2026 के बाद परिसीमन पर असमंजस: जनसंख्या बनाम समान प्रतिनिधित्व का द्वंद्व

2026 के बाद परिसीमन पर असमंजस: जनसंख्या बनाम समान प्रतिनिधित्व का द्वंद्व

भारत में 1971 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर लोकसभा सीटों के आवंटन की प्रक्रिया को पिछले 50 वर्षों से स्थगित रखा गया है, लेकिन यह स्थगन 2026 में समाप्त होने वाला है। यदि संसद एक और संवैधानिक संशोधन विधेयक पारित नहीं करती, तो परिसीमन की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत अनिवार्य रूप से शुरू हो जाएगी। इससे उत्तर और दक्षिण भारत के बीच राजनीतिक शक्ति संतुलन पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

परिसीमन की संवैधानिक पृष्ठभूमि

संविधान का अनुच्छेद 82 यह निर्देश देता है कि हर जनगणना के बाद संसद को एक परिसीमन अधिनियम बनाना होगा और फिर केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करेगी। यह आयोग प्रत्येक राज्य में जनसंख्या के अनुसार लोकसभा सीटों का नया निर्धारण करेगा।
अनुच्छेद 81 (2)(a) स्पष्ट रूप से कहता है कि सभी राज्यों को लोकसभा में ऐसी संख्या में सीटें दी जाएंगी कि राज्य की जनसंख्या और उसकी सीटों का अनुपात, जहां तक संभव हो, सभी राज्यों में समान हो। इसका उद्देश्य “एक व्यक्ति, एक मत, एक मूल्य” के सिद्धांत को लागू करना है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • परिसीमन स्थगन पहली बार 1976 में और फिर 2002 में 25-25 वर्षों के लिए किया गया।
  • वर्तमान परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर 2002 में किया गया था।
  • अनुच्छेद 81 लोकसभा की अधिकतम संख्या 550 निर्धारित करता है।
  • परिसीमन आयोग, जनगणना के बाद ही गठित किया जाता है।

दक्षिण बनाम उत्तर: प्रतिनिधित्व में असमानता की आशंका

दक्षिण भारत के राज्यों ने जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित किया है, जबकि उत्तर भारत में यह तेज़ी से बढ़ी है। यदि परिसीमन 2027 की जनगणना के आधार पर किया जाता है, तो उत्तर भारत को अधिक सीटें मिलेंगी और दक्षिण भारत की संसदीय शक्ति में अपेक्षाकृत गिरावट आएगी। इससे दक्षिणी राज्यों में असंतोष फैल सकता है और वे विशेष संवैधानिक सुरक्षा की मांग कर सकते हैं।
संभावित समाधान के रूप में अनुच्छेद 81 (2)(a) में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन यह समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14 और 15) के तहत सुप्रीम कोर्ट में चुनौती का सामना कर सकता है। यदि संशोधन यह सुनिश्चित करता है कि दक्षिण के राज्यों की सीटें कम न हों, तो यह “समान नागरिकों के साथ समान व्यवहार” के सिद्धांत का उल्लंघन माना जा सकता है।

महिला आरक्षण और सीटों की संख्या

महिला आरक्षण को प्रभावी बनाने के लिए भी सीटों की कुल संख्या बढ़ानी पड़ सकती है, ताकि पुरुषों के प्रतिनिधित्व में कटौती न हो। इसके लिए अनुच्छेद 81 में संशोधन आवश्यक होगा क्योंकि वर्तमान में लोकसभा की अधिकतम सीमा 550 सांसदों की है।
कुल मिलाकर, परिसीमन का प्रश्न संवैधानिक, राजनीतिक और न्यायिक दृष्टिकोण से अत्यंत जटिल है। एक ओर जनसंख्या के आधार पर समान प्रतिनिधित्व का सिद्धांत है, वहीं दूसरी ओर उन राज्यों के साथ न्याय का प्रश्न भी है जिन्होंने सामाजिक संकेतकों में सुधार कर जनसंख्या को स्थिर किया है। यह संघर्ष केवल विधायी कार्रवाई से नहीं सुलझेगा, बल्कि इसमें गहन संवाद, सहमति और संवैधानिक विवेक की आवश्यकता होगी।

Originally written on June 13, 2025 and last modified on June 13, 2025.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *