चीन की उर्वरक निर्यात नीति का भारत पर प्रभाव: डीएपी की कमी और बदलती रणनीति

कृषि उत्पादन में उर्वरकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है, और भारत जैसे कृषि-प्रधान देश के लिए इनमें किसी भी प्रकार की आपूर्ति में असंतुलन व्यापक प्रभाव डाल सकता है। हाल ही में चीन द्वारा डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) उर्वरक के निर्यात पर लगाई गई रोक ने भारत में डीएपी की उपलब्धता और कीमतों पर गहरा असर डाला है। यह बदलाव न केवल किसानों की कृषि रणनीति को प्रभावित कर रहा है, बल्कि देश की उर्वरक नीति पर भी पुनर्विचार की आवश्यकता पैदा कर रहा है।
चीन से डीएपी आयात में भारी गिरावट
भारत में डीएपी उर्वरक का दूसरा सबसे अधिक उपयोग होता है, और इसका एक बड़ा हिस्सा आयात के जरिए पूरा किया जाता है। 2023-24 में चीन से भारत ने 22.9 लाख टन डीएपी आयात किया था, जो 2024-25 में घटकर केवल 8.4 लाख टन रह गया। वर्ष 2025 में अभी तक चीन से एक भी टन डीएपी भारत नहीं आया है। चीन द्वारा अपने किसानों को प्राथमिकता देने और ईवी बैटरियों में फॉस्फेट की बढ़ती मांग के चलते यह निर्यात नियंत्रण लगाया गया है।
वैश्विक बाज़ार में असर और भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
चीन की अनुपस्थिति से डीएपी के अंतरराष्ट्रीय दामों में तेजी देखी गई है। उदाहरणस्वरूप, जॉर्डन से भारत द्वारा मंगाया गया नवीनतम डीएपी खेप $781.5 प्रति टन की लागत पर पहुँचा, जबकि वर्ष की शुरुआत में यह $635 के आस-पास था। सऊदी अरब की SABIC कंपनी की ताजा कोटेशन $810 प्रति टन से भी ऊपर है।
भारत अब डीएपी की कमी को पूरा करने के लिए सऊदी अरब, मोरक्को, रूस और जॉर्डन जैसे देशों से आयात बढ़ा रहा है। साथ ही, फॉस्फोरिक एसिड की कीमतें भी लगातार बढ़ रही हैं, जो घरेलू डीएपी उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चा माल है।
उर्वरक उपयोग में बदलाव: डीएपी से एनपीकेएस की ओर रुझान
डीएपी की बिक्री में गिरावट दर्ज की गई है – 2023-24 में 108.1 लाख टन से घटकर 2024-25 में 92.8 लाख टन हो गई। इसके विपरीत, एनपीकेएस (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम और सल्फर) मिश्रित उर्वरकों की बिक्री में 28.4% की वृद्धि हुई है। खासकर 20:20:0:13 (एपीएस) की मांग तेज़ी से बढ़ी है, जो अब देश का तीसरा सबसे अधिक खपत वाला उर्वरक बन गया है।
एपीएस में डीएपी की तुलना में फॉस्फोरस कम (20%) होता है, लेकिन यह 13% सल्फर प्रदान करता है जो कई फसलों – जैसे तिलहन, मक्का, प्याज, मिर्च – के लिए महत्वपूर्ण है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- डीएपी (46% P, 18% N) भारत में दूसरा सबसे ज़्यादा खपत वाला उर्वरक है।
- भारत प्रति वर्ष औसतन 57 लाख टन डीएपी आयात करता है।
- चीन, रूस, सऊदी अरब, मोरक्को और जॉर्डन डीएपी के प्रमुख निर्यातक हैं।
- 20:20:0:13 (APS) उर्वरक में सल्फर की उपस्थिति इसे डीएपी का संतुलित विकल्प बनाती है।
आगे की राह
भारत सरकार ने डीएपी की खुदरा कीमत 1,350 रुपये प्रति 50 किलो बैग पर तय की है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर किसान इससे अधिक कीमत चुका रहे हैं। दूसरी ओर, एपीएस और अन्य एनपीकेएस उर्वरक संतुलित पोषण और उचित कीमत के कारण किसानों में लोकप्रिय हो रहे हैं। डीएपी की सीमित उपलब्धता और अधिक आयात निर्भरता को देखते हुए यह बदलाव दीर्घकालिक रूप से भारतीय कृषि के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
इस संकट से उभरते हुए भारत को अब उर्वरकों की संतुलित उपयोग नीति अपनानी होगी, जिससे न केवल विदेशी मुद्रा की बचत होगी, बल्कि मृदा स्वास्थ्य भी बेहतर रहेगा। चीन की नीति से उत्पन्न यह चुनौती, भविष्य के लिए अवसर भी बन सकती है – एक संतुलित, आत्मनिर्भर और टिकाऊ उर्वरक रणनीति की दिशा में।