सिलिकॉन के बिना कंप्यूटर निर्माण: सेमीकंडक्टर तकनीक में नई क्रांति

पिछले सात दशकों से सिलिकॉन ने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को छोटा, तेज़ और कुशल बनाने में अहम भूमिका निभाई है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने एक ऐसा ऐतिहासिक कदम उठाया है, जिससे यह साबित हो गया है कि सिलिकॉन का विकल्प संभव है। अमेरिका की पेनसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने बिना सिलिकॉन के एक कंप्यूटर तैयार किया है, जो दो-आयामी (2D) पदार्थों से बना है। यह उपलब्धि वैज्ञानिकों के लिए न केवल तकनीकी दृष्टि से मील का पत्थर है, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक्स की दुनिया में एक नई दिशा भी दर्शाती है।
क्या है यह नया कंप्यूटर?
शोधकर्ताओं ने ‘कॉम्प्लिमेंटरी मेटल-ऑक्साइड-सेमीकंडक्टर’ (CMOS) तकनीक पर आधारित यह कंप्यूटर बनाया है, लेकिन पारंपरिक सिलिकॉन के बजाय उन्होंने दो-आयामी पदार्थों का उपयोग किया है। इनमें मुख्य रूप से मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड (MoS₂) और टंगस्टन डिसेलेनाइड (WSe₂) जैसे अति-पतले, कागज जैसे पदार्थ शामिल हैं। इनकी मोटाई परमाणु स्तर पर होती है, जिससे ये अत्यधिक स्केलेबल और उन्नत इलेक्ट्रॉनिक गुणों से युक्त होते हैं।
क्यों जरूरी है सिलिकॉन का विकल्प?
1947 में पहला ट्रांजिस्टर बनाने से लेकर आज तक सिलिकॉन ने तकनीकी प्रगति को दिशा दी है। लेकिन जैसे-जैसे उपकरणों को छोटा करने की आवश्यकता बढ़ी है, सिलिकॉन की भौतिक सीमाएं सामने आ रही हैं। यह अपेक्षाकृत भारी होता है, जिससे इसे और छोटा करने पर लीकेज करंट और ऊर्जा खपत बढ़ जाती है तथा प्रदर्शन में गिरावट आती है। 2D पदार्थ इन चुनौतियों को मात देने में सक्षम हैं क्योंकि वे अधिक लचीलापन, उच्च गतिशीलता और बेहतर नियंत्रण प्रदान करते हैं।
तकनीकी विशेषताएं और प्रदर्शन
यह नया कंप्यूटर अभी एक प्रारंभिक स्तर का मॉडल है, जो केवल एक सिंगल इंस्ट्रक्शन (‘रिवर्स सब्ट्रैक्ट, स्किप इफ बरो’) को ही बार-बार दोहराकर जोड़, घटाव और गुणा जैसे बुनियादी कार्य कर सकता है। इसकी कार्यप्रणाली 25 किलोहर्ट्ज़ की गति पर और तीन वोल्ट से कम पावर पर होती है, जो अत्यधिक ऊर्जा कुशल मानी जाती है। हालांकि इसकी गति आज के आधुनिक सिलिकॉन आधारित कंप्यूटरों से काफी कम है, लेकिन यह सिद्ध करता है कि 2D पदार्थों से भी पूर्णतः कार्यात्मक कंप्यूटर बनाए जा सकते हैं।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- CMOS तकनीक: यह कम बिजली खपत वाली इलेक्ट्रॉनिक सर्किट डिज़ाइन तकनीक है, जो स्मार्टफोन्स, कैमरा सेंसर और प्रोसेसर चिप्स में उपयोग होती है।
- Moore’s Law: इसके अनुसार हर 18 महीने में ट्रांजिस्टर की संख्या दोगुनी होनी चाहिए, लेकिन अब यह सिलिकॉन की सीमाओं के कारण थम गई है।
- 2D सामग्री: मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड और टंगस्टन डिसेलेनाइड जैसे पदार्थ अत्यधिक पतले होते हैं और नई पीढ़ी के नैनो-डिवाइसेज़ के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
- भारत में अनुसंधान: इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय 2D सामग्री पर अनुसंधान को प्रोत्साहन देने हेतु परियोजनाओं को वित्तपोषित करने की योजना बना रहा है।
यह शोध अभी वाणिज्यिक स्तर पर उपयोग के लिए तैयार नहीं है, लेकिन यह दर्शाता है कि हम सिलिकॉन के परे एक नई तकनीकी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं। जैसे-जैसे शोध और विकास आगे बढ़ेगा, 2D सामग्री पर आधारित उपकरण संभवतः इलेक्ट्रॉनिक्स के भविष्य को आकार देंगे — छोटे, तेज़ और अधिक कुशल।