सिलिगुड़ी कॉरिडोर: भारत की रणनीतिक जीवनरेखा और बढ़ते खतरे

सिलिगुड़ी कॉरिडोर, जिसे “चिकन नेक” के नाम से भी जाना जाता है, भारत के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण और संवेदनशील भू-भाग है। यह संकीर्ण गलियारा पश्चिम बंगाल के उत्तर में स्थित है और यह मुख्य भारत को उसके आठ पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। इसकी चौड़ाई मात्र 20-22 किलोमीटर है, लेकिन इसका रणनीतिक महत्व अत्यधिक है।
भौगोलिक स्थिति और रणनीतिक महत्व
सिलिगुड़ी कॉरिडोर नेपाल, भूटान और बांग्लादेश के बीच स्थित है। यह भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को सड़क, रेल और रक्षा संपर्क प्रदान करता है। इस कॉरिडोर के माध्यम से 95% निर्यात और आयात गतिविधियाँ होती हैं, और यह सेना की तैनाती और आपूर्ति के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके अवरुद्ध होने से पूर्वोत्तर राज्यों का मुख्य भारत से संपर्क टूट सकता है, जिससे राष्ट्रीय अखंडता पर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
चीन और बांग्लादेश से बढ़ते खतरे
सिलिगुड़ी कॉरिडोर के निकट तिब्बत का चुम्बी घाटी क्षेत्र है, जहाँ चीन ने तेजी से सैन्य बुनियादी ढांचे का विकास किया है। यदि संघर्ष की स्थिति उत्पन्न होती है, तो चीन इस कॉरिडोर को काट सकता है, जिससे पूर्वोत्तर भारत मुख्य भूमि से अलग हो सकता है। इसके अलावा, बांग्लादेश में चीन की बढ़ती उपस्थिति और रणनीतिक साझेदारी भारत के लिए चिंता का विषय है।
लालमोनिरहाट एयरबेस का पुनरुद्धार: एक नया खतरा
बांग्लादेश के उत्तर में स्थित लालमोनिरहाट एयरबेस, जो भारत की सीमा से मात्र 20 किलोमीटर और सिलिगुड़ी कॉरिडोर से लगभग 135 किलोमीटर दूर है, को चीन की सहायता से पुनर्जीवित करने की योजना है। यह एयरबेस द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उपयोग में था और अब इसे फिर से सक्रिय करने की कोशिश की जा रही है। भारतीय खुफिया एजेंसियों का मानना है कि यह चीन के लिए एक निगरानी और लॉजिस्टिक हब बन सकता है, जिससे भारत की सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
भारत ने इस खतरे को गंभीरता से लेते हुए कई कदम उठाए हैं:
- कैलाशहर एयरबेस का पुनरुद्धार: त्रिपुरा में स्थित इस एयरबेस को फिर से सक्रिय किया जा रहा है, ताकि बांग्लादेश और चीन की गतिविधियों का मुकाबला किया जा सके।
- सुरक्षा बलों की तैनाती: भारतीय सेना ने सिलिगुड़ी कॉरिडोर में राफेल लड़ाकू विमान और एस-400 वायु रक्षा प्रणाली तैनात की है, जिससे इस क्षेत्र की सुरक्षा को मजबूत किया जा सके।
- कूटनीतिक चेतावनी: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बांग्लादेश को चेतावनी दी है कि यदि वह भारत के “चिकन नेक” को निशाना बनाता है, तो भारत भी बांग्लादेश के दो रणनीतिक गलियारों को निशाना बना सकता है।
वैकल्पिक संपर्क मार्गों का विकास
सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता कम करने के लिए भारत ने कई वैकल्पिक मार्गों पर काम शुरू किया है:
- हिली–महेंद्रगंज ट्रांजिट कॉरिडोर: यह प्रस्तावित मार्ग पश्चिम बंगाल के हिली को मेघालय के महेंद्रगंज से जोड़ता है, जिससे बांग्लादेश के माध्यम से पूर्वोत्तर भारत तक पहुंच संभव होगी।
- तरापोखर–शाकाटी एलिवेटेड कॉरिडोर: यह मार्ग उत्तर दिनाजपुर के तरापोखर से जलपाईगुड़ी के शाकाटी तक प्रस्तावित है, जिससे यात्रा दूरी लगभग 131 किलोमीटर से घटकर 20 किलोमीटर हो जाएगी।
- कालादान मल्टी-मोडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट (KMMTTP): यह परियोजना कोलकाता को मिजोरम से म्यांमार के माध्यम से जोड़ती है, जिससे पूर्वोत्तर भारत के लिए एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध होगा। इस परियोजना के तहत कोलकाता से म्यांमार के सितवे बंदरगाह तक समुद्री मार्ग, फिर कालादान नदी के माध्यम से पलटवा तक जलमार्ग, और अंत में पलटवा से जोरीनपुई तक सड़क मार्ग शामिल है।