हिमालयी विकास की नई राह: प्रकृति-संगत और समुदाय-आधारित मॉडल की मांग

26 सितंबर को देहरादून स्थित दून विश्वविद्यालय में आयोजित 12वें सतत पर्वतीय विकास शिखर सम्मेलन (SMDS-XII) में विशेषज्ञों और नीति-निर्माताओं ने हिमालय क्षेत्र के लिए प्रकृति के अनुकूल और समुदाय-आधारित विकास मॉडल की वकालत की। यह दो दिवसीय सम्मेलन भारत के संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते जलवायु संकट और अनियोजित विकास के दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए आयोजित किया गया।
जलवायु आपदाएँ और विकास की चुनौती
उत्तराखंड के वन एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री सुबोध उनियाल ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि हिमालय भारत की 80% जल आपूर्ति का स्रोत है, लेकिन यहाँ लगातार जलवायु आपदाएँ हो रही हैं। उन्होंने इस वर्ष के मानसून में जान-माल की भारी क्षति पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि, “हिमालय में विकास वैज्ञानिक दृष्टि से मजबूत और जन-हितैषी होना चाहिए ताकि यह क्षेत्र सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की ओर अग्रसर हो सके।”
उनियाल ने उत्तराखंड में कई सामुदायिक पहलों का उल्लेख किया, जैसे:
- चीड़ की सुइयों का संग्रह, जिससे जंगलों में आग की घटनाएँ कम होती हैं।
- इको-होमस्टे की योजना, जिससे पलायन की दर को रोका जा सके।
- हरेला पर्व पर अनिवार्य वृक्षारोपण, जो पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ाता है।
सम्मेलन में प्रस्तुत विचार और पहल
सम्मेलन का आयोजन इंटीग्रेटेड माउंटेन इनिशिएटिव (IMI) द्वारा किया गया, जिसमें भारत के विभिन्न हिमालयी राज्यों से लगभग 250 प्रतिभागी शामिल हुए, जिनमें वैज्ञानिक, किसान, सामाजिक कार्यकर्ता और अधिकारी शामिल थे। सिक्किम, हिमाचल और उत्तराखंड के दूरदराज के किसानों ने एग्रोइकोलॉजी और कृषि सहनशीलता विषय पर सत्रों में भाग लिया।
प्रो. अनिल कुमार गुप्ता (ICAR, रुड़की) ने मुख्य भाषण देते हुए कहा कि पर्यावरणीय प्राथमिकताएँ अक्सर नीति-पत्रों में तो होती हैं, लेकिन उनके क्रियान्वयन में भारी कमी है। उन्होंने हिमालयी सततता के लिए आधुनिक विज्ञान और पारंपरिक ज्ञान के समन्वय की आवश्यकता पर बल दिया।उन्होंने सुझाव दिए:
- पर्यटन पर नियंत्रण
- आपदा प्रबंधन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का प्रयोग
- पारंपरिक कृषि प्रणालियों को बढ़ावा
- नवाचार आधारित उद्यमिता को प्रोत्साहन
IMI अध्यक्ष रमेश नेगी ने कहा कि हिमालय अब अनियोजित विकास का भार नहीं झेल सकता और GDP को ही विकास का एकमात्र पैमाना मानने की प्रवृत्ति पर पुनर्विचार होना चाहिए। दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने संस्थागत सहयोग की महत्ता को रेखांकित किया। IMI सचिव रोशन राय ने जलवायु आपदाओं के मद्देनज़र विकास की दिशा पर पुनर्विचार की आवश्यकता पर बल दिया।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- SMDS (Sustainable Mountain Development Summit) का आयोजन प्रति वर्ष होता है और यह भारतीय हिमालयी क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर केंद्रित होता है।
- भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) में 13 राज्य और केंद्रशासित प्रदेश आते हैं।
- “हरेला पर्व” उत्तराखंड का एक पारंपरिक त्योहार है, जिसमें वृक्षारोपण का विशेष महत्त्व है।
- हिमालय भारत की गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल है और लगभग 50 करोड़ लोगों के लिए जल आपूर्ति का स्रोत है।