कश्मीर घाटी में तीन दशक बाद फिर दिखा यूरेशियन ऊदबिलाव

कभी कश्मीर की जल पारिस्थितिकी का अभिन्न हिस्सा रहे यूरेशियन ऊदबिलाव (Vuder) को तीन दशकों से विलुप्त माना जा रहा था, लेकिन हाल ही में इसकी दुर्लभ झलक दक्षिण कश्मीर में मिली है। लिद्दर नदी में स्थानीय लोगों द्वारा देखे गए इस अर्ध-जलीय स्तनधारी की पुष्टि वन्यजीव अधिकारियों ने की है। यह खोज न केवल जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि कश्मीर की पारिस्थितिकी के पुनरुद्धार की संभावना भी दिखाती है।

घाटी में यूरेशियन ऊदबिलाव की वापसी

दक्षिण कश्मीर के श्रीगुफवाड़ा इलाके में लिद्दर नदी के किनारे स्थानीय लोगों ने एक जीव को देखा, जिसे पहले मगरमच्छ समझा गया। बाद में, वीडियो और फोटो साक्ष्यों के आधार पर इसकी पहचान यूरेशियन ऊदबिलाव के रूप में हुई। वन्यजीव वार्डन सुहैल अहमद वागर के अनुसार, इसके बाद इलाके में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए और कुछ स्थानों पर इसे फिर से कैमरे में कैद किया गया।
इस वर्ष घाटी में यह तीसरा अवसर है जब ऊदबिलाव देखा गया है — मई में इसे गुरेज़ घाटी में और फिर शोपियां जिले के हीरपोरा क्षेत्र में देखा गया था। यह घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि घाटी में इसकी वापसी हो रही है।

यूरेशियन ऊदबिलाव: एक परिचय

  • स्थानीय नाम: वुडर
  • विज्ञान वर्गीकरण: सेमी-अक्वाटिक मांसाहारी स्तनधारी
  • संरक्षण स्थिति:

    • IUCN: ‘नियर थ्रेटन्ड’ (लगभग संकटग्रस्त)
    • भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची-II
    • CITES: परिशिष्ट-I

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • यूरेशियन ऊदबिलाव को यूरोपीय ऊदबिलाव या ओल्ड-वर्ल्ड ऊदबिलाव भी कहा जाता है।
  • इसकी उपस्थिति भारत में उत्तर, पूर्वोत्तर और दक्षिणी क्षेत्रों में दर्ज की गई है।
  • यह अकेला रहने वाला, शर्मीला और जल-जीवन के अनुकूल स्तनधारी है, जिसकी त्वचा घने, छोटे बालों वाली होती है जो पानी में इन्सुलेशन प्रदान करती है।
  • इसकी मुख्य खतरे हैं जल प्रदूषण और फर के लिए शिकार।

पारिस्थितिक महत्व और भविष्य की दिशा

ऊदबिलाव, मछलियों और अन्य जलीय जीवों का शिकार करता है और जल निकायों की जैविक संतुलन बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। इसका दोबारा देखा जाना संकेत है कि यदि उचित संरक्षण और जल स्रोतों की सफाई की जाए, तो घाटी की जैव विविधता पुनः समृद्ध हो सकती है।
वन विभाग के अधिकारियों ने इस दुर्लभ जीव की सुरक्षा के लिए निगरानी बढ़ा दी है और इसकी उपस्थिति को देखते हुए भविष्य में संरक्षण योजनाओं को और मज़बूत किया जाएगा। यदि यूरेशियन ऊदबिलाव घाटी में पुनः स्थायी रूप से बसता है, तो यह कश्मीर की पारिस्थितिकी के पुनरुद्धार की एक उल्लेखनीय कहानी होगी।

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