सुपरमून: जब चंद्रमा धरती के सबसे करीब आकर करता है प्रकाश से अभिभूत

जब चंद्रमा अपनी कक्षा में धरती के सबसे नजदीक आता है और उस समय पूर्णिमा या अमावस्या होती है, तब उत्पन्न होता है एक खगोलीय दृश्य — सुपरमून। इस खगोलीय घटना में चंद्रमा न केवल आकार में बड़ा दिखता है, बल्कि उसकी चमक भी सामान्य से अधिक होती है, जिससे रात्रि आकाश और अधिक मनमोहक हो जाता है।
क्या होता है सुपरमून?
चंद्रमा की कक्षा पूरी तरह गोल न होकर अंडाकार होती है, जिससे उसकी दूरी धरती से हर महीने लगभग 50,000 किलोमीटर तक बदलती रहती है। जब चंद्रमा इस अंडाकार कक्षा के “पेरिजी” बिंदु (धरती के सबसे करीब) पर होता है और उसी समय पूर्णिमा आती है, तो उसे सुपरमून कहा जाता है। इस स्थिति में चंद्रमा सामान्य पूर्णिमा की तुलना में लगभग 14% बड़ा और 30% अधिक चमकीला दिखाई देता है।
हालांकि यह अंतर आम आँखों से बेहद सूक्ष्म होता है, लेकिन जब चंद्रमा क्षितिज के पास होता है, तब उसका आकार और प्रकाश विशेष रूप से प्रभावशाली प्रतीत होता है।
आगामी सुपरमून कब दिखाई देगा?
इस वर्ष का अगला सुपरमून 7 अक्टूबर की रात (भारतीय मानक समय अनुसार) आकाश में दिखाई देगा। इसके बाद नवंबर और दिसंबर में भी दो बार सुपरमून की खगोलीय घटना देखी जा सकेगी।
सुपरमून के दौरान खगोलविद और फोटोग्राफर इसे बेहतर ढंग से देखने और चंद्र सतह का अवलोकन करने के लिए विशेष अवसर मानते हैं।
ज्वार-भाटा पर सुपरमून का प्रभाव
सुपरमून केवल दृश्य सौंदर्य तक सीमित नहीं है; इसका वैज्ञानिक प्रभाव भी होता है। जब चंद्रमा पेरिजी पर होता है, तो उसका गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है। यह बल सूर्य के साथ मिलकर “पेरिजीयन स्प्रिंग टाइड्स” (Perigean Spring Tides) उत्पन्न करता है, जिससे समुद्री ज्वार सामान्य से अधिक ऊँचा और निम्न होता है।
यद्यपि यह परिवर्तन मामूली होता है, परंतु यदि यह समुद्री तूफानों के साथ संयोग में हो जाए, तो तटीय क्षेत्रों में बाढ़ की आशंका बढ़ जाती है।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- ‘सुपरमून’ शब्द को सबसे पहले 1970 के दशक में ज्योतिषी रिचर्ड नॉले ने लोकप्रिय बनाया।
- चंद्रमा की औसत दूरी धरती से लगभग 3,84,000 किमी होती है, जो पेरिजी पर घटकर लगभग 3,56,000 किमी रह जाती है।
- सुपरमून वर्ष में औसतन 3-4 बार घटित होता है।
- वैज्ञानिक रूप से इसे “पेरिजी-सिजाइगी” (Perigee-Syzygy) कहा जाता है, जबकि ‘सुपरमून’ एक अनौपचारिक शब्द है।