CISF की पहली ऑल-विमेन कमांडो यूनिट: सुरक्षा बलों में लैंगिक समानता की ओर एक क्रांतिकारी कदम

भारत की सुरक्षा संरचना में ऐतिहासिक परिवर्तन लाते हुए, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) ने अपनी पहली ऑल-विमेन कमांडो यूनिट की शुरुआत की है। यह पहल न केवल महिला सशक्तिकरण का प्रतीक है, बल्कि सुरक्षा बलों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने का एक ठोस प्रयास भी है। मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले स्थित बरवाहा क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र में इस विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की गई है।
कठोर और समर्पित प्रशिक्षण
CISF की पहली ऑल-विमेन कमांडो यूनिट के लिए 30 महिला कर्मियों का पहला बैच 11 अगस्त से 8 सप्ताह के गहन प्रशिक्षण में जुटा हुआ है। यह प्रशिक्षण 4 अक्टूबर को समाप्त होगा, जिसके बाद दूसरा बैच 6 अक्टूबर से 29 नवंबर तक इसी पाठ्यक्रम का हिस्सा बनेगा। इस पहले चरण में कुल मिलाकर 100 महिलाओं को प्रशिक्षित किया जाना है।
प्रशिक्षण कार्यक्रम में शारीरिक फिटनेस, हथियारों का संचालन, लाइव फायर अभ्यास, रैपलिंग, जंगल और बाधा कोर्स, और 48 घंटे का आत्मविश्वास निर्माण मॉड्यूल शामिल है। यह प्रशिक्षण महिलाओं को उच्च सुरक्षा स्थलों पर तैनात त्वरित प्रतिक्रिया दल (QRT) और विशेष कार्य बल (STF) का हिस्सा बनने के लिए तैयार करता है।
संचालनात्मक भूमिकाओं में महिलाओं की बढ़ती भूमिका
वर्तमान में CISF में महिलाओं की हिस्सेदारी लगभग 8% है, जिसमें 12,491 महिला कर्मी कार्यरत हैं। सरकार का लक्ष्य 2026 तक इस आंकड़े को 10% तक पहुंचाने का है, जिसके लिए 2,400 अतिरिक्त महिला भर्ती की योजना बनाई गई है। यह पहल इस दिशा में एक निर्णायक कदम है कि अब महिलाओं को केवल सहायक भूमिकाओं तक सीमित नहीं रखा जाएगा, बल्कि उन्हें सीधे संचालनात्मक जिम्मेदारियों में शामिल किया जाएगा।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- CISF भारत का एकमात्र बल है जो प्रमुख औद्योगिक प्रतिष्ठानों, हवाई अड्डों, मेट्रो और परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा करता है।
- वर्तमान में CISF के अधीन 1.70 लाख कर्मी हैं।
- यह बल देश के 69 नागरिक हवाई अड्डों की सुरक्षा का दायित्व निभाता है।
- यह पहली बार है जब किसी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल ने विशेष रूप से ऑल-विमेन कमांडो यूनिट गठित की है।
इस ऑल-विमेन कमांडो यूनिट की स्थापना न केवल CISF के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणादायक कदम है। इससे यह संदेश स्पष्ट होता है कि महिलाएं अब केवल समर्थन भूमिकाओं तक सीमित नहीं, बल्कि सुरक्षा जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में भी नेतृत्व और निष्पादन की क्षमता रखती हैं। यह कदम देश की सुरक्षा संरचना में एक नया अध्याय जोड़ता है, जिसमें लैंगिक समानता और व्यावसायिक उत्कृष्टता दोनों को प्राथमिकता दी जा रही है।