6.5% जीडीपी वृद्धि: मजबूती के संकेत या चुनौतियों की आहट?

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि 6.5% रही, जो कि अंतिम तिमाही में 7% से अधिक की तेज़ वृद्धि के कारण संभव हो सकी। यह आँकड़ा निश्चित रूप से उत्साहजनक है और बताता है कि देश की अर्थव्यवस्था ने कठिन वैश्विक परिस्थितियों के बावजूद लचीलापन दिखाया है। हालांकि, इस वृद्धि के पीछे छिपी चुनौतियाँ भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें समझना आवश्यक है।

घरेलू मजबूती बनाम नीतिगत अड़चनें

कृषि क्षेत्र की अच्छी वृद्धि और सेवाओं की लगातार मजबूती ने आर्थिक विकास को समर्थन दिया है। वहीं, औद्योगिक गतिविधियों में भी कुछ सुधार देखा गया है, हालांकि यह असमान रहा है। इसके बावजूद निजी पूंजी निवेश की जड़ता, शहरी खपत की कमजोरी, ग्रामीण मांग की अपूर्ण रिकवरी, और घरेलू संतुलन पत्रों पर तनाव जैसी समस्याएँ बनी हुई हैं। खास बात यह है कि सरकारी पूंजी व्यय के बावजूद, निजी क्षेत्र निवेश को लेकर उदासीन बना हुआ है।

संरचनात्मक सुधार और उनकी सीमाएँ

पिछले एक दशक में केंद्र सरकार ने कई बड़े सुधार लागू किए, जैसे GST, दिवालियापन कानून, कॉरपोरेट टैक्स कटौती, और आयकर राहत। इसके साथ ही आधारभूत ढांचे में भारी निवेश भी किया गया। परंतु इन उपायों का अपेक्षित परिणाम अब तक नहीं दिखा। फैक्ट्रियाँ पिछले 11 वर्षों से लगभग 75% क्षमता पर ही काम कर रही हैं और सकल स्थिर पूंजी निर्माण 25% के स्तर पर स्थिर है, जैसा कि 2014 में था।

रोजगार और वेतन वृद्धि की सुस्ती

कंपनियों के मुनाफे में तेज़ वृद्धि के बावजूद वेतन वृद्धि और नियुक्तियों की गति कम रही है, जिससे आय असमानता और मांग में कमजोरी बनी हुई है। उद्योगों का मानना है कि मांग की कमजोर गति के चलते वे नए संयंत्र लगाने या विस्तार करने के लिए प्रेरित नहीं हो रहे।

नीतिगत सीमाएँ और वैश्विक अस्थिरता

RBI ने फरवरी 2025 से अब तक 100 बेसिस पॉइंट की दर कटौती की है, जिसमें हालिया 50 bps की कटौती भी शामिल है। हालांकि, इससे आगे की मौद्रिक नीति में कटौती की गुंजाइश कम होती दिख रही है। सरकार भी टैक्स राहत जैसे हथियार पहले ही इस्तेमाल कर चुकी है और वर्तमान में बड़े सुधारों के लिए कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई दे रही है। वहीं, अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ, वैश्विक मंदी और चीन की धीमी अर्थव्यवस्था जैसे बाहरी कारक भारत की निर्यात क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि वित्त वर्ष 2024-25 में 6.5% रही।
  • सकल स्थिर पूंजी निर्माण 2014 से 25% के स्तर पर स्थिर बना हुआ है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने 2025 में अब तक कुल 100 बेसिस पॉइंट की रेपो दर कटौती की है।
  • कंपनियों की क्षमता उपयोग दर लगभग 75% पर बनी हुई है।

भारत की दीर्घकालिक विकास गाथा अभी भी जीवित है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियाँ दर्शाती हैं कि यह सफर आसान नहीं होगा। रोजगार सृजन, खपत में सुधार, और निजी निवेश में वृद्धि – ये तीनों स्तंभ ऐसे हैं, जिन पर आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक स्थिरता और समावेशी विकास टिका रहेगा। नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे संरचनात्मक सुधारों और निवेश अनुकूल माहौल को नई ऊर्जा दें, ताकि देश 6.5% से अधिक की दर से टिकाऊ वृद्धि की राह पर आगे बढ़ सके।

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