116वां डिंडी महोत्सव: गोवा का सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उत्सव
 
श्री हरीमंदिर देवस्थान, मडगांव द्वारा आयोजित 116वां डिंडी महोत्सव इस वर्ष राज्य स्तरीय मान्यता के साथ मनाया जा रहा है। यह महोत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि गोवा की सांस्कृतिक धरोहर का भी जीवंत स्वरूप है। कार्तिकी एकादशी के अवसर पर आयोजित यह उत्सव 30 अक्टूबर से 4 नवम्बर 2025 तक चलेगा, जिसमें 3 नवम्बर को मुख्य पालखी यात्रा निकलेगी।
धार्मिक अनुष्ठान और पालखी यात्रा का मार्ग
इस महोत्सव की आत्मा श्री विठ्ठल रखुमाई की पालखी यात्रा है, जो मडगांव के पजीफोंड स्थित श्री हरीमंदिर से शाम के अनुष्ठानों के बाद प्रारंभ होती है। यह यात्रा पारंपरिक मंडपों जैसे दमोदर साल में रुकते हुए कॉम्बा स्थित श्री विठ्ठल मंदिर तक पहुँचती है, जहाँ भोर में आरती होती है। पूरी रात भजन-कीर्तन और अर्पणों के साथ भक्तजन पालखी के साथ चलते हैं और अगली सुबह पालखी पुनः पजीफोंड लौटती है।
डिंडी पथकों में भक्त मृदंग, मंजीरे और अभंगों के साथ चलते हैं, जो वारकरी परंपरा की अनुशासित भक्ति को दर्शाता है। यह यात्रा न केवल भक्ति का माध्यम है, बल्कि एक सांस्कृतिक संगम भी है।
सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और समाज की भागीदारी
डिंडी महोत्सव का आयोजन केवल धार्मिक यात्रा तक सीमित नहीं है। इसमें गायन व भजनी बैठकें, बच्चों व महिलाओं की डिंडी प्रतियोगिताएँ, और शास्त्रीय व भक्तिमय संगीत की प्रस्तुतियाँ स्थानीय संस्थाओं द्वारा आयोजित की जाती हैं। सामुदायिक रसोई (महाप्रसादालय) तीव्र समयों में भोजन उपलब्ध कराती हैं, जबकि युवा संगठन जलसेवा, प्राथमिक चिकित्सा और खोया-पाया सहायता केंद्रों का संचालन करते हैं।
स्थानीय व्यापारिक प्रतिष्ठान अपने समय बढ़ाते हैं और मोहल्ला समितियाँ प्रमुख पड़ावों पर विश्राम स्थल उपलब्ध कराती हैं, जिससे तीर्थयात्रियों को सहूलियत मिले।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- महोत्सव अवधि: 30 अक्टूबर से 4 नवम्बर 2025; मुख्य पालखी दिवस: 3 नवम्बर।
- आयोजक मंदिर: श्री हरीमंदिर देवस्थान, पजीफोंड, मडगांव (विठ्ठल-रखुमाई)।
- 2025 में गोवा सरकार द्वारा राज्य-स्तरीय उत्सव का दर्जा प्राप्त।
- पारंपरिक रात्रिकालीन मार्ग: पजीफोंड से कॉम्बा और वापस।
परंपरा, महत्व और व्यवस्थापन
डिंडी महोत्सव की शुरुआत 20वीं सदी के प्रारंभ में हुई जब कई गोवा निवासी कार्तिकी वारी के लिए पंढरपुर नहीं जा सकते थे। तब से यह परंपरा मडगांव की सांस्कृतिक पहचान बन गई है। 100 वर्षों से अधिक की इस निरंतरता ने महोत्सव को नई ऊँचाई दी है। इस वर्ष राज्य मान्यता मिलने के साथ व्यवस्थाओं को व्यापक बनाया गया है—रूट लाइटिंग, सीसीटीवी, आपातकालीन लेन, सार्वजनिक सुविधाएं और पार्क-एंड-वॉक योजनाएं शामिल हैं।
मंदिर ट्रस्ट, नागरिक निकाय और स्वयंसेवकों की संयुक्त सहभागिता यह सुनिश्चित कर रही है कि भक्ति की मर्यादा बनी रहे और बढ़ती भीड़ के बीच सभी श्रद्धालु सुरक्षित और सहज अनुभव प्राप्त करें।
