोविड-19 से जुड़ी मौतों की गणना केवल वायरस के प्रत्यक्ष संक्रमण से हुई मौतों तक सीमित नहीं होनी चाहिए। कई मौतें ऐसी भी हुईं जो अस्पताल की अनुपलब्धता, संक्रमण का डर, समय पर इलाज न मिलना, या लॉकडाउन के कारण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच न होने से हुईं। इन अप्रत्यक्ष मौतों को सरकारी आंकड़ों में शायद ही कभी शामिल किया गया हो।
केरल में हुए अध्ययन में पाया गया कि 34% मौतें अप्रत्यक्ष रूप से महामारी से जुड़ी थीं, और 9% गलत वर्गीकृत की गई थीं। यदि यह स्थिति केरल जैसे स्वास्थ्य क्षेत्र में अपेक्षाकृत सक्षम राज्य में है, तो गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में वास्तविक मृत्यु दर और सरकारी आंकड़ों के बीच का अंतर और भी अधिक गंभीर हो सकता है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- 2021 में भारत में दर्ज मौतों की संख्या 1.02 करोड़ रही।
- केवल 23.4% मौतों को ही औपचारिक रूप से चिकित्सा प्रमाण प्राप्त हुआ।
- WHO ने भारत में 47 लाख मौतों का अनुमान लगाया था, जो सरकार के आंकड़ों से 8 गुना अधिक है।
- लॉकडाउन के दौरान मृत्यु पंजीकरण को आवश्यक सेवा नहीं माना गया।