सम्राट राणा ने रचा इतिहास: भारत के पहले ओलंपिक पिस्टल विश्व चैंपियन
भारतीय निशानेबाज़ सम्राट राणा ने 20 वर्ष की आयु में काहिरा में आयोजित आईएसएसएफ विश्व निशानेबाज़ी चैंपियनशिप में पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। वे इस ओलंपिक अनुशासन में विश्व खिताब जीतने वाले पहले भारतीय पिस्टल शूटर बन गए। राणा ने न केवल व्यक्तिगत स्वर्ण जीता, बल्कि टीम स्पर्धा में भी भारत को स्वर्ण पदक दिलाया, जिससे भारतीय निशानेबाज़ी के लिए यह एक ऐतिहासिक दिन बन गया।
ऐतिहासिक आईएसएसएफ उपलब्धि
यह जीत भारत के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित थी। अब तक भारत ने ओलंपिक पिस्टल वर्ग में कभी व्यक्तिगत विश्व खिताब नहीं जीता था। राणा की यह उपलब्धि उस समय आई जब भारत ने विभिन्न निशानेबाज़ी स्पर्धाओं में शानदार प्रदर्शन करते हुए पदक तालिका में उल्लेखनीय बढ़त बनाई।
फाइनल मुकाबले का रोमांचक सफर
फाइनल में सम्राट राणा और चीन के हू काई के बीच कड़ा मुकाबला हुआ। राणा ने 243.7 अंक के साथ स्वर्ण पदक जीता, जबकि हू काई 243.3 अंकों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। भारत के वरुण तोमर ने 221.7 अंक के साथ कांस्य पदक हासिल किया। फाइनल के निर्णायक दौरों में राणा का संयम और सटीकता देखने लायक रही।
टीम स्वर्ण और क्वालिफिकेशन में दबदबा
टीम स्पर्धा में भारत ने कुल 1754 अंकों के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया। इस टीम में सम्राट राणा (586), वरुण तोमर (586) और श्रवण कुमार (582) शामिल थे। इटली और जर्मनी क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर रहे। क्वालिफिकेशन में भी राणा ने 27 इनर-10 के साथ शीर्ष स्थान हासिल किया, जबकि तोमर 26 इनर-10 के साथ दूसरे स्थान पर रहे।
खबर से जुड़े जीके तथ्य
- सम्राट राणा ने 243.7 अंकों के साथ 10 मीटर एयर पिस्टल विश्व खिताब जीता।
- चीन के हू काई (243.3) ने रजत और भारत के वरुण तोमर (221.7) ने कांस्य पदक जीता।
- यह पहली बार था जब दो भारतीयों ने एक ही विश्व पिस्टल स्पर्धा में पदक जीते।
- टीम स्पर्धा में भारत (राणा, तोमर, श्रवण) ने 1754 अंकों के साथ स्वर्ण पदक जीता।
- राणा और तोमर दोनों ने क्वालिफिकेशन में 586 अंक बनाए, राणा इनर-10 पर आगे रहे।
सम्राट राणा की यात्रा और प्रेरणा
हरियाणा के करनाल निवासी सम्राट राणा ने अपने पिता के मार्गदर्शन में निशानेबाज़ी की शुरुआत की। उन्होंने जूनियर स्तर पर कई सफलताएँ अर्जित कीं और अब उसी काहिरा में सीनियर स्तर पर स्वर्ण जीतकर अपने करियर का सर्वोच्च मुकाम हासिल किया। इस जीत ने न केवल हू काई की विजयी लय को तोड़ा, बल्कि भारत की पिस्टल निशानेबाज़ी में गहराई और नई पीढ़ी की ताकत को भी प्रदर्शित किया।