हड़प्पा लिपि सम्मेलन 2025: रहस्यमयी लिपि को सुलझाने की दिशा में बहुआयामी प्रयास

हड़प्पा लिपि सम्मेलन 2025: रहस्यमयी लिपि को सुलझाने की दिशा में बहुआयामी प्रयास

11 से 13 सितंबर 2025 तक नई दिल्ली में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में आयोजित होने वाला अंतरराष्ट्रीय हड़प्पा लिपि सम्मेलन एक ऐसा ऐतिहासिक मंच बन गया है, जहाँ पुरातत्वविदों से लेकर एयरोस्पेस इंजीनियरों और कैंसर विशेषज्ञों तक—विभिन्न पृष्ठभूमियों के विद्वान इस लिपि के रहस्य को सुलझाने की अपनी व्याख्याएँ प्रस्तुत कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की उपस्थिति

सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 सितंबर को और गृहमंत्री अमित शाह 13 सितंबर को उपस्थित रहेंगे। इस उच्च स्तरीय उपस्थिति से यह स्पष्ट होता है कि हड़प्पा लिपि का अध्ययन केवल अकादमिक जिज्ञासा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और राजनीतिक विमर्श का भी केंद्रीय विषय बन चुका है।

हड़प्पा लिपि: बहसें, दावे और वैचारिक विविधता

अब तक हड़प्पा लिपि (Harappan Script) को कोई निर्णायक रूप से पढ़ नहीं सका है। परंतु इस सम्मेलन में प्रस्तुत किए जा रहे 20 से अधिक शोधपत्रों में तीन प्रमुख दृष्टिकोण सामने आए हैं:

  • संस्कृत मूल सिद्धांत: मेलबर्न के एयरोस्पेस इंजीनियर फर्रुख नक़वी और पुनीत गुप्ता जैसे प्रतिभागी दावा कर रहे हैं कि लिपि संस्कृत-निष्ठ है, और इसके वर्ण वैदिक ग्रंथों जैसे ऋग्वेद और मनुस्मृति से मेल खाते हैं।
  • द्रविड़ मूल सिद्धांत: ब्रायन के वेल्स और प्रकाश एन सालामे जैसे शोधकर्ता इसे गोंडी या प्रोटो-द्रविड़ियन भाषाओं से जोड़ते हैं। प्रभुनाथ हेम्ब्रोम का शोध इसे संथाली से जोड़ता है।
  • जनजातीय-धार्मिक व्याख्या: करुणा शंकर शुक्ल ने दावा किया है कि लिपि में पुराणों के नाम और ऋग्वैदिक मंत्र अंकित हैं, जो लिपि के धार्मिक उपयोग को दर्शाते हैं।

तकनीकी दृष्टिकोण और आलोचना

बहाता मुखोपाध्याय, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, का दावा है कि हड़प्पा लिपि वर्णमाला आधारित नहीं है, बल्कि यह व्यापार और कर-संबंधी नियमों को दर्शाती है। उनके अनुसार, इसे विवरणात्मक नियमों की लिपि की तरह पढ़ा जाना चाहिए।
वहीं, जेएनयू की इतिहासकार एच पी रे ने चेताया कि हड़प्पा लिपि को पढ़ना तभी संभव है जब द्विभाषिक (bilingual) शिलालेख उपलब्ध हों, जैसा कि ब्राह्मी लिपि के मामले में हुआ था। उन्होंने यह भी कहा कि यह मान लेना कि इतनी विविध और विशाल सभ्यता एक ही भाषा और लिपि से संचालित होती थी, स्वयं में एक सरल निष्कर्ष हो सकता है।

खबर से जुड़े जीके तथ्य

  • हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई 1920 के दशक में हुई थी।
  • अब तक हड़प्पा लिपि के 4000 से अधिक चिन्हों की पहचान की गई है।
  • यह लिपि मुख्य रूप से सीलों, बर्तनों और मोहरों पर पाई गई है।
  • IGNCA (इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र) इस आयोजन का सह-नियोजक है।
Originally written on September 11, 2025 and last modified on September 11, 2025.

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