ऋणजाल में फंसी विकासशील अर्थव्यवस्थाएं: वैश्विक वित्तीय व्यवस्था की असमानता का असर

स्पेन के सेविले में आयोजित चौथे अंतरराष्ट्रीय वित्तपोषण फॉर डेवलपमेंट सम्मेलन (FfD4) के अवसर पर यह स्पष्ट होता है कि आज भी विकासशील देशों पर भारी विदेशी ऋण बोझ बना हुआ है। वैश्विक वित्तीय ढांचे की असमानता और उच्च ब्याज दरों ने इन्हें एक ऐसे चक्रव्यूह में डाल दिया है, जहाँ सरकारों के सामने दो ही विकल्प हैं — या तो ऋण चुकाएं, या जनकल्याण करें।
इतिहास से लेकर वर्तमान तक की ऋण की कहानी
विकासशील देशों की ऋणग्रस्तता की जड़ें 1970 के दशक के तेल संकट से जुड़ी हैं। तेल आयात पर निर्भर देशों को पेट्रोडॉलर आधारित कर्ज दिया गया, जिससे वे पश्चिमी देशों से सामान खरीदते रहें। 1980 के दशक की वैश्विक मंदी और बढ़ती ब्याज दरों ने इन देशों को पहले से लिए कर्ज का ब्याज चुकाने के लिए और कर्ज लेने को मजबूर कर दिया। ब्राज़ील इसका उदाहरण है जिसने 1972–1988 के बीच $124 अरब के कर्ज पर $176 अरब ब्याज चुका दिया।
आज का परिदृश्य: बढ़ता ब्याज, घटती सेवा
2023 में विकासशील देशों ने रिकॉर्ड $1.4 ट्रिलियन का भुगतान अपने विदेशी कर्ज पर ब्याज के रूप में किया, जो कि पिछले दो दशकों में सबसे अधिक है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) के अनुसार, 54 विकासशील देशों ने अपने सरकारी राजस्व का 10% या उससे अधिक हिस्सा केवल ब्याज भुगतान में खर्च किया।
‘Beyond Climate Finance’ रिपोर्ट बताती है कि निम्न और मध्यम आय वाले देश (LMICs) अब जलवायु लक्ष्यों पर खर्च करने से ज्यादा रकम कर्ज चुकाने में खर्च कर रहे हैं। 2013 में हर एक डॉलर की GNI पर 1.6 सेंट ब्याज में जाता था, जो 2023 में बढ़कर 2.5 सेंट हो गया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- 2023 में अफ्रीकी देशों ने 2013 की तुलना में 3.2 गुना अधिक ($25.1 अरब) ब्याज भुगतान किया।
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र का ब्याज भुगतान 2013 में $20.9 अरब से बढ़कर 2023 में $64.1 अरब हो गया — 48.7% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ।
- ग्लोबल नॉर्थ देशों ने महामारी के दौरान GDP का औसतन 12% खर्च किया, जबकि उभरते बाजारों ने 6% और निम्न-आय वाले देशों ने मात्र 3% खर्च किया।
- क्रेडिट रेटिंग प्रणाली में भेदभाव के कारण 2020 में 95% रेटिंग डाउनग्रेड्स केवल विकासशील देशों को प्रभावित कर रहे थे।
असमान क्रेडिट रेटिंग का दुष्चक्र
विकासशील देशों को अक्सर “उच्च जोखिम” वाला माना जाता है, जिससे उन्हें 2-4 गुना अधिक ब्याज पर कर्ज मिलता है। जैसे कैमरून और इथियोपिया ने DSSI (Debt Service Suspension Initiative) के तहत राहत मांगी, तो उनकी क्रेडिट रेटिंग और नीचे कर दी गई, जिससे ब्याज और बढ़ गया। इससे उनकी आर्थिक पुनर्प्राप्ति की प्रक्रिया और लंबी हो गई।
यह स्पष्ट है कि वैश्विक वित्तीय प्रणाली वर्तमान में ग्लोबल साउथ के लिए अनुकूल नहीं है। ऋण चुकाने में व्यस्त सरकारें स्वास्थ्य, शिक्षा और जलवायु जैसे बुनियादी क्षेत्रों पर पर्याप्त खर्च नहीं कर पा रही हैं। ऐसे में वित्तीय पुनर्संरचना, निष्पक्ष क्रेडिट मूल्यांकन और ब्याज दरों में समानता लाना अनिवार्य है — ताकि विकासशील देश भी आत्मनिर्भर, समावेशी और सतत विकास की दिशा में अग्रसर हो सकें।