एयर इंडिया विमान दुर्घटना और ‘ब्लैक बॉक्स’: एक तकनीकी विश्लेषण

हाल ही में अहमदाबाद से लंदन जा रही एयर इंडिया की एक उड़ान उड़ान भरने के कुछ ही पलों बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गई। यह हादसा एक डॉक्टरों के हॉस्टल से टकराने के कारण हुआ, जिससे विमान और इमारत दोनों में व्यापक जनहानि की आशंका है। हादसे के बाद उठते धुएं और जलते मलबे के बीच, इस दुर्घटना के पीछे के कारणों की गहराई से जांच अब एक छोटे से यंत्र – ब्लैक बॉक्स – पर निर्भर करती है।

क्या होता है ब्लैक बॉक्स?

ब्लैक बॉक्स दरअसल दो यंत्रों का समुच्चय होता है — कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर (CVR) और फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR)। यह उपकरण विमान में हो रही बातचीत, इंजन की आवाजें, उड़ान के तकनीकी मापदंड जैसे ऊंचाई, गति, दिशा, तापमान आदि को रिकॉर्ड करता है। आधुनिक विमानों में ये यंत्र 1,000 से अधिक डेटा बिंदुओं को संग्रहित करने की क्षमता रखते हैं।

ब्लैक बॉक्स की उत्पत्ति और विकास

साल 1953 में ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक डेविड वॉरेन ने इसका विचार प्रस्तुत किया था, जब वे एक वाणिज्यिक जेट दुर्घटना की जांच कर रहे थे। 1956 में उन्होंने इसका पहला प्रोटोटाइप तैयार किया। धीरे-धीरे यह यंत्र वैश्विक विमानन सुरक्षा का अभिन्न अंग बन गया।

कैसे करता है यह काम?

  • CVR पायलट और क्रू के संवाद, इंजन की आवाज़, अलार्म और चेतावनी संकेतों को रिकॉर्ड करता है।
  • FDR उड़ान के 88 से अधिक तकनीकी मापदंडों को लगातार ट्रैक करता है, जिससे जांचकर्ता दुर्घटना से पहले की पूरी स्थिति का विश्लेषण कर सकते हैं।

इन जानकारियों की मदद से कंप्यूटर पर उड़ान की एक एनिमेटेड वीडियो भी तैयार की जा सकती है, जिससे दुर्घटना का क्रम स्पष्ट होता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • ब्लैक बॉक्स आमतौर पर नारंगी रंग का होता है, ताकि मलबे में आसानी से मिल सके।
  • यह यंत्र 1100 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी और समुद्र की गहराई में 14,000 फीट तक का दबाव सह सकता है।
  • ब्लैक बॉक्स विमान के पिछले हिस्से में लगाया जाता है क्योंकि वहां क्षति की संभावना कम होती है।
  • भारत में अब दिल्ली स्थित डिजिटल रिकॉर्डर लैब में दुर्घटना डेटा की विश्लेषणात्मक जांच संभव है।

सीमाएं भी मौजूद हैं

हालांकि ब्लैक बॉक्स अत्यधिक भरोसेमंद है, फिर भी इसके डेटा खोने की घटनाएं भी सामने आई हैं। मलेशिया एयरलाइंस फ्लाइट 370 जैसे मामलों में ब्लैक बॉक्स से कोई संकेत नहीं मिले। वहीं, दक्षिण कोरिया में हुए एक अन्य हादसे में लैंडिंग के अंतिम क्षणों का डेटा मिट चुका था।
एयर इंडिया की इस दुर्घटना की जाँच अब ब्लैक बॉक्स में निहित डेटा से ही तय करेगी कि पायलट की क्या प्रतिक्रिया थी, तकनीकी गड़बड़ी क्या थी, और यह त्रासदी कैसे टाली जा सकती थी। इस तकनीकी यंत्र के माध्यम से न केवल कारणों की पहचान होगी, बल्कि भविष्य की उड़ानों के लिए सुरक्षा मानकों को भी और अधिक मजबूत किया जा सकेगा।

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