संवैधानिकता की धारणा का सिद्धांत और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025

संवैधानिकता की धारणा का सिद्धांत और वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025

भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है—संवैधानिकता की धारणा (Doctrine of Presumption of Constitutionality)। यह सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि संसद या राज्य विधानमंडलों द्वारा पारित कानून संवैधानिक हैं, जब तक कि उनके असंवैधानिक होने का ठोस प्रमाण न हो। इसका उद्देश्य विधायी प्रक्रिया का सम्मान करना और लोकतंत्र में चुने गए प्रतिनिधियों की भूमिका को मान्यता देना है।
हाल ही में वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक संवैधानिक बहस उभरी है, जिसने इस सिद्धांत को नए सिरे से सार्वजनिक विमर्श में ला दिया है।

क्या है संवैधानिकता की धारणा का सिद्धांत?

यह सिद्धांत यह मानकर चलता है कि:

  • संसद या विधानमंडल द्वारा बनाए गए प्रत्येक कानून को संवैधानिक माना जाएगा।
  • इसे असंवैधानिक साबित करने का भार उस पक्ष पर होता है जो चुनौती दे रहा हो।
  • न्यायपालिका को तब तक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए जब तक कोई स्पष्ट और गंभीर संवैधानिक उल्लंघन न हो।
  • इससे कानून प्रणाली में स्थिरता बनी रहती है और विधायिका व न्यायपालिका के बीच संतुलन कायम रहता है।

वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर विवाद

8 अप्रैल 2025 से लागू इस अधिनियम को मुसलमान समुदाय के वक्फ संपत्तियों की “क्रिपिंग एक्विज़िशन” (धीरे-धीरे कब्ज़ा) करार देते हुए याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि अधिनियम अनुच्छेद 25 और 26 के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करता है।

प्रमुख आपत्तियाँ और कानूनी तर्क:

  • सेक्शन 3C की आलोचना: यह किसी को भी वक्फ संपत्ति पर विवाद उठाने की छूट देता है। विवाद के चलते संपत्ति की पूरी वक्फ स्थिति स्थगित हो जाती है और प्रक्रिया का कोई निश्चित ढांचा नहीं है।
  • सेक्शन 3D का प्रभाव: यदि वक्फ संपत्ति को पुरातात्विक स्मारक घोषित किया जाए, तो उसका वक्फ स्वरूप समाप्त हो जाएगा। यह ऐतिहासिक रूप से धार्मिक और सांस्कृतिक उपयोग वाली संपत्तियों को प्रभावित करेगा।
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकार: यह अधिनियम वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने की अनुमति देता है, जो याचिकाकर्ताओं के अनुसार मुस्लिम समुदाय के अधिकारों का अतिक्रमण है।
  • अन्य धार्मिक संपत्तियों से भेदभाव: याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हिंदू या सिख धार्मिक संस्थाओं में अन्य धर्मों के लोगों को प्रबंधन में शामिल करने की अनुमति नहीं है, फिर मुस्लिम संस्थाओं के साथ भिन्न व्यवहार क्यों?
  • धार्मिक पहचान की शर्तें: अधिनियम के तहत वक्फ स्थापित करने के लिए पाँच वर्ष से इस्लाम का अभ्यास करना आवश्यक बताया गया है, जिसे पक्षपातपूर्ण और मनमाना बताया गया।
  • पुराने वक्फों की मान्यता: देश के लगभग आठ लाख वक्फों में से आधे बिना पंजीकरण के हैं। 2025 के अधिनियम में ऐसे वक्फों को अदालत का सहारा लेने से वंचित कर दिया गया है।

न्यायालय की टिप्पणी और वर्तमान स्थिति

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि वे केवल अंतरिम राहत की मांग कर रहे हैं, और उन्हें इस पर ठोस मामला पेश करना होगा। उन्होंने दोहराया कि संसद द्वारा बनाए गए कानूनों को संवैधानिक मानने की धारणा अदालतों में प्राथमिक होती है। सरकार की ओर से अपनी दलीलें 21 मई से प्रस्तुत की जानी हैं।

Originally written on May 22, 2025 and last modified on May 22, 2025.

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