हिमालय में बढ़ते GLOF जोखिम: नेपाल की त्रासदी और भारत की तैयारी

8 जुलाई 2025 को नेपाल में एक भीषण ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) घटना हुई, जिसमें तिब्बत से नेपाल बहने वाली लेन्दे नदी में अचानक बाढ़ आ गई। इस बाढ़ ने न केवल नेपाल-चीन ‘फ्रेंडशिप ब्रिज’ को नष्ट किया, बल्कि रसुवागढ़ी के 10 वर्षीय इनलैंड कंटेनर पोर्ट को भी अस्थिर कर दिया। इसके अलावा, भोटे कोशी नदी के किनारे स्थित चार जलविद्युत संयंत्र पूरी तरह निष्क्रिय हो गए, जिससे नेपाल की कुल विद्युत आपूर्ति का 8% प्रभावित हुआ।

क्या ट्रांस-बाउंडरी झीलें चेतावनी तंत्र को कमजोर बनाती हैं?

इस घटना की पुष्टि भले ही चीन की ओर से नहीं हुई हो, लेकिन नेपाल के वैज्ञानिकों और अधिकारियों ने तिब्बत में स्थित एक सुप्राग्लेशियल झील के फटने को GLOF का कारण माना है। नेपाल के अधिकारियों ने इस बात पर चिंता जताई कि चीन ने न तो कोई पूर्व चेतावनी दी, और न ही ऐसा कोई द्विपक्षीय तंत्र मौजूद है।
इसी दिन नेपाल के मुस्तांग जिले में एक और GLOF घटना दर्ज की गई। इसके अलावा, मई 2025 में हुम्ला जिले में और 2024 में सोलुखुम्बु के थमे गांव में भी GLOF घटनाएँ हुई थीं, जो एवरेस्ट बेस कैंप का हिस्सा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि हिमालयी क्षेत्र में GLOF खतरा लगातार बढ़ रहा है।

भारत में GLOF खतरे की प्रकृति

भारत के राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग केंद्र के अनुसार, भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में 28,000 ग्लेशियल झीलें हैं और 7,500 झीलें भारत के भीतर स्थित हैं, जिनमें अधिकांश 4,500 मीटर से ऊपर हैं। यहां दो प्रकार की झीलें पाई जाती हैं:

    • सुप्राग्लेशियल झीलें — ग्लेशियर की सतह पर बनती हैं, और गर्मियों में तीव्र पिघलन से अत्यंत अस्थिर हो जाती हैं।
  • मॉरेन-डैम्ड झीलें — ग्लेशियर के सिरे पर पिघले पानी द्वारा बनती हैं और ढीली मिट्टी या बर्फ से बाधित होती हैं, जो कभी भी फट सकती हैं।

इनमें से अधिकांश झीलें अत्यंत दुर्गम क्षेत्रों में स्थित हैं, जहाँ मॉनिटरिंग स्टेशन नहीं हैं। केवल रिमोट सेंसिंग द्वारा सतही क्षेत्र में बदलाव का अवलोकन संभव है, जो पूर्व चेतावनी प्रणाली नहीं बनाता।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • 2023 और 2024 पृथ्वी के सबसे गर्म वर्ष रहे हैं, जिससे ग्लेशियर पिघलने की दर में वृद्धि हुई।
  • 2023 की साउथ लोनक GLOF घटना (सिक्किम) में $2 बिलियन का चंगथांग बांध पूरी तरह नष्ट हो गया।
  • 2013 की केदारनाथ त्रासदी (चौराबाड़ी GLOF) GLOF के साथ-साथ बादल फटने और भूस्खलन से हुई एक श्रृंखलाबद्ध आपदा थी।
  • भारत सरकार ने 2024 में $20 मिलियन की राष्ट्रीय योजना शुरू की, जिसमें पहले 56 और अब 195 अतिसंवेदनशील झीलों को सूचीबद्ध किया गया है।

भारत की रणनीति: जोखिम न्यूनीकरण से पूर्व चेतावनी तक

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के नेतृत्व में CoDRR ने वैज्ञानिक संस्थानों, राज्यों और तकनीकी विशेषज्ञों को मिलाकर एक समन्वित प्रयास शुरू किया। इस योजना के पाँच उद्देश्य हैं:

  1. प्रत्येक झील का जोखिम आकलन
  2. AWWS (स्वचालित मौसम एवं जल स्टेशन) की स्थापना
  3. डाउनस्ट्रीम पूर्व चेतावनी प्रणाली (EWS) का निर्माण
  4. जल स्तर को घटाने हेतु संरचनात्मक उपाय
  5. स्थानीय समुदाय की भागीदारी

समर 2024 के अभियान: डेटा और स्थानीय जुड़ाव

राज्यों ने 40 सबसे संवेदनशील झीलों पर वैज्ञानिक अभियानों के लिए पहल की। वैज्ञानिकों ने बाथीमेट्री, ERT (इलेक्ट्रिकल रेजिस्टिविटी टोमोग्राफी), ड्रोन सर्वे और ढलान स्थिरता का आकलन किया। सिक्किम की दो झीलों पर 10-10 मिनट में डेटा भेजने वाले मॉनिटरिंग स्टेशन भी लगाए गए।
इस दौरान कई मानवीय अनुभव भी सामने आए—एक टीम मौसम बिगड़ने पर रास्ता भटक गई, जबकि दूसरी टीम को धार्मिक झील के पास एक सदस्य को पीछे छोड़ना पड़ा ताकि झील का सम्मान बना रहे। इससे समुदाय की भूमिका की महत्ता भी सिद्ध हुई।

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